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बंगाल में हिंदी की परवरिश की बांग्ला ने
बंगाल में हिंदी विषय पर आयोजित सेमिनार में मेयर जितेंद्र तिवारी ने बड़ी बहस को जन्म देते हुए कहा कि हिंदी की लड़ाई लड़ रहे लोगों को आजादी का अर्थ ही नहीं पता है. वे राज्य में उपलब्ध मौकों का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. मजे की बात रही कि जोरदार तालियों से हिंदी […]
बंगाल में हिंदी विषय पर आयोजित सेमिनार में मेयर जितेंद्र तिवारी ने बड़ी बहस को जन्म देते हुए कहा कि हिंदी की लड़ाई लड़ रहे लोगों को आजादी का अर्थ ही नहीं पता है. वे राज्य में उपलब्ध मौकों का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. मजे की बात रही कि जोरदार तालियों से हिंदी अकादमी से जुड़े लोगों ने इसका समर्थन भी किया. उलझन यह है कि मेयर श्री तिवारी का इशारा किनकी ओर था.
आसनसोल : काशी िहंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि बांग्ला भाषा ने पश्चिम बंगाल में हिंदी की परवरिश में महत्वपूर्ण योगदान किया है. वे मंगलवार को र्आसनसोल नगर निगम के अक्सक्यूटिव हॉल में हिंदी दिवस पर ‘बंगाल में हिंदी’ विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. इसकी अध्यक्षता मेयर जितेन्द्र तिवारी ने की. आयोजन आसनसोल नगर निगम की हिंदी अकादमी ने किया था. मौके पर हिंदी अकादमी के लोगो भी जारी किया गया.
प्रो. प्रधान ने कहा कि भारतीय भाषाओं की अपनी विशेषता है. हंिदूी ऐसी भाषा है, जो सभी संस्कृतियों और भाषाओं को अपने आप में समाहित करने की क्षमता रखती है. वर्षो पहले हिंदी बोलने वाले बंगाल में आये थे.
उन पर बंगलावासी सिर्फ भाषा, पोशाक से ही नहीं बल्कि उनके चरित्र पर मुग्ध हुए थे. उन्होंने कहा कि सभी हिंदी भाषी संत तुलसीदास और संत कबीर के पुत्र हैं. जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर मौजूद रहे शासन की परवाह किये बिना सैकडों वर्षो तक सृजन का काम किया. उन्होंने कहा कि विपत्ति सब पर आती है. संकट का मुकाबला डट कर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि वर्ष 1572 के आस पास मुगल शासक अकबर ने पठानों को हराकर बंगाल में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया था. तब से बंगाल में वाणिज्य, व्यवसाय के उद्देश्य से बहुत से भाषा के लोगों ने कदम रखे. जब अंग्रेजी राज आया. तब तक हंिदूी भाषा का बंगाल की संस्कृति, धर्म, आचरण में घुसपैठ हो चुका था. अंग्रेजी राज के दौर में अंग्रेजों ने हंिदूी भाषा के महत्व को समझा और बंगाल में रह रहे हंिदूी, भोजपुरी, अवधी, मैथिली भाषियों को अपने संपर्क में रखना शुरू किया.
िहंदी मां और बांग्ला मौसी के समान
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल में ही बंगाल में रह रहे शोधकर्ताओं ने भोजपुरी, अवधी, मैथिली के लोक गीतों का संकलन करना आरंभ किया था. उन्होंने कहा कि िहंदी भाषा मां और बांग्ला मौसी के समान है. बांग्ला ने बंगाल में हिंदी भाषा की परवरिश में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. स्वतंत्रता पूर्व बंगाल में बांग्ला पत्रिका के समानांतर ही हंिदूी भाषा की पत्रिकाओं का भी प्रकाशन आरंभ हो गया था. 1826 में हिंदी की पहली पत्रिका उदंड मरतड प्रकाशित हुई. उसके बाद से कई प्रकाशकों ने हंिदूी भाषा में पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित कीं. जो बंगाल सहित पूरे देश भर में प्रचलित हुए और बंगाल के बाहर के लोगों को बंगाल की साहित्य, संस्कृति के बारे में जानकारी दी.
मौके पर ये थे उपस्थित
मौके पर िहंदी अकादमी के अध्यक्ष डॉ विजय नारायण, सचिव उमा सर्राफ, विद्यासागर विश्वविद्यालय के डॉ दामोदर मिश्र, काजी नजरूल विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विषय के सहायक प्रोफेसर डॉ शांतनू बनर्जी, कथाकार सृंजय, नवीन चंद्र सिंह, डॉ राजेंद्र शर्मा, ब्रजेश पांडे, डॉ महेंद्र कुश्वाहा, डॉ केके श्रीवास्तव, मनोज यादव, विजय रवानी, एमएमआइसी (शिक्षा) अंजना शर्मा, एमएमआइसी (स्वास्थ्य) दिव्येंदु भगत, बोरो चेयरमैन अनिमेष दास, पार्षद विनोद यादव, पार्षद दीपक साव, पार्षद कल्याण दासगुप्ता, बबीता दास, पार्षद सीके रेश्मा रामाकृष्णन, पार्षद कविता यादव आदि उपस्थित थी. इसेक पहले मेयर श्री तिवारी ने प्रो. प्रधान को सम्मानित किया.
हिंदी की आजादी का मतलब समझे और उसका लाभ उठाये
मेयर श्री तिवारी ने कहा कि बंगाल में हिंदी की आजादी का मतलब समझे और आजादी का लाभ उठायें. उन्होंने कहा हिंदी भाषा और हिंदी भाषी अलग अलग बातें हैं. बंगाल में हिंदी भाषा विषय पर आयोजित सेमिनार का मतलब सिर्फ हिंदी भाषियों से नहीं है बल्कि सेमिनार में शामिल सभी भाषा के लोगों के जुडाव से है. हिंदी के उत्थान के लिए जो लड़ रहे हैं और हिंदी के उत्थान का अवसर भी उन्हें मिला है, परंतु वे उस अवसर का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. आसनसोल में बीबी कॉलेज और काजी नजरूल विश्वविद्यालय में हिंदी भाषियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने और आगे बढने के बेहतरीन अवसर मिल रहे हैं. परंतु यह दुर्भाग्य की बात है कि शिल्पांचल के हिंदी भाषी उन अवसरों का लाभ नहीं ले पा रहे हैं.
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