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दुर्गा पूजा का अनोखा नजारा, वन देवी के रूप में दिखेंगी मां दुर्गा

हावड़ा : पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान जंगल-जंगल भटकते हुए पांडवों ने वनदेवी दुर्गा की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी. वनदेवी के प्रति उनका यह समर्पण व श्रद्धा इसलिए था, क्योंकि उन्होंने वहां रहकर अपना अज्ञातवास पूरा किया और इस दौरान जंगल की लकड़ी, फूल का दैनिक उपयोग किया. पांडवों ने वनवास के […]

हावड़ा : पौराणिक कथाओं के अनुसार अज्ञातवास के दौरान जंगल-जंगल भटकते हुए पांडवों ने वनदेवी दुर्गा की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी. वनदेवी के प्रति उनका यह समर्पण व श्रद्धा इसलिए था, क्योंकि उन्होंने वहां रहकर अपना अज्ञातवास पूरा किया और इस दौरान जंगल की लकड़ी, फूल का दैनिक उपयोग किया. पांडवों ने वनवास के दौरान कंद, मूल और फल खाकर अपना जीवन यापन किया.
आधुनिकीकरण के इस दौर में आज वन, वनवासी व उनकी सभ्यता-संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है. वन और वनवासियों की समाप्त होती सभ्यता और संस्कृति को फिर से जागृत करने का संकल्प सलकिया साधारण दुर्गापूजा-जटाधारी पार्क ने किया है.
संस्था के कोषाध्यक्ष राजू सामंत ने बताया कि इस वर्ष जटाधारी पार्क दुर्गापूजा का थीम वनवासी सभ्यता है. मां की प्रतिमा को जंगल की वनदेवी के रूप में सजाया गया है. वनदेवी का मंदिर जंगल के बीच स्थित एक आदिवासी कबीले में स्थित होगा. संस्था के सचिव तापस घोष बताते हैं कि मंडल में प्रवेश करनेवाले दर्शनार्थियों को ऐसा प्रतीत होगा कि वह एक घने जंगल में रहनेवाले आदिवासी कबीले में प्रवेश कर रहे हैं.
वह बताते हैं, आज हम भले खुद को सभ्य समझते हों, लेकिन आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति भी काफी समृद्ध थी. पंडाल व मां की प्रतिमा का निर्माण महानगर के जाने माने प्रतिमा शिल्पकार शांतनु दे बख्शी कर रहे हैं.
गुफा और झरना के बीच होंगे मां दुर्गा की प्रतिमा के दर्शन
हावड़ा. इच्छापुर के सियालडांगा में इस बार एपीजी मेमोरियल एसोसिएशन का पंडाल के श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बननेवाला है. पूजा आयोजक एक आर्कषक थीम पर पंडाल बनाकर श्रद्धालुओं को आकर्षित करने की कोशिश में है. एसोसिएशन की पूजा का यह 14वां साल है. पूजा आयोजक ने झरना को थीम बनाया है.
पंडाल के अंदर गुफा का दृश्य दर्शाया जायेगा. आयोजकों ने बताया कि झरने का पानी एक छोटे जगह से निकलती है आैर फिर वहां से पहाड़ों से होकर नदियों में आकर मिलता है. इसी दृश्य को दिखाने की कोशिश की जा रही है. जल प्रपात थीम बनाने का मकसद यह भी है कि जिस तरह एक छोटे जगह से पानी निकलकर नदी आैर सागर में मिलता है, ठीक उसी तरह हम इंसानों को भी अपनी सोच पानी के तरह बड़ी रखनी होगी.
पूजा की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी. पूजा का वर्तमान बजट 12 लाख के करीब है. तृतीया के दिन ब्रह्मचारी मुराल भाई आैर स्थानीय विधायक जोटू लाहिड़ी इसका उद्घाटन करेंगे. मां दुर्गा की प्रतिमा को कृष्णनगर में बनाया जा रहा है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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