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विवादों के निबटारे के लिए मजबूत ढांचा प्रदान करती है सीपीसी

भारतीय सिविल कानून में, सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) विवादों के निबटारे के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है. इसमें धारा 23 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो मुकदमों की वापसी और समझौते से संबंधित है. नियम दो विशेष रूप से उन समझौतों को लागू करने से संबंधित है, जो पूरे मुकदमे या उसके एक हिस्से को निबटा देते हैं.

कोलकाता.

भारतीय सिविल कानून में, सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) विवादों के निबटारे के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है. इसमें धारा 23 विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो मुकदमों की वापसी और समझौते से संबंधित है. नियम दो विशेष रूप से उन समझौतों को लागू करने से संबंधित है, जो पूरे मुकदमे या उसके एक हिस्से को निबटा देते हैं.

इस संबंध में कलकत्ता हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवब्रत उपाध्याय ने प्रभात खबर के ऑनलाइन प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि यह नियम निर्धारित करता है कि यदि पक्षकार कानूनी तौर पर कोई समझौता करके मुकदमे का निबटारा कर लेते हैं, तो अदालत का यह दायित्व बन जाता है कि वह उस समझौते को अभिलिखित (रिकॉर्ड) करे और उसके आधार पर एक डिक्री (निर्णय) पारित करे. यह डिक्री मुकदमे के संबंध में अंतिम होती है और पक्षकारों के लिए बाध्यकारी होती है. इसका उद्देश्य सहमति से विवाद समाधान को बढ़ावा देना और अदालतों के कार्यभार को कम करना है. इस नियम के तहत समझौते को मान्य होने के लिए कानूनी, लिखित रूप में दस्तखत किया हुआ और अदालत की संतुष्टि के अनुसार वैध होना चाहिए. अदालत की यह जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि समझौता जबरदस्ती या धोखे से नहीं किया गया है.

गुरप्रीत सिंह बनाम चतुर्भुज गोयल (1988) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अदालत के सामने मौखिक रूप से किया गया समझौता भी मान्य है, बशर्ते उसकी शर्तों को बाद में लिखित रूप में अदालत के समक्ष रखा जाये.

इसी प्रकार, पुष्पा देवी भगत बनाम राजिंदर सिंह (2006) के मामले में अदालत ने कहा कि एक बार समझौते के आधार पर डिक्री पारित हो जाने के बाद, उसे केवल इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि समझौता स्वैच्छिक नहीं था, जब तक कि उसे रद्द करने के लिए एक अलग मुकदमा न दायर किया जाये.

सवाल : जमीन को लेकर विवाद चल रहा है. जमीन विवाद समाधान के लिए बीएलआरओ कार्यालय में आवेदन किया, जहां से सरकारी अमीन आकर जमीन की मापी की, लेकिन विपक्षी पार्टी इसे नहीं मान रही है, क्या करें?

-अमित ठाकुर, श्यामनगर

सलाह : अगर बीएलआरओ से सरकारी अमीन ने जमीन की माप की है और विपक्षी नहीं मान रहे हैं, तो वे सरकारी आदेश की अवहेलना कर रहे हैं. इस संबंध में एसडीओ के नाम से आवेदन दें. पुलिस बल व अधिकारी की मौजूदगी में अपने स्तर से मापी कराने का अनुरोध करें. इससे समस्या का समाधान हो सकता है.

सवाल : मेरे दादाजी से एक व्यक्ति ने इलाज कराने के दौरान पैसे लिये हैं. अब वह पैसे लौटाने में असमर्थता दिखा रहा है और कह रहा है कि जमीन आपके नाम लिख देंगे, जो रैयती जमीन है, क्या यह रैयती जमीन अपने नाम से लेना हित में होगा?

-शंकर चौहान, नैहाटी

सलाह : वैसे तो किसी के पर्चा की जमीन है, जो रैयती जमीन की श्रेणी में और एसपीटी एक्ट के अनुसार अहस्तांतरणीय जमीन है, रैयती जमीन की खरीदना बेचना नियम के प्रतिकूल है. यह जमीन अगर आप लेते हैं, तो नियम के प्रतिकूल ही होगा.

सवाल : मैं कारोबार के विस्तार के लिए मुद्रा लोन लेना चाहता हूं, इसके लिए क्या करना होगा?

-मिथलेश साव, हावड़ा

जवाब : मुद्रा लोन किसी व्यवसाय के लिए दिये जाने का प्रावधान है. अपने नजदीकी बैंक में इसके लिए आवेदन करें. बैंक की ओर से आपके व्यवसाय का स्थान देखा जायेगा व बिजनेस के प्रकार के आधार पर रिपोर्ट आने के बाद ऋण स्वीकृत किया जाता है.

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