आसनसोल. फेयर प्राइस शॉप (सरकारी राशन दुकान) में मिलनेवाला आटा लोगों के खाने योग्य नहीं होता है, इसमें बालू मिला होता है. इस मुद्दे पर सालानपुर प्रखंड के विभिन्न इलाके से लोगों ने राज्य सरकार की फूड एंड सप्लाई विभाग के ग्रीवेंस सिस्टम में की थी. जिसे लेकर प्रभात खबर में विस्तृत खबर प्रकाशित होते ही प्रशासनिक हलचल बढ़ गयी और मामले का निष्पादन करने के बजाय शिकायतकर्ताओं पर शिकायत वापस लेने के लिए दाबाव बनाने का काम शुरू हो गया है. राशन डीलर भी इस बात को मान रहे हैं कि यहां से मिलनेवाली आटा खाने योग्य नहीं है, लेकिन अधिकारियों के निर्देश पर शिकायत वापस लेने के लिए लोगों को फोन पर हर प्रकार से समझाने का प्रयास किया जा रहा है. जिसे लेकर शिकायतकर्ताओं में डर का माहौल है.
क्या है पूरा मामला
फेयर प्राइस शॉप से मिलनेवाली आटा खाने योग्य नहीं होती है. इसमें बालू मिला होने से लोग परेशान है. सरकारी इस आटा का मूल्य 28.50 पैसे प्रति किलो होने का पर्ची मिलता है. लेकिन यह इंसानों के खाने योग्य नहीं होने के कारण अधिकांश लोग इसे खुले बाजार में 16 से 18 रुपये किलो के दर से बेच देते हैं. इस आटा का मुख्यरूप से उपयोग पशु आहार में, गोलगप्पों में होता है. तुरंत यह आटा बिक जाती है. इससे लोगों को भी राशन के बदले कैश पैसा मिलने से वे भी गदगद रहते हैं. कुछ गरीब और जरूरतमंद लोग हैं, जिन्हें इस आटा की जरूरत होती है, यदि यह आटा नहीं मिला तो फिर एक वक्त के खाने में परेशानी हो जाएगी. इनके परिवार में काफी सदस्य हैं और आय काफी कम है. इसलिए इस आटा को खाना इनकी मजबूरी है. वे लोग खुले बाजार में बिकनेवाली आटा खरीदकर नहीं खा सकते हैं. सरकार से मिलनेवाली राशन पर ही उनकी जीविका निर्भर है. ऐसे लोगों के लिए काफी समस्या हो गयी है. इसप्रकार के कुछ लोगों ने आटा में बालू मिला होने की शिकायत की. सभी अपने डीलर का नाम भी शिकायत में डाल दिया. उनकी इस समस्या को प्राभात खबर ने गंभीरता से लिया और विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित करते ही प्रशासनिक स्तर पर हलचल मच गयी. शिकायतकर्ताओं पर शिकायत वापस लेने के लिए डीलरों का दबाव बढ़ने लगा.
क्वालिटी कंट्रोल विभाग की जांच के बाद आटा पहुंचता है ग्राहकों के पास
ऑल बंगाल राशन डिस्ट्रीब्यूटर एसोसिएशन बर्दवान जिला के सचिव सह सालानपुर प्रखंड इलाके में स्थित फेयर प्राइस शॉप में राशन सप्लाई करनेवाली एजेंसी सर्वमंगला के देखरेख करनेवाले विश्वनाथ दत्ता ने बताया कि फ्लॉवर मिल से आता पैकेटिंग होकर डिस्ट्रीब्यूटर के पास आता है और डिस्ट्रीब्यूटर से यह डीलर के पास जाता है, यहां से उपभोक्ता को मिलता है. फ्लॉवर मिल में पैकेटिंग होने से पहले आटा की गुणवत्ता की जांच क्वालिटी कंट्रोल विभाग के अधिकारी करते हैं, उसके बाद ही यह पैकेटिंग आटा बाहर आता है. यदि आटा में बालू है तो उपभोक्ता को अपने डीलर से इसकी शिकायत करके माल वापस कर देना चाहिए. डीलर डिस्ट्रीब्यूटर को शिकायत करेगा और डिस्ट्रीब्यूटर मिल मालिक से शिकायत करके उपभोक्ता को फ्रेश आटा मुहैया कराएगा. बालूयुक्त आटा मिल रहा है तो यह गलत है. जिस उपभोक्ता ने भी शिकायत किया है वह सही है. इसमें डिस्ट्रीब्यूटर और डीलर की कोई जिम्मेदारी नहीं है. जो माल आता है, वह सीधे ग्राहकों तक पहुंचता है.शिकायत वापस लेने को डीलरों के जरिये बड़ा दबाव, आखिर क्यों
प्रभात खबर के पास एक डीलर और शिकायतकर्ता के बीच हो रही बातचीत का ऑडियो मौजूद है. हालांकि इस ऑडियो की सत्यता की पुष्टि प्रभात खबर नहीं करता है. इस ऑडियो में डीलर शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत वापस लेने को अनेक ढंग से समझाने का प्रयास कर रहा है. डीलर इस बात को भी मान रहा है कि आटा में बालू मिला है और सुझाव दे रहे हैं कि गोलगप्पेवाले को या खटाल में 20 रुपये किलो के दर से आटा बेच दो और कुछ पैसा लगाकर अच्छा आटा खरीद लो. उसने यह भी कहा कि सर ने बोला कि शिकायतकर्ता से बात करके मामले को निपटा लो. डीलर किसी भी तरह शिकायतकर्ता को उसकी शिकायत वापस लेने के लिए समझाता रहा. यह बात समझ से परे है कि आटा खराब होने पर उसे वापस लेकर बेहतर आटा देने का प्रावधान है तो फिर शिकायतकर्ता पर क्यों दबाव बनाया जा रहा है? खराब आटा मुहैया कराने के लिए जो जिम्मेदार है, उन्हें बचाने के पीछे क्या रहस्य है? क्वालिटी कंट्रोल विभाग की ओर से आखिर क्या जांच करके इस खराब आटा को पास किया जा रहा है? यह सारे सावलों का जवाब मिलना बाकी है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है