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खोरठा के आधुनिक गीत-संगीत के पर्याय बन चुके हैं विनय तिवारी

खोरठा साहित्य व संस्कृति की जड़ों को मजबूत बनाने में पारंपरिक कलाकारों का अहम योगदान रहा है तो उसके तनों को फैलाने और नयी ऊंचाई देने में आधुनिक कलाकारों व साहित्यकारों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. खोरठा गीत-संगीत के क्षेत्र में किसी एक श्रेष्ठ गीतकार की करें तो निःसंदेह वह नाम विनय तिवारी है.

दीपक सवाल

खोरठा साहित्य व संस्कृति की जड़ों को मजबूत बनाने में पारंपरिक कलाकारों व साहित्यकारों का अहम योगदान रहा है तो उसके तनों को फैलाने और नयी ऊंचाई देने में आधुनिक कलाकारों व साहित्यकारों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. बात अगर आधुनिक खोरठा गीत-संगीत के क्षेत्र में किसी एक श्रेष्ठ गीतकार की करें तो निःसंदेह वह नाम विनय तिवारी है. पिछले करीब 25 वर्षों से खोरठा गीत-संगीत से जुड़े श्री तिवारी अब-तक एक हजार से अधिक गीतों की रचना कर चुके हैं. जेआरसीटी की खोरठा की सातवीं कक्षा की पुस्तक सामाजिक विज्ञान हमारी विरासत में भी इनकी लिखी रचनाओं का उल्लेख है. विश्वविद्यालय के खोरठा पाठ्यक्रमों में भी इनकी रचनाएं शामिल हैं.

टेप रिकाॅर्डर के कैसेट के दौर में शादी-ब्याह और पर्व-त्योहार जैसे खुशियों के मौकों पर खोरठा क्षेत्र में भी हिंदी फिल्मों के गाने या फिर भोजपुरी व नागपुरी गाने ही बजाये-सुने जाते थे. इस दौर में विनय ने ऐसे-ऐसे रोचक गीत लिखे कि लोगों को खोरठा गीत-संगीत को सुनने-गुनगुनाने के लिए मजबूर हो जाना पड़ा. केवल खोरठा भाषी क्षेत्र या झारखंड ही नहीं, बिहार, बंगाल, ओड़िशा, असम, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी इनके गीतों ने अभूतपूर्व लोकप्रियता का परचम लहराया है. इनके लिखे गीतों में जीवन की सतरंगी छटा के दर्शन होते हैं. सरल-सहज शब्दों में भाव-विषयों की इतनी सुंदर प्रस्तुति की जाती है कि सुनने वालों के दिलों में सीधे उतर जाते हैं. इनके गीत युवा दिलों को धड़काते हैं तो बजुर्गों को रिझाते हैं. वहीं, महिलाओं को ममता और करुणा से भर देते हैं.

बॉलीवुड के शीर्ष गायकों ने भी इनके लिखे गीतों को अपना स्वर दिया है. इनके गीतों की लोकप्रियता का ही नतीजा रहा कि टी-सीरीज जैसी कैसेट कंपनी ने इन्हें अपने लिए लिखने को अनुबंधित कर अनेक हिट एलबम बाजार में रिलीज किया. इनके गीतों को स्थानीय कलाकारों के अलावा बाॅलीवुड के कुमार शानु, उदित नारायण, सपना अवस्थी और भजन सम्राट अनूप जलोटा जैसे विख्यात कलाकार अपना स्वर दे चुके हैं. इनके लिखे अनेक सामाजिक गीत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में प्रकाशित होकर भी चर्चित हुए हैं. उनमें ‘ऐ भात रे’ विशेष उल्लेखनीय है.

इसके अलावा ‘मायं-माटी’, ‘कि रकम ओझराइ के राखल हें’, तोर हामर परेमक कहनी’, ‘मानुस आर बुझे नॉय रे भाय’, ‘मानुसे मानुस के मारे लागल’, ‘मिटे नायं दिहा माटिक मान’, ‘हामर नुनियाइं सोब जाने’, ‘फरक’, ‘बेस दिन ककर’, ‘भूखला भुखले रइह गेल’, एकक गो हिसाब हतय’, हामें तब-तक नायं मोरब’, ‘काट बइन के खरीस सांप’, तोर अंगे अंगे बिस भोरल’ आदि भी काफी चर्चित रचना है. वैसे, खोरठा के अलावा भोजपुरी और नागपुरी भाषाओं में भी इन्होंने गीत लिखे हैं और उसे भी लोगों ने काफी पसंद किया है.

एलबम के अतिरिक्त खोरठा फिल्मों के माध्यम से भी इस भाषा को ऊंचाई देने में इनकी अहम भूमिका रही है. ‘हामर देहाती बाबू’ नामक खोरठा फिल्म में पटकथा लेखन इन्हीं का है. प्रथम झारखंड अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस फिल्म को बेस्ट खोरठा फिल्म का अवार्ड दिया था. शार्ट फिल्म ‘पिता का मान बेटियां’ में पटकथा लेखन, निर्देशन एवं गीत लेखन का कार्य किया है. इसको द्वितीय झारखंड राज्य फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट खोरठा फिल्म का सम्मान मिला है. ‘दय देबो जान गोरी, व ‘करमा’ नामक खोरठा फिल्म में गीत लेखन इन्हीं का है. आनेवाली फ़िल्म ‘झारखंडेक माटी’ में गीतकार, ‘मोबलिंचिंग’ में सहनिर्देशन एवं गीतकार तथा खोरठा फिल्म ‘जोहार झारखंड’ में पटकथा एवं गीत लेखन की भूमिका निभा रहे हैं.

इन्हें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित होने का मौका भी मिल चुका है. इनमें झारखंड सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन द्वारा 2008 में ’खोरठा गौरव अवार्ड, पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग, सांस्कृतिक कार्य निदेशालय झारखंड सरकार द्वारा 21 मार्च 2016 को सांस्कृतिक सम्मान, श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान, प्रथम झारखंड अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘श्रीनिवास पानुरी मेमोरियल अवार्ड फॉर खोरठा लिटरेचर सम्मान, झारखंड फिल्म निर्माता संघ द्वारा झारखंड कला रत्न सम्मान आदि उल्लेखनीय हैं.

विनय तिवारी मूलतः धनबाद जिला अंतर्गत तोपचांची प्रखंड के रोआम गांव के निवासी हैं. गीत-संगीत के क्षेत्र में इन्हें यह मुकाम यूं ही नहीं मिल गया. इसके लिए काफी संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. गीत-संगीत से इन्हें बचपन से रुचि थी. स्नातक प्रतिष्ठा करने बाद किसी सरकारी या गैर सरकारी नौकरी में की बजाय खोरठा गीत-संगीत को एक नयी पहचान दिलाना जीवन का लक्ष्य बना लिया. इसके लिए उन्हें परिवार और समाज में विरोध का सामना भी करना पड़ा था. लोगों ने काफी उपहास भी उड़ाया. संघर्ष के दौरान काफी आर्थिक संकट से जूझना पड़ा था. किंतु वह दृढ़ निश्चयी थे. विचलित नहीं हुए. सारी चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी धुन में आगे बढ़ते गये.

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