कोलकाता : पश्चिम बंगाल में आयुष चिकित्सा पद्धति व चिकित्सकों की स्थिति बेहाल है. आलम यह है कि अवसर के अभाव में बहुत से आयुष चिकित्सक अपनी पैथी को छोड़कर ऐलोपैथ की प्रैक्टिस कर रहे हैं.
जानकारी के अनुसार, राज्य में आयुर्वेद, होम्योपैथी एवं यूनानी विशेषज्ञों को राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) मेडिकल अॉफिसर के 459 पदों पर नियुक्ति के लिए 29.3.2018 को निर्देशिका जारी की गयी थी. 10 से 21 अप्रैल के बीच अॉनलाइन आवेदन लिये गये थे. इसके बाद 4.8.18 को उम्मीदवारों के डॉक्यूमेंट की जांच की गयी.
सारी प्रक्रिया पूरी होने के चार महीने बाद भी चिकित्सकों की नियुक्ति का नहीं हुई. प्रशासन की इस उदासीनता से आयुष चिकित्सों में गहरा रोष है. इस बाबत एक आयुष डॉक्टर ने अपने पैथी की महत्ता के प्रति सवाल उठाते हुए कहा कि एक तो वैसे ही हमें सरकारी नौकरियां नहीं मिलती हैं. आरबीएसके से एक उम्मीद जगी थी.
इसके तहत 459 पदों की घोषणा की गयी थी. इनमें 333 होम्योपैथी, आयुर्वेद के 80 तथा 46 यूनानी चिकित्सकों के पद थे. करीब 700 आयुष डॉक्टरों ने इसके लिए आवेदन किया था. चार महीने बीतने के बात भी कहीं से नियुक्ति की कोई सुगबुगाहट भी नहीं है.
एमबीबीएस चिकित्सकों के नियुक्ति की प्रक्रिया को एक से दो महीने के भीतर पूरा कर लिया जाता है. आखिर ऐसा दोहरा मापदंड क्यों? सरकार की ओर से आयुष चिकित्सा को मुख्यधारा में लाने की बात बार-बार दोहरायी जाती है. उसके बाद भी नियुक्ति प्रक्रिया में इस लेट-लतीफी की वजह समझ से परे है.
उन्होंने कहा कि आज देश में ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जिसका निदान आयुष के पास है. इसकी जानकारी सभी को है, लेकिन इस विधा को पुनर्जीवित करने के लिए कोई सकारात्मक पहल नहीं हो रही है. सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता की वजह से आयुष चिकित्सा और चिकत्सकों को पहचान नहीं मिल रही है. उनकी कोई कद्र नहीं है.
क्या है आरबीएसके स्कीम
नेशनल हेल्थ मिशन के कार्यक्रम स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य की जांच के लिए शुरू की गयी है. इसके अतंर्गत आयुष चिकित्सकों की बहाली का प्रावधान है.
क्या कहते हैं एनएचएम के निदेशक
आरबीएसके कार्यक्रम के तहत नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में पूछे जाने पर नेशनल हेल्थ मिशन (पश्चिम बंगाल) के निदेशक गुलाम अली अंसारी ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कुछ पता नहीं है. उनके पास अब तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आयी है.