Rourkela News : ओडिशा में एक माता-पिता ने ब्रेन डेड हो चुके डेढ़ साल से बेटे जन्मेश का अंग दान कर दो मरीजों को जीवन दान दिया. बच्चे के अंग एम्स, भुवनेश्वर में निकाले गये. जन्मेश को 12 फरवरी को एम्स भुवनेश्वर के बाल रोग विभाग में भर्ती कराया गया था. वह ‘फॉरेन बॉडी एस्परेशन एंड चोकिंग’ की बीमारी से पीड़ित था. डॉ कृष्णमोहन गुल्ला की देखरेख में उसका इलाज चल रहा था. जन्मेश को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) देने के बाद अगले दो सप्ताह तक उसे स्थिर करने के लिए गहन देखभाल टीम के प्रयासों के बावजूद 1 मार्च को बच्चे को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया. एम्स भुवनेश्वर की मेडिकल टीम ने शोक संतप्त माता-पिता को अंगदान की सलाह दी. माता-पिता की सहमति के बाद बच्चे के अंगों को जीवन रक्षक प्रत्यारोपण के लिए उपयोग करने की अनुमति दी गयी. डॉ. ब्रह्मदत्त पटनायक के नेतृत्व में गैस्ट्रो-सर्जरी टीम ने लिवर को निकाला और नयी दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज (आइएलबीएस) ले जाया गया, जहां इसे अंतिम चरण के लिवर फेलियर से पीड़ित एक बच्चे में प्रत्यारोपित किया गया. वहीं गुर्दों को निकाल कर एम्स भुवनेश्वर में एक किशोर मरीज में एक साथ प्रत्यारोपित किया गया. यूरोलॉजी विभाग के डॉ प्रशांत नायक के नेतृत्व में इस जटिल शल्य प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया. जनमेश ओडिशा में सबसे कम उम्र के अंगदाता बन गये. इसके अलावा यह राज्य में एन-ब्लॉक किडनी प्रत्यारोपण का दूसरा मामला था. एम्स भुवनेश्वर के कार्यकारी निदेशक, प्रो. डॉ. आशुतोष बिस्वास ने प्रत्यारोपण समन्वय टीम और इसमें शामिल चिकित्सा पेशेवरों की सराहना की. उन्होंने माता-पिता की असाधारण उदारता के लिए उनका हार्दिक आभार भी जताया. गहरे दुख की घड़ी में उनके निस्वार्थ निर्णय की सभी ने सराहना की. जनमेश लेंका और उनके माता-पिता के निर्णय की कहानी अंग दान के प्रभाव की एक शक्तिशाली याद दिलाती रहेगी खासकर बाल चिकित्सा मामलों में यह कहानी हमेशा याद की जाएगी. उनके नेक कार्य ने न केवल जीवन बचाया बल्कि भारत में बाल चिकित्सा अंग दान के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक मिसाल भी कायम की. जनमेश के पिता एम्स-भुवनेश्वर में छात्रावास वार्डन के रूप में काम करते हैं. जन्मेश के माता-पिता की शिक्षा राउरकेला में हुई है.
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