Bhubaneswar News: राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए. इसी प्रकार, यदि भारत की न्याय व्यवस्था को आम लोगों तक पहुंचाना है, तो उसे भी मातृभाषा आधारित बनाना होगा. यह बातें केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को संबलपुर में आयोजित ऑल ओडिशा लॉयर्स एसोसिएशन के 54वें वार्षिक सम्मेलन में कही. उन्होंने कहा कि ओडिशा के सभी न्यायालयों में कार्यकारी भाषा ओड़िया (मातृभाषा) होनी आवश्यक है. मातृभाषा ही अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा और सरल माध्यम है. भाषा की बाधा दूर होने पर ही समाज की अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति भी उचित न्याय प्राप्त कर सकेगा.
संविधान और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अधिवक्ता ही मुख्य प्रहरी
श्री प्रधान ने कहा कि संबलपुर के इस ऐतिहासिक शहर से ओडिशा के अधिवक्ता समाज के बीच जो एकता और एकजुटता का संदेश गया है, वह अत्यंत सराहनीय है. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अधिवक्ता ही मुख्य प्रहरी हैं. आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम विकसित भारत और विकसित ओडिशा के निर्माण का संकल्प ले चुके हैं, तब इसमें आप सभी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. आम जनता को न्याय प्रदान करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में आपकी निष्ठा और सेवा-भाव ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट में ओड़िया अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ानी होगी
श्री प्रधान ने कहा कि हमारे ओड़िया अधिवक्ताओं की बौद्धिक क्षमता अत्यंत उच्च कोटि की है. इसका श्रेष्ठ उदाहरण उत्कल गौरव मधुसूदन दास हैं. वे धर्म से भले ही ईसाई थे, लेकिन उन्होंने महाप्रभु श्रीजगन्नाथ के अधिकारों की रक्षा के लिए मुकदमा लड़ा था. उनकी दूरदृष्टि और कर्तव्यबोध के कारण ही आज जगन्नाथ संस्कृति अक्षुण्ण बनी हुई है. आज हमें भी उसी प्रकार जिम्मेदार बनते हुए सुप्रीम कोर्ट में ओड़िया अधिवक्ताओं की संख्या और प्रभाव को बढ़ाना होगा. उन्होंने कहा कि आगामी शताब्दी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. ओडिशा के गठन के 100 वर्ष 2036 तक पूरे होंगे और देश की स्वतंत्रता के 100 वर्ष 2047 तक पूरे होंगे. ऐसे समय में हमारी न्याय व्यवस्था का पूरी तरह भारतीय और मातृभाषा आधारित होना आवश्यक है. हमें पाश्चात्य सोच से बाहर निकलकर भारतीय संस्कृति और मूल्यों को अपनाना होगा.
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