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रास चुनाव से बदला राज्य का राजनीतिक समीकरण

कोलकाता: राज्यसभा चुनाव ने राज्य का राजनीतिक समीकरण बदल दिया है. 2016 का विधानसभा चुनाव वाम मोरचा व कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और संयुक्त होकर लगातार सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर हमला कर रहे थे. सारधा चिटफंड हो या रोजवैली घोटाला हो या फिर विरोधी दलों के विधायकों का […]

कोलकाता: राज्यसभा चुनाव ने राज्य का राजनीतिक समीकरण बदल दिया है. 2016 का विधानसभा चुनाव वाम मोरचा व कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के साथ एकजुट होकर चुनाव लड़ा था और संयुक्त होकर लगातार सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर हमला कर रहे थे. सारधा चिटफंड हो या रोजवैली घोटाला हो या फिर विरोधी दलों के विधायकों का सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का मुद्दा हो, वाम मोरचा व कांग्रेस दोनों ही तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे.

विधानसभा के अंदर से लेकर राज्य के विभिन्न इलाकों में तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों को हमले के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा था, लेकिन राज्यसभा चुनाव ने राज्य की राजनीतिक को पूरी तरह से बदल दी है. तृणमूल कांग्रेस के पास राज्यसभा चुनाव में अपने पांच उम्मीदवारों सुखेंदु शेखर राय, डोला सेन, डॉ मानस रंजन भुईंया, शांता छेत्री और डेरेक ओ ब्रायन को निर्वाचित कराने का बहुमत था, लेकिन छठवें उम्मीदवार के लिए न तो तृणमूल कांग्रेस के पास पर्याप्त मत था और न ही कांग्रेस के पास.

माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी की उम्मीदवारी को लेकर माकपा और कांग्रेस के बीच सहमति बनते जा रही थी, लेकिन अंतत: कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप भट्टाचार्य को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने समर्थन देने की घोषणा कर दी और वाम मोरचा ने पूर्व मेयर विकास रंजन भट्टाचार्य को उम्मीदवार बना दिया, हालांकि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने तृणमूल कांग्रेस का समर्थन लेने से इनकार कर दिया था, लेकिन विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान के नेतृत्व में कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस के समर्थन को न केवल स्वीकार किया, वरन प्रदीप भट्टाचार्य ने ममता बनर्जी को फोन कर समर्थन भी मांगा और मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देने भी घोषणा भी की. इससे प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी खुल कर सामने आयी और कांग्रेस व वाममोरचा का आपसी तालमेल भी बिखर गया.
राष्ट्रपति चुनाव से लेकर उपराष्ट्रपति चुनाव और केंद्र की भाजपा सरकार का विरोध जैसे राष्ट्रीय मुद्दे पर कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस एक साथ एक ही मंच आ ही चुके हैं. अब राज्य की राजनीति में भी कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस की दूरियां मिटती नजर आ रही हैं. इसकी तसवीर सोमवार को राज्यसभा चुनाव के अवसर पर विधानसभा में देखने को मिली.
तृणमूल कांग्रेस के महासचिव व राज्य के संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान के कक्ष में गये और उनके साथ बैठक की. राज्यसभा चुनाव को लेकर कानूनी पहलुओं पर दोनों के बीच बातचीत भी हुई. हालांकि उम्मीदवारों के निर्वाचन के बाद श्री मन्नान ने कहा कि कांग्रेस विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस सरकार की जनविरोधी नीति का विरोध करते रहेगी और वाम मोरचा के साथ उन लोगों को प्लोर को-आर्डिनेशन जारी रहेगा. माकपा के नेता सुजन चक्रवर्ती ने भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ विधानसभा में प्लोर को-आर्डिनेशन की बात कही. दोनों नेता भले ही विधानसभा में फ्लोर को-आर्डिनेशन की बात सार्वजनिक रूप से कहें, लेकिन वाम व कांग्रेस के बीच दरार अब साफ नजर आ रही है, जो बंगाल की राजनीतिक समीकरण के बदलने के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं, जिसकी परिणति आगामी पंचायत चुनाव व 2018 के लोकसभा चुनाव में दिखेगी.

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