डॉ मो. हनीफ खान शास्त्री तीस वर्षों से गीता को जन-जन में फैलाने का काम कर रहे
गीता और कुरान में सामंजस्य के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन और सत्संग से ज्ञान का आदान प्रदान आवश्यक
कोलकाता : कुरान और गीता में लगभग 3500 वर्षों का अंतर है. फिर भी जो बातें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कही हैं, उसी बात को कुरान में भी कहा गया है. गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, ‘हे पार्थ हर कार्य को तू परमेश्वर को समर्पित करके कर, तो वह कार्य देवतुल्य ही होगा.’ वहीं ‘इस्लाम’ शब्द का अर्थ ही समर्पण होता है.
कुरान परमेश्वर के आगे समर्पण से जीने का एलान है. कुरान में 30 दिन का रोजा रखने को तो कहा गया है, लेकिन रोजा रखने का कारण नहीं बताया गया, लेकिन यदि गीता के दूसरे अध्याय के 59 से 72वें श्लोक को पढ़ा जाये तो रोजा या उपवास क्यों रखा जाये की पूरी व्याख्या मिल जायेगी. इस महत्वपूर्ण बात को न तो मुस्लिम समाज जान पा रहा और न ही हिंदू समाज. ये बातें पद्मश्री मोहम्मद हनीफ खान शास्त्री ने शनिवार को भारतीय भाषा परिषद व भारतीय संस्कृति संसद के सम्मिलित प्रयास से आयोजित कार्यक्रम ‘सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की कला’ में कहीं.
उन्होंने कहा, आज लोग श्रीमद्भगवतगीता जैसे अनुपम ग्रंथ से दूर जा रहे हैं, जिस कारण हम कैसे जीयें कि अमर हो जायें की शिक्षा को सीख नहीं पा रहे.उन्होंने बताया कि ईश्वर स्वयं कहते हैं कि जो महानता को बरकरार रखने व उसके नजदीक आने की चेष्ठा नहीं करते. वह ईश्वर को कभी नहीं जान पाते. पद्मश्री डॉ मो हनीफ ने कहा कि कैसी नवाज अल्लाह कबूल करेगा, इसका जिक्र कुरान में नहीं है, लेकिन भगवत गीता के आठवें अध्याय के आठवें श्लोक में कहा गया है कि ईश्वर से दोस्ती बनाना है तो उसके अनुकूल आचरण करना होगा.
गायत्री मंत्र से पीएचडी डॉ हनीफ ने कहा कि त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ ने भर्ग यानि अनंत प्रकाश को ग्रहण करने की बात कही. कुरान में भी प्रकाश का ध्यान बताया गया है. उन्होंने कहा कि सभी धर्मों का निचोड़ सनातन तत्व ज्ञान एक ही है. चाहे उसे किसी भी मजहब या भाषा में कहा जाये. इस बात को लोग समझ नहीं पा रहे, यही कारण है कि ईर्ष्या और द्वेष की दीवार खड़ी हो रही, जो मनुष्य को पतन की ओर ले जा रही है.

