लंबे समय से प्रदूषण लेकर कर रहे हैं आंदोलन, प्रदूषण नियंत्रण विभाग, डीएम, स्थानीय पुलिस को पत्र देकर भी नहीं हुआ समस्या का समाधान तालाबों का पानी हो गया है काला, पेड़-पौधों के पत्ते हो गये हैं सफेद सांस लेना हो गया है दूभर, आखिरी हथियार का ग्रामीणों ने किया उपयोग
रानीगंज. मंगलपुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित स्पंज आयरन कारखानों से फैल रहे प्रदूषण के खिलाफ मंगलवार को स्थानीय बख्तारनगर गांव के लोगों का आक्रोश फूट पड़ा. ग्रामीणों ने आंदोलन करते हुए एक स्पंज आयरन कारखाने का संचालन बंद करा दिया. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि कारखानों में लगे प्रदूषण नियंत्रण यंत्रों का यदि सही तरीके से उपयोग किया जायै तो प्रदूषण काफी हद तक कम हो सकता है, लेकिन खर्च अधिक होने के कारण कारखाना मालिक इन यंत्रों का नियमित उपयोग नहीं करते हैं. कई कारखानों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण खराब हालत में पड़े हुए हैं. ग्रामीणों का दावा है कि इसी प्रदूषण के कारण इलाके में लगातार लोगों की मौत हो रही है. गांव में ऐसा कोई घर नहीं है, जहां इस वर्ष दो से तीन लोगों की मौत न हुई हो. मृतकों में अधिकतर 30 से 60 वर्ष आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. पिछले एक साल से इस समस्या को लेकर जिलाधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण विभाग और स्थानीय पुलिस प्रशासन को बार-बार ज्ञापन सौंपे गए, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया. अंततः ग्रामीणों ने उस स्थान पर विरोध दर्ज कराने का फैसला किया, जहां से समस्या की जड़ है, और कारखाने के गेट पर पहुंचकर आंदोलन शुरू किया.ग्रामीणों का कहना है कि कारखाना प्रबंधन ने पहले 15 दिनों के भीतर स्थिति सुधारने का आश्वासन दिया था. इसके बाद ग्रामीणों ने एक महीने तक इंतजार भी किया, लेकिन हालात जस के तस बने रहे. इसके बाद ग्राम रक्षा कमेटी के नेतृत्व में कारखाने को बंद करा दिया गया. घटना को लेकर कारखाना प्रबंधन का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
ग्राम रक्षा कमेटी का आरोप, जीवन पर भारी पड़ रहा उद्योग
ग्राम रक्षा कमेटी के जयदेव खां ने कहा कि ग्रामीण किसी कारखाने को बंद कराने के उद्देश्य से नहीं आये हैं, बल्कि प्रदूषण को रोकने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कारखाना प्रबंधन से कई बार अनुरोध किया गया, लेकिन हर बार केवल आश्वासन मिला और कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. मजबूर होकर ग्रामीणों को कारखाने का गेट बंद करना पड़ा. उन्होंने बताया कि प्रदूषण के कारण इलाके की स्थिति बेहद भयावह हो चुकी है. तालाबों का पानी काला पड़ गया है, पेड़-पौधों की पत्तियां धूल की मोटी परत से ढंक चुकी हैं, पशुओं के चरने के लिए हरियाली समाप्त हो गई है और लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. लगभग हर घर में चर्म रोग, फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां फैल रही हैं, लेकिन देखने वाला कोई नहीं है. ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि उद्योग का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना होना चाहिए, लेकिन जब वही उद्योग लोगों की जान के लिए खतरा बन जाए, तो ऐसे उद्योग का क्या औचित्य रह जाता है. इलाके में कुल सात स्पंज आयरन कारखाने संचालित हैं, जिनसे समान रूप से प्रदूषण निकल रहा है. इसके अलावा पावर प्लांट से निकलने वाला सफेद धुआं भी एक बड़ी समस्या है, जिसके रासायनिक कण दिखाई तो नहीं देते, लेकिन लोगों के शरीर में प्रवेश कर रहे हैं. ग्रामीणों का दावा है कि इलाके में 70 वर्ष से अधिक उम्र का शायद ही कोई व्यक्ति बचा हो. इससे पहले ही लोगों की मौत हो जा रही है. ग्राम रक्षा कमेटी ने स्पष्ट किया है कि जब तक प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण नहीं होता, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

