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जिन देशो में पोर्नोग्राफी वैध है, वहां यौन अपराध कम हैं : सुशान्त सिंह

लखनऊ : देश में बढते यौन अपराधों के लिये इंटरनेट को कठघरे में खड़ा किये जाने के बीच अभिनेता सुशान्त सिंह ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि समस्या हमारे समाज में है और शिक्षा के गिरते स्तर तथा संस्कारों की कमी की वजह से बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिये हमे अपने […]

लखनऊ : देश में बढते यौन अपराधों के लिये इंटरनेट को कठघरे में खड़ा किये जाने के बीच अभिनेता सुशान्त सिंह ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि समस्या हमारे समाज में है और शिक्षा के गिरते स्तर तथा संस्कारों की कमी की वजह से बढ़ रहे अपराधों को रोकने के लिये हमे अपने गिरेबां में झांकना होगा.लाइफ ओके चैनल के प्रमुख कार्यक्रम ‘सावधान इंडिया’ के नये संस्करण के प्रमोशन के सिलसिले में हाल में लखनउ आये शो के होस्ट सुशान्त ने पीटीआई से एक साक्षात्कार में कहा कि मै इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि इंटरनेट की वजह से यौन अपराध बढ रहे हैं.

प्रतिबंध लगाना समस्या का हल नहीं

जिन देशो में पोर्नोग्राफी वैध है वहां महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध हमारे देश की तुलना में कम है. उन्होंने कहाकि हमें अपने संस्कारों और शिक्षा को ठीक करना होगा. बच्चा क्या ग्रहण करे, यह उसे सिखाना होगा. ऐसे में बच्चा इंटरनेट से और क्या सीखेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप नेट पर भी प्रतिबंध लगा दें. मस्तराम के बारे में तो याद ही होगा, तो क्या मस्तराम की किताबें पढ़ने वाला शख्स हर जगह बलात्कार करता घूम रहा था. इंटरनेट को दोष देना कुतर्क है. हमें अपने गिरेबां मे झांकना सीखना पडेगा. यह पूछने पर कि क्या देश में पोर्नोग्राफी को वैध घोषित कर देना चाहिए, सुशान्त ने कहाकि मानव सभ्यता का नियम रहा है कि या तो आप किसी गलत चीज का उन्मूलन कर दें, और अगर उन्मूलन संभव नहीं है तो उसे सत्य मानते हुए स्वीकार कर लें. अगर आप देह व्यापार का उन्मूलन नहीं कर सकते तो आप उसे वैध घोषित करिये. एक तरफ तो आप कहते हैं कि देह व्यापार अवैध है, लेकिन मैं पूछता हूं कि देश का कौन सा ऐसा शहर है जहां रेड लाइट एरिया नहीं है.

यौनदमन ठीक नहीं

सुशान्त ने कहा कि सेक्सुअल रिप्रेजन यौनदमन कभी भी विशुद्ध भारतीय समाज का हिस्सा नहीं रहा. जिस दिन आपने सेक्स को वर्जना बना दिया , उसी दिन से समाज के लोग इंसानी फितरत के वशीभूत होकर गलत बताये जाने वाले काम को करना शुरु कर देते हैं. आप हार्मोन को नही रोक सकते. अगर बच्चे की जिज्ञासा को तर्कपूर्ण तरीके से शांत नहीं करेंगे तो बच्चा उसका जवाब गलत जगह पर ढूढ़ेगा. गांव देहात तक में यौन अपराध बढने का यह प्रमुख कारण है. उन्होंने कहाकि अपराध बढ़ने का क्या कारण है, यह बहुत विषम प्रश्न है. शिक्षा से लेकर संस्कारोंतक हमारे संसाधन सिकुडते जा रहे है. गरीब और अमीर के बीच का फासला बढता जा रहा है. नई पीढी में संस्कार उस तरह नहीं पहुंच रहे हैं जैसे पहले पहुंचते थे.

शिक्षा में गिरावट बड़ा कारण

शिक्षा का लगातार अवमूल्यन हो रहा है. मूल्यों का क्षरण हो रहा है. रिश्वत और भ्रष्टाचार तो मानो जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है. ऐसे में हम किस मुंह से संस्कारों की बात करेंगे. इस सबका नतीजा है कि हमारा समाज काफी हद तक नैतिक रुप से पतित हो चुका है. सुशान्त ने कहा कि सरकारी स्कूलों का हालत देख लीजिये. आज जिसे कही नौकरी नहीं मिलती है वह शिक्षक बन जाता है. यानी जो किसी काम के लायक नहीं है, वह हमारे बच्चों को शिक्षा दे रहा है. उसके लिए भी उसे रिश्वत देनी पडती है. उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि भ्रष्टाचार के रास्ते से होकर कक्षा में पढाने आया शिक्षक हमारे नौनिहालों को नैतिकता की शिक्षा कैसे दे सकता है, तो कैसा समाज बना रहे है हम. शिक्षा व्यवस्था की इन खामियों की तरफ तो सरकारें ध्यान देती ही नहीं है.

सरकार से कुछ जगह पर चूक हुई

देश में कथित असहिष्णुता के सवाल पर सुशान्त ने कहा कि हमारे मुल्क में असहिष्णुता हमेशा से रही है. लोगों का यह कहना कि पिछले छह आठ महीनों में असहिष्णुता बढ गयी है, यह तथ्य नहीं है. पिछले छह आठ महीनों के दौरान हुई कुछ घटनाओं से गलत संकेत गये हैं और सरकार की तरफ से फौरन एक कड़ा संदेश आना चाहिए , वह नहीं आया. बस यहीं पर चूक हुई है. सावधान इंडिया’ के नये सीजन के बारे में सुशान्त ने बताया कि इस सत्र में सोच भी कुछ बदली है. इस बार आधार में वैचारिक परिवर्तन लाया गया है. अभी तक उनका रवैया कड़ा था, लेकिन अब उसे बिल्कुल बदल दिया गया है. अब दर्शकों से संवाद वाला रवैया रहेगा. उन्होंने कहा कि परिवार के मुखिया खुद ब खुद घर के रक्षक बन जाते है. उन्हें हर चीज की फिक्र करनी होती है. मगर उसकी सराहना कोई नहीं करता. बच्चे उल्टे तुनकते है, उन्हें समझ में नहीं आता है कि वे खुशकिस्मत हैं कि कोई उनकी फिक्र करने वाला है. सावधान इंडिया के इस सीजन में हम ऐसे बडों को धन्यवाद दे रहे हैं.

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