-हरीश तिवारी-
इस बैठक में शाह के साथ ही भाजपा की सोशल मीडिया की केंद्रीय टीम और राज्य की टीम भी हिस्सा लेगी. वहीं शाह की दूसरी बैठक तीनों ही क्षेत्रों के अध्यक्षों, संगठन मंत्रियों और प्रभारियों के साथ होगी. क्षेत्रों के चुनिंदा अनुभवी नेता व कार्यकर्ता को ही इस बैठक के लिए आमंत्रित किया है. बैठक में ग्राम स्वराज, ग्राम चौपाल सहित प्रदेश में चले दूसरे अभियानों की शाह रिपोर्ट लेंगे. इसके साथ ही कौन मंत्री, विधायक या सांसद इसमें गायब रहा इसका भी हिसाब-किताब शाह के समक्ष रखा जाएगा. शाह बुधवार को वाराणसी में रूकेंगे और फिर मुख्यमंत्री योगी के साथ गुरुवार को आगरा जायेंगे, जहां ब्रज, कानपुर और पश्चिम क्षेत्र की बैठक होगी.
आगरा में शाह प्रबुद्ध सम्मेलन को भी संबोधित करेंगे. शाह का यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि राज्य में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन की उभरती चुनौतियों से पार पाने के लिए भाजपा को 2014 से बेहतर रणनीति बनानी होगी. शाह सबसे पहले गोरक्ष, काशी और अवध प्रांत की करीब 31 लोकसभा सीटों और 100 विधानसभा क्षेत्रों में काम कर रहे विस्तारकों के साथ शाह बैठक करेंगे.वहीं अपने संसदीय क्षेत्र के कील-कांटे दुरुस्त करने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी बुधवार को दो दिवसीय दौरे पर अमेठी पहुंचेंग. राहुल की नजर भी सपा बसपा के संभावित गठबंधन पर है. क्योंकि इस गठबंधन में कांग्रेस की क्या भूमिका होगी, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. जबकि बसपा मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस से गठबंधन चाहती थी, लेकिन कांग्रेस ने इस पर कोई सकारात्मक रूख नहीं जताया है.
जिसके कारण बसपा कांग्रेस से नाराज चल रही है. हालांकि उनके इस दौरे पर कांग्रेस के तमाम नेताओं की सांसें अटकी हैं कि क्या प्रदेश नेतृत्व पर कोई संकेत मिलेगा या नहीं. कांग्रेस के सांगठनिक चुनाव के बाद प्रदेश नेतृत्व को लेकर स्थिति साफ नहीं है. यह तय नहीं है कि प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद आगे भी इसी भूमिका में रहेंगे या नहीं. राज बब्बर काफी पहले ही प्रदेश की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में जाने की बात कह चुके हैं. जबकि प्रदेश कांग्रेस की नयी कमेटी भी घोषित नहीं हो रही है. ऐसे में राहुल गांधी के इस दौरे पर सभी नेताओं की निगाहें रहेंगी. यूपी नेतृत्व से लेकर यूपी में कांग्रेस की रणनीति तक साफ न होने के कारण कांग्रेस खुद को मौजूदा सरकार के खिलाफ खड़ा नहीं कर पा रही है. इस कारण कार्यकर्ता नेतृत्व की नीतियों पर अमल में गंभीरता भी नहीं दिखा रहे हैं.