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मिट्टी के दीयों से दिवाली को रोशन करनेवाले कुम्हारों के जीवन में अंधकार

मिट्टी के दीयों से दिवाली को रोशन करने वाले कुम्हारों के जीवन में अंधकार छाया हुआ है.

संवाददाता, हावड़ा.

मिट्टी के दीयों से दिवाली को रोशन करने वाले कुम्हारों के जीवन में अंधकार छाया हुआ है. बिजली की झालरों का बढ़ता चलन, महंगाई से बढ़ी लागत, मेहनत का उचित दाम न मिलने और आधुनिकता के कारण अब लोगों का पारंपरिक मिट्टी के दीयों से लगाव कम हो गया है.

कुछ इसी तरह का नजारा गोलाबाड़ी के कपूर गली और फकीर बागान इलाके में देखा जा सकता है. इन दोनों जगहों पर दिवाली से पहले खरीदार मिट्टी के दीयों को खरीदने के लिए पहुंचते थे, लेकिन अब ऐसी स्थिति यहां नहीं है. कपूर गली और फकीर बागान घनी आबादी वाले इलाके हैं. कई दशक पहले यहां काफी संख्या में कुम्हार आये थे और परिवार के सभी सदस्य मिट्टी का सामान बनाते थे, लेकिन समय के साथ-साथ इनका व्यवसाय सिमट कर रह गया है.

कुम्हार सोनू प्रजापति ने बताया कि एक जमाने में छोटे-बड़े सभी लोग मिलकर सुबह से रात 10 बजे तक काम करते थे. दिवाली से पहले दीयों और बर्तनों की मांग बढ़ जाती थी, लेकिन चाइनीज लाइट्स आने से मिट्टी के बने दीयों की मांग बहुत कम हो गयी है. इसके अलावा चारों तरफ मकान बन गये हैं. मिट्टी के बर्तन को आग में तपाया जाता है, ऐसे में धुआं निकलने से लोग अपनी नाराजगी जताते हैं. यहां रहने वाले कुम्हारों ने सरकार से मदद की अपील की है और कहा कि सरकार उनके रोजगार को बढ़ावा देने के लिए आगे आये.

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