राज्य स्वास्थ्य विभाग ने इस संबंध में जारी की निर्देशिका कोलकाता. बाल यौन शोषण के मामलों में अब एफआइआर दर्ज न होने पर भी सरकारी अस्पतालों को पीड़ितों की शारीरिक जांच करनी होगी. राज्य स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को इस संबंध में एक निर्देशिका जारी की है. यह निर्देशिका राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, वाइस प्रिंसिपल और सभी जिलों के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारियों को भेजी गयी है. गौरतलब है कि पॉक्सो एक्ट के तहत यह नियम पहले से ही लागू था. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने इसका सही तरीके से पालन सुनिश्चित करने के लिए ये नये दिशानिर्देश जारी किये हैं. स्वास्थ्य विभाग के निर्देशानुसार, यदि पीड़ित बच्चे का परिवार किसी कारणवश एफआइआर दर्ज नहीं करा पाता है, तो भी अस्पताल में उसे पहले मेडिकल जांच करानी होगी. यौन उत्पीड़न के शिकार लड़के या लड़की की जांच केवल महिला डॉक्टर ही करेंगी. इसके लिए हर अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड बनाने का भी निर्देश दिया गया है. महिला डॉक्टर बच्चे की जांच उसके परिवार के सदस्य की उपस्थिति में करेंगी. यदि परिवार का कोई सदस्य मौजूद न हो, तो किसी अन्य विश्वसनीय सदस्य को उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है, अन्यथा चिकित्सा परीक्षण स्थगित किया जा सकता है. दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि यदि बच्चे का कोई पारिवारिक सदस्य या विश्वसनीय रिश्तेदार उपस्थित नहीं हो पाता है, तो पॉक्सो बोर्ड की एक महिला डॉक्टर का अस्पताल में उपस्थित रहना अनिवार्य है. स्वास्थ्य विभाग को यह निर्देश इसलिए देना पड़ा क्योंकि कुछ समय से स्वास्थ्य केंद्रों को इस नियम के उल्लंघन की शिकायतें मिल रही थीं. इसे रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने यह सख्त संदेश जारी किया है. प्रत्येक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और जिला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अलावा, बाल अधिकार आयोग के निदेशक, मानसिक स्वास्थ्य के विशेष सचिव और कई सरकारी स्तरों पर भी पत्र भेजा गया है.
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