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प्रतिबंधित और एक्सपायर्ड दवाओं पर शिकंजा जरूरी

दवाओं पर अत्यधिक छूट व इनकी ऑनलाइन खरीदारी से बचने की सलाह दे रहे विशेषज्ञ

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कोलकाता. मौत! जीवन की कड़वी सच्चाई तो है ही, लेकिन जब मौत अस्वाभाविक या लापरवाही के कारण हो, तब वह त्रासदीपूर्ण घटना बन जाती है. मेदिनीपुर मेडिकल कॉलेज की एक्सपायर्ड आरएल सलाइन से हुई प्रसूति की मौत एक ऐसी ही ट्रैजेडी है. लेकिन सवाल यह है कि इसका जिम्मेदार कौन है? दवा, फार्मास्यूटिकल कंपनियां या समूचा स्वास्थ्य महकमा? हालांकि, सभी घटक अपने बचाव में जुटे हैं. चिकित्सकों का कहना है कि इस मामले में सबसे पहले धर-पकड़ दवा कंपनियों की होनी चाहिए. उन्हें जांच के घेरे में लाना चाहिए. इन सब के बीच देश में और 104 तरह की दवाएं गुणवत्ता जांच में असफल रही हैं. ऐसे में दवाएं नकली हैं या असली यह आम लोग कैसे समझेंगे?

दवा की जांच के लिए सरकार के पास हो सटीक व्यवस्था

इएनटी विशेषज्ञ डॉ कुंतल माइती ने बताया कि दवाएं दो तरह की होती हैं. एक होता है ओरल मेडिसिन (इसे मुंह से खाया जाता है) और दूसरा-इंजेक्टेबल (इसे सलाइन या इंजेक्शन के जरिये मरीज के ब्लड में दिया जाता है). आमतौर पर यदि एक्सपायर्ड ओरल मेडिसिन अधिक पुरानी ना हो, तो इसे खाने से गंभीर समस्या की संभावना कम रहती है. लेकिन इंजेक्टेबल मेडिसिन यदि एक्सपायर्ड हो जाये या इसमें फंगस व बैक्टीरिया पनप जाये, तो इसके इस्तेमाल से मरीज को नुकसान पहुंच सकता है. जान भी जा सकती है. अस्पतालों में मरीजों को एनएस या गर लैक्टेट (आरएल) सलाइन दी जाती है. इसलिए राज्य सरकार को इस बाबत और सचेत होना चाहिए. सरकार को दवा कंपनियों पर भी नकेल कसनी चाहिए. दवाओं की नियमित जांच जरूरी है. खराब गुणवत्ता वाली दवाओं की पहचान के लिए सरकार के पास अपना लैब होना चाहिए. इन उपायों से ही ऐसी घटनाओं पर रोक लगायी जा सकती है.

आमलोगों के लिए असली-नकली दवा में फर्क समझना मुश्किल

डॉ माइती कहते हैं कि असली व नकली दवा में फर्क समझना आमलोगों के लिए मुश्किल काम है. आम इंसान पैकेट पर लिखे डेट पढ़कर सिर्फ यह समझ सकता है कि दवा एक्सपायर्ड है या नहीं. इससे अधिक समझना उसके लिए नामुमकिन है. दवा की गुणवत्ता की जांच के लिए सीधे डॉक्टर जिम्मेदार नहीं है. इसे परखने की व्यवस्था सरकार को करनी होगी.

संगठन का दावा : छूट पर मिल रही दवाएं भी सुरक्षित

बाजार में कई दवा विक्रेता 20 से 25 फीसदी तक की छूट दे रहे हैं. इन दवाओं की गुणवत्ता पर लोग कई बार संदेह भी करते हैं. इस मुद्दे पर ऑल इंडिया केमिस्ट एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन के महासचिव जयदीप सरकार ने स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है कि छूट पर बिकने वाली दवा के गुणवत्ता मानक में कोई गड़बड़ी है. ये दवाएं भी पूरी तरह से सुरक्षित हैं. राज्य के कई सरकारी अस्पतालों में फेयर प्राइस मेडिसिन शॉप खोले गये हैं.

दवा खरीदें, तो ले लें बिल भी

सीडीएससीओ के डिप्टी ड्रग कंट्रोलर अरूप चटोपाध्याय ने बताया कि दवा बिल लेकर ही खरीदें. क्योंकि, विक्रेता जानबूझ कर बिल देकर नकली दवा नहीं बेचेगा.

दवा खरीदने के बाद क्यूआर कोड को करें स्कैन

सीडीएससीओ के डिप्टी ड्रग कंट्रोलर अरूप चटोपाध्याय ने बताया कि हम नियमित खुदरा बाजार से दवा लाकर उसकी गुणवत्ता की जांच करते हैं. उन्होंने आम लोगों को सुझाव देते हुए कहा कि दवा खरीदने के दौरान बोतल या दवा के पैकेट पर छपे हुए क्यूआर कोड को स्कैन करें. इससे दवां से संबंधित जानकारी मिलेगी. इसके अलावा अगर क्यूआर कोड फर्जी हो तो बार-बार एक ही जगह बैठकर स्कैन करने पर यह ब्लॉक हो जायेगा.

दवाओं की ऑनलाइन खरीदारी के समय रहें सतर्क

इन दिनों समय के अभाव में कुछ लोग दवा की दुकान पर ना जाकर ऑनलाइन घर बैठे दवा खरीद लेते हैं. जो सही तरीका नहीं है. इस संबंध में अरूप चटोपाध्याय ने कहा कि ऑनलाइन दवा बेची नहीं जा सकती. इसके लिए लाइसेंस प्राप्त दवा दुकान का होना जरूरी है. ऐसे में ऑनलाइन दवा खरीदने वाले लोग पहले यह भी जांच करें कि जिस कंपनी से वे ऑनलाइन दवा खरीद रहे हैं उनकी दवा दुकान है या नहीं.

दवा खाने पर भी समस्या कम न हो, तो हों सतर्क

दवा विशेषज्ञ दीप नाथ राय चौधरी ने बताया कि दवा खाने पर समस्या कम नहीं होती है तो सतर्क हो जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि आम तौर पर ब्रांडेड और महंगी दवाओं की नकल तैयार कर बाजार में उतारा जाता है, क्योंकि इस तरह की दवाओं को आसानी से बाजार में उतार दिया जाता है. ऐसे में सरकार, सीडीएससीओ व दवा निर्माता कंपनी नकली दवाओं पर नजर तो रख ही रही हैं लेकिन आम जनता को भी सचेत होना पड़ेगा.

अधिक डिस्काउंट पर मिलने वाली दवाएं न खरीदें

सीडीएससीओ के डिप्टी ड्रग कंट्रोलर अरूप चटोपाध्याय ने बताया कि अब बाजार में भारी छूट देकर दवा बेची जा रही है. अधिक छूट पर उपलब्ध होने वाली दवाएं ही नकली हो सकती हैं. ऐसे में लोग लोभ में आकर सस्ती दर पर दवा खरीदते हैं. उन्होंने बताया कि बाजार में 20 से 25 फीसदी छूट पर ही दवाएं बेची जा रही हैं. इस संबंध में दवा व्रिक्रेता संघ के एक सदस्य ने बताया सरकार के नियमानुसार दवाओं पर 16 से 20 फीसदी से अधिक छूट नहीं दी जा सकती. छूट की आड़ में नकली दवाओं को बाजार में उतारा जा रहा है. नकली दवाओं के लिए डिस्काउंट भी एक बड़ा कारण है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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