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ग्लोबल वार्मिंग बड़ा खतरा, जीवन के लिए ग्रहों की तलाश शुरू

आइआइटी-आइएसएम के निदेशक प्रो. डीसी पाणिग्रही ने रखी विस्तृत रिपोर्ट सामाजिक दायित्वों के तहत छात्रों से इस दिशा में सार्थक पहल करने का आग्रह आसनसोल. केएनयू के दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि आइआइटी-आइएसएम (धनबाद) के निदेशक प्रो. डीसी पाणिग्रही ने अपने अभिभाषण को ग्लोबल वार्मिग पर केंद्रित रखा तथा इस दिशा में पिछले ढ़ाई सौ […]

आइआइटी-आइएसएम के निदेशक प्रो. डीसी पाणिग्रही ने रखी विस्तृत रिपोर्ट
सामाजिक दायित्वों के तहत छात्रों से इस दिशा में सार्थक पहल करने का आग्रह
आसनसोल. केएनयू के दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि आइआइटी-आइएसएम (धनबाद) के निदेशक प्रो. डीसी पाणिग्रही ने अपने अभिभाषण को ग्लोबल वार्मिग पर केंद्रित रखा तथा इस दिशा में पिछले ढ़ाई सौ सालों में हुए कार्यो की विस्तृत रिपोर्ट रखी. उन्होंने इसके दुष्प्रभावों की भी चर्चा की. उन्होंने डिग्री पानेवाले लड़कें-लड़कि यों से इस दिशा में पहल करने का आग्रह किया.
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिग के खतरे को ढ़ाई साल पहले ही भांप लिया था तथा उसी समय से इस दिशा में काम शुरू हो गया था. उन्होंने कहा कि 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विज्ञानी ने ग्लेशियर के निरीक्षण के दौरान देखा कि वर्फ पर पड़ रही सूर्य की किरणों की गर्मी अपेक्षित रूप से वायुमंडल में नहीं जा रही है तथा वर्फ सामान्य से अधिक स्थिति में पिघल रही है. उसके बाद उन्होंने इस दिशा में अनुसंधान करना शुरू किया.
दशकों इस पर चर्चा होती रही. अनुसंधान में पाया गया कि वायुमंडल में 95 फीसदी से अधिक मात्र में रहनेवाली नाइट्रोजन या ऑक्सीजन गैस इसके लिए जिम्मेवार नहीं है, बल्कि कार्बन डाय ऑक्साइड इसके लिए मूल दोषी है. उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध तक इस पर गंभीरता से कार्य होता रहा. इस मामले में टर्निग प्वीाइंट तब आया जब एक विज्ञानी ने परीक्षम के बाद घोषणा कर दी कि ग्लोबल वार्मिग से विश्व को कोई खतरा नहीं है. क्योंकि समुद्र के पानी में उत्सजिर्त सीओटू से 26 गुणा अधिक क्षमता इस गर्मी को संग्रहित करने की है. लेकिन कुछ ही वर्षो बाद जब उन्होंने समुद्र के पानी का परीक्षण सुमद्र में जाकर किया तो उन्हें लगा कि उनका अनुसंधान सत्य नहीं है.
उन्होंने अपने ही अनुसंधान का खंडन किया. उन्होंने कहा कि समुद्र की विभिन्न स्तर की परत्ें अलग-अलग तरीके से रेसपांस करती है. उन्होंने कहा कि इसके बाद यह मामला विकसित तथा विकासशील देशों के बीच का मुद्दा बन गया. उन्होंने कहा कि गलिोबल वार्मिग के खिलाफ चल रहे अभियान में भारत भी पिछले साल अनुबांधिक रूप से शामिल हो गया है. उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिग का सबसे बुरा असर कृषि पर पड़ेगा तथा छोटे किसान पूरी तरह से बर्बाद हो जायेंगे. इसके साथ ही वर्फ के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा तथा समुद्र के किनारे बसे शहर यथा कोलकाता, मुबई, पुरी, गुजरात के तटीय इलाकों में बाढ़ स्थायी समस्या हो जायेगी. उन्होंने कहा कि इससे बचने के लिए दूसरे ग्रहों की तलाश शुरू हो गयी है. चांद से लेकर मंगल तक संभावनाएं तलाशी जा रही है.
लेकिन वहां का मौसन जीवन के अनुकूल नहीं है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से बचने का मूल उपाय अधिक से अधिक पेड़ लगाना तथा सीओटू का उत्सजर्न कम से कम करना. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी से निकल रहे छात्रों को सामाजिक दायित्व के तहत यह कार्य करना चाहिए.

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