प्रणव कुमार बैरागी.
बांकुड़ा राज्य के बाकी हिस्सों की तरह बांकुड़ा में भी ‘भाई फोटा’ की तैयारियां जोरों पर हैं. जिले की मिठाई की दुकानें तरह-तरह की मिठाइयां बनाने में व्यस्त हैं. मछली और मीट की दुकानों में भी खरीदारी तेज हो गयी है. घर-घर में बहनों की आवाजाही बढ़ गयी है. बुधवार को जिले भर में उत्सव की रौनक देखी गयी. हालांकि, बांकुड़ा शहर से सटे बदड़ा गांव की कहानी कुछ अलग है. यहां भाइयों को भाई फोटा देने की परंपरा कभी नहीं रही थी, जो अब फिर से शुरू हुई है.पुरानी मान्यता ने रोकी थी रस्म
बदड़ा गांव में यह परंपरा करीब 350 साल पहले एक दुखद घटना के कारण बंद हो गयी थी. ग्रामीणों के अनुसार, ‘भाई फोटा’ के दिन गांव का एक युवक जंगल में गया था, जहां एक बाघ ने उसे मार डाला था. इस घटना के बाद गांव में शोक छा गया और उसी दिन से भाई फोटा मनाना बंद कर दिया गया. वर्षों तक इस दिन गांव में कोई बहन अपने भाई को फोटा नहीं देती थी.नयी पीढ़ी ने तोड़ी डर की दीवार
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि एक समय कुछ परिवारों ने इस परंपरा को दोबारा शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन भूमि विवाद और मुकदमों के कारण यह पहल रुक गयी. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में नयी पीढ़ी ने इस डर को पीछे छोड़ते हुए भाई फोटा फिर से मनाना शुरू किया है. अब गांव के कई परिवार इस पर्व को मनाने लगे हैं, हालांकि कुछ लोग अभी भी पुरानी मान्यता के कारण इससे दूर हैं.गांव में मूर्ति पूजा नहीं की जाती, लेकिन महामाया स्थान के प्रति ग्रामीणों की गहरी आस्था है. इस बार भाई फोटा की रस्म फिर से शुरू होने से कई भाई-बहनों के चेहरों पर मुस्कान लौट आयी है. बुधवार को बांकुड़ा जिले भर में मिठाई की दुकानों पर बहनों की भीड़ देखी गयी.
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