चांडिल. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के विभिन्न गांवों में भादों महीने की पार्श्व एकादशी पर करम पूजा बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनायी गयी. इस पूजा को विशेष रूप से महिलाओं और युवतियों द्वारा उनके घर के आंगन में करम डाली गाड़कर करम देवता की पूजा-अर्चना के रूप में किया जाता है. करम पूजा प्रकृति और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है, जिसमें करम वृक्ष को प्रकृति का प्रतिनिधि और बहन को नारी का प्रतीक माना जाता है. झारखंड की यह अनूठी परंपरा प्रकृति से गहरे प्रेम और सम्मान को दर्शाती है. इस पूजा में महिलाएं उपवास रखकर करम देवता की आराधना करती हैं, परिवार की खुशहाली, शांति, समृद्धि और कृषि फसल की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं. पूजा स्थल पर करम गीत गाए जाते हैं, जिनमें आज तो रे करम राजा घर दुआर, काल तो करम राजा कांस नदी पारे, और भादो कर एकादशी करम गढ़ांय, जैसे लोकगीत शामिल होते हैं. महिलाएं ढोल नगाड़े और मांदर की थाप पर नृत्य करती हैं.
कुचाई में लोगों ने करम डाली गाड़ कर पारंपरिक ढंग से की पूजा-अर्चना
करम एकादशी पर खरसावां के झूमर कलाकार संतोष महतो ने विधि-विधान के साथ करम डाली को घर लाने और पूजा-अर्चना करने की परंपरा निभायी. उन्होंने अपने स्वरचित करम गीतों पर मांदर की थाप के साथ परिवार के सदस्यों के साथ नृत्य किया. उनके गाये गीतों में “कोनो मासे कुंदुआ, कोनो मासे आम गे, हां हो भादर मासे करम राजार नाम गे ” जैसे करम गीत शामिल थे. कुचाई के विभिन्न क्षेत्रों में धूमधाम से बुधवार को प्रकृति का पर्व करम पूजा मनायी गयी. इस पर्व में बड़ाबांबो, उदालखाम, मोसोडीह, शहरबेड़ा, तेतुलटांड, सोखानडीह, छोटाबांबो, तेलायडीह, जोरडीहा, कृष्णापुर के लोगों ने भाग लिया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

