22 ट्रेनें हॉग सिस्टम में परिवर्तित
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हॉग पद्धति से छह महीने में 4.74 करोड़ की बचत
22 ट्रेनें हॉग सिस्टम में परिवर्तित कोलकाता : दक्षिण पूर्व रेलवे ने हेड ऑन जेनरेशन (हॉग) पद्धति से पिछले छह महीने में 4.74 करोड़ रुपये बचत की है. इस पद्धति से ट्रेनों में बिजली की आपूर्ति बिना जेनरेटर के की जा रही है. इंजन में लगाये गये कंवर्टर्स के माध्यम से ओवर हेड उपकरण से […]
कोलकाता : दक्षिण पूर्व रेलवे ने हेड ऑन जेनरेशन (हॉग) पद्धति से पिछले छह महीने में 4.74 करोड़ रुपये बचत की है. इस पद्धति से ट्रेनों में बिजली की आपूर्ति बिना जेनरेटर के की जा रही है. इंजन में लगाये गये कंवर्टर्स के माध्यम से ओवर हेड उपकरण से बिजली की आपूर्ति हो रही है. अब ट्रेनों में अलग से जेनरेटर रखने की जरूरत नहीं होगी. हॉग पद्धति से ही ट्रेनों में एसी, लाइट व पंखे चलेंगे. जेनरेटर नहीं चलने से जहां एक ओर प्रदूषण नहीं होगा, वहीं दूसरी तरफ जेनरेटर की कर्कश आवाज से भी राहत मिलेगी.
जानकारी के अनुसार, अप्रैल से सितंबर तक 22 ट्रेनों को एचओजी यानि हॉग सिस्टम में परिवर्तित किये गये हैं, जिससे लगभग 4.74 करोड़ रुपये की बचत हुई है. जेनरेटर नहीं चलने से 7,28,491 लीटर डीजल की बचत हुई है.
क्या है हॉग सिस्टम
डब्ल्यूएपी-7 व 5 मॉडल के इंजन काफी अत्याधुनिक हैं. इसकी खासियत है कि इस इंजन को जिस ट्रेन में लगाया जाता है, उस ट्रेन में जेनरेटर रखने की जरूरत नहीं पड़ती है. ओवरहेड तार के जरिए ट्रेन के डिब्बों में बिजली की आपूर्ति होती है. एक घंटे तक एक जेनरेटर चलाने पर 50 लीटर डीजल की खपत होती है. कई ट्रेनों में दो जेनरेटर लगाये जाते हैं. ऐसे में डीजल की खपत दोगुनी हो जाती है. गीतांजलि एक्सप्रेस में एक जेनरेटर और मुंबई-दुरंतो एक्सप्रेस में दो जेनरेटर पहले लगाये जाते थे.
गीतांजलि एक्सप्रेस के कुल 65 घंटे (अप व डाउन मिलाकर) के सफर में 3,250 लीटर और मुंबई दुरंतो एक्सप्रेस में 6,500 लीटर डीजल की खपत होती थी, लेकिन हॉग सिस्टम से अब इन ट्रेनों से जेनरेटर हटा लिये गये हैं. गीतांजलि एक्सप्रेस में अप व डाउन मिलाकर 2,21942 रुपये और दुरंतो एक्सप्रेस में 4,43885 रुपये डीजल की बचत रोजाना हो रही है.
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