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KGMU के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में करोड़ों की वित्तीय गड़बड़ियां, लागत से 10-15 गुना ज्यादा के टेस्ट

UP News: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में करोड़ों की वित्तीय अनियमितताएं उजागर हुई हैं. फर्जी हस्ताक्षर, खरीद घोटाले, NHM फंड का दुरुपयोग और आपूर्तिकर्ताओं से संदिग्ध संबंध जैसे गंभीर आरोप सामने आए हैं. उच्चस्तरीय जांच की मांग जारी है.

UP News: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU), लखनऊ के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है. जांच से लेकर NHM के फंड के दुरुपयोग किया जा रहा है. साथ ही हर साल करोड़ों के सामान मंगाया जा रहा है, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है.

कई खरीद फाइलें संदेह के घेरे में

दरअसल, पिछले साल अप्रैल 2024 में कुलपति कार्यालय द्वारा विभागीय संकाय सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षरों का मामला सामने आया था, जिसकी पुष्टि जुलाई 2024 में फॉरेंसिक जांच से हो चुकी है. इसके बाद 27 अगस्त 2024 को संपन्न हुई 54वीं कार्य परिषद की बैठक में KGMU की वरिष्ठ डॉक्टर को पद से हटाते हुए मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की गई थी. इस दौरान विभाग की पूर्ववर्ती क्रय प्रक्रियाओं का भी ऑडिट की मांग की गई, क्योंकि कई खरीद फाइलें संदेह के घेरे में हैं.

हर साल हो रही करोड़ों की खरीद

विभागीय क्रय समिति का गठन फर्जी हस्ताक्षर मामले के बाद ही यह तथ्य सामने आया है कि ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में पहले से कोई क्रय समिति (Purchase Committee) गठित ही नहीं थी. समिति का गठन केवल फर्जी दस्तखत मामले उजागर होने के बाद ही किया गया. इस दौरान जांच में यह खुलासा हुआ कि हर साल करोड़ों के सामान मंगाया जा रहा है, जिसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है. स्टोर में रखे-रखे सामान खराब हो जा रहा है.

NHM फंड के दुरुपयोग के आरोप

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) द्वारा HIV, हेपेटाइटिस B व C और सिफलिस की जांच हेतु CHEMILUMINESCENCE मशीन से प्रति ब्लड बैग 265 रुपए की दर तय की गई है, जबकि विभाग में इसके लिए 500 रुपए से अधिक खर्च किया जा रहा है. कई ऐसे कंज्यूमेबल्स जिनकी अन्य संस्थानों में मुफ्त आपूर्ति होती है, उनका भी भुगतान विभाग द्वारा किया जा रहा है. AIIMS और अन्य संस्थानों के तुलनात्मक रेट से KGMU का खर्च कई गुना अधिक पाया गया है. ऐसे कई टेस्ट कराए गए हैं जिनकी लागत सामान्य से 10 से 15 गुना अधिक है, जबकि बाजार में सस्ते और विश्वसनीय विकल्प मौजूद हैं.

डिस्टिल्ड वॉटर पर हर साल खर्च हो रहे 10 लाख रुपए

एक अन्य चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ है कि विभाग हर साल लगभग ₹10 लाख की डिस्टिल्ड वॉटर खरीद करता रहा है. पिछले 10–12 सालों में यह आंकड़ा ₹80–90 लाख तक पहुंच गया है, जबकि डिस्टिल्ड वॉटर प्लांट केवल ₹2–3 लाख में स्थापित किया जा सकता है.

याशिका इंटरप्राइजेज से संबंधों पर उठे सवाल

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, विभागीय आपूर्तिकर्ता याशिका इंटरप्राइजेज और विभाग की वरिष्ठ डॉक्टर के बीच सालों से कथित संबंधों की बात सामने आई है. याशिका इंटरप्राइजेज पर GST बिल रद्द कर के भुगतान प्राप्त करने के गंभीर आरोप लगे हैं. इस विषय पर पूर्व में भी कुलपति कार्यालय को शिकायतें की गई थीं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

सूत्रों के अनुसार विभाग से जुड़े अधिकारी राज्य के सीनियर अधिकारियों और प्रभावशाली राजनेताओं के संपर्क में हैं, जिससे बार-बार जांच को प्रभावित करने के प्रयास होते रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि फर्जी हस्ताक्षर जैसे गंभीर मामले में भी एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया है. इससे यह कयास लगाया जा रहा है कि इस बार भी जिम्मेदारों को बचा लिया जाएगा.

Shashank Baranwal
Shashank Baranwal
जीवन का ज्ञान इलाहाबाद विश्वविद्यालय से, पेशे का ज्ञान MCU, भोपाल से. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के नेशनल डेस्क पर कार्य कर रहा हूँ. राजनीति पढ़ने, देखने और समझने का सिलसिला जारी है. खेल और लाइफस्टाइल की खबरें लिखने में भी दिलचस्पी है.

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