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UP Jail: यूपी में क्षमता से अधिक कैदियों के दबाव से जेल बेहाल, जज को भी लिखनी पड़ी चिट्ठी, बिगड़ रहे हालात

यूपी में हाल ही में गाजियाबाद के जज ने कमिश्नर को पत्र लेकर छोटे अपराधियों में भी नामजद को सीधे जेल भेजे जाने पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने एक महीने में ऐसे 535 बंदियों को जेल भेजने का जिक्र किया था. ये स्थिति पूरे प्रदेश की है. क्षमता से कई गुना बंदियों की मौजदगी से स्थिति भयावह हो रही है.

Lucknow: यूपी की जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों की मौजूदगी के कारण स्थिति भयावह होती जा रही है. हालत ये है कि पूरे प्रदेश में कोई भी कारागार ऐसा नहीं है, जहां क्षमता के मुताबिक बंदी रखे गए हों.

बंदियों के दबाव के कारण कई बार संभालना होता है मुश्किल

हर जगह जेलों में दबाव बेहद ज्यादा है. ऐसे में कई बार इन बंदियों को संभालना मुश्किल हो जाता है. वहीं इन बंदियों में कई कुख्यात माफिया और पेशेवर अपराधी भी शामिल हैं. खास बात है कि बीते कुछ वर्षों में कोर्ट से फैसला होने के बाद सजायाफ्ता बंदियों की संख्या में इजाफा हुआ है. इसी तरह विचाराधीन बंदियों की संख्या भी 30 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है.

जज ने भी जेलों में बंदियों के दबाव को लेकर जताई आपत्ति

जेलों में बंदियों के दबाव को खुद जज भी महसूस कर रहे हैं. इसलिए बीते दिनों गाजियाबाद के एक जज ने पुलिस कमिश्नर को लिखे पत्र में सीआरपीसी की धारा 107, 116 और 151 जैसी हल्की और निरोधात्मक धाराओं में बंद कैदियों को सीधे जेल भेजे जाने पर आपत्ति जताई है. एडीजे सुनील प्रसाद के मुताबिक जेल में बंद बंदियों से बातचीत के दौरान पता लगा कि कार्यपालक मैजिस्ट्रेट न्यायालय में कोई सुनवाई नहीं है और एक तरफा फैसला दे दिया जाता है.

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गाजियाबाद में 48 फीसदी बंदी मामूली धाराओं में सलाखों के पीछे

डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के सचिव अपर जिला जज सुनील प्रसाद ने एक पत्र गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर अजय कुमार मिश्र को भेजा है. इसमें उन्होंने कहा है कि गाजियाबाद की डासना जेल में 1 मई से 29 मई 2023 तक 535 बंदी, धारा-107, 116 और 151 सीआरपीसी के तहत बंद हुए हैं. जबकि मई 2022 में इन धाराओं में सिर्फ 8 बंदी जेल में बंद हुए थे.

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इन 535 बंदियों के अलावा अन्य अपराध में 562 बंदी जेल में बंद चल रहे हैं. इस तरह करीब 48 फीसदी बंदी वे हैं, जो बेहद मामूली धाराओं में जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे हैं. ये भी सामने आया है कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट आम तौर पर अत्याधिक राशि निर्धारित कर देते हैं, जिसे देने में बंदी सक्षम नहीं हैं और इस वजह से उनकी जमानत मिलने में देरी से जेलों में दबाव बढ़ रहा है.

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80 हजार से ज्यादा विचाराधीन बंदी

रिकॉर्ड के मुताबिक यूपी में केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार आदि में क्षमता से 173 प्रतिशत अधिक बंदी इस समय मौजूद हैं. ऐसे में जेलों में क्षमता से अधिक दबाव को समझा जा सकता है. इनमें से 62 जिला कारागारों में वर्तमान में क्षमता से 194 प्रतिशत अधिक बंदी होने से हालात बेहद खराब होते जा रहे हैं. कई बार तो स्थिति संभालना काफी मुश्किल हो जाता है. जिला कारागारों में 15,736 सजायाफ्ता और करीब 80 हजार विचाराधीन बंदी हैं. अगर विचाराधीन बंदियों के मामले में तेजी से फैसला हो, तो जेलों में दबाव कम हो सकत है.

नौ कारागारों में क्षमता से तीन गुना ज्यादा बंदी

इसके साथ ही नौ जिला कारागारों में बंदियों की संख्या तीन गुना से अधिक है. इनमें मुरादाबाद, देवरिया, ज्ञानपुर, सहारनपुर, जौनपुर, वाराणसी, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर और मथुरा शामिल है.

हर वर्ष बढ़ रही बंदियों की संख्या

इसके अलावा छह केंद्रीय कारागारों में से नैनी में क्षमता से 1.98 गुना, आगरा में 1.56 गुना, वाराणसी में 1.47 गुना, बरेली में 1.23 गुना अधिक बंदी वर्तमान में हैं. बीते दस वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में यूपी की जेलों में विचाराधीन बंदियों की संख्या 60,681 थी, जो वर्ष 2023 में बढ़कर 86 हजार से अधिक हो चुकी है.

सरकार भी मान चुकी है जेल में दबाव की स्थिति

कारागार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मवीर प्रजापति के बीते वर्ष सदन में पेश लिखित जवाब के मुताबिक यूपी में 1,21,794 कैदी बंद हैं. जेलों की क्षमता मात्र 64,223 कैदियों की है. गाजियाबाद जेल चार्ट में सबसे ऊपर बताया गया, यहां 1704 की क्षमता के मुकाबले 5637 कैदी बताए गए. इसी तरह मुरादाबाद जेल में 2995 अतिरिक्त कैदी बंद हैं जबकि अलीगढ़ जेल में 1178 की क्षमता के मुकाबले 4106 कैदी बताए गए.

Sanjay Singh
Sanjay Singh
working in media since 2003. specialization in political stories, documentary script, feature writing.

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