साहिबगंज
शहर के मजहर टोला में नौजवान-ए-कमेटी के तत्वावधान में शुक्रवार की रात सीरतुन्नबी का भव्य जलसा-ए-आम आयोजित की गयी. इस मौके पर स्थानीय और बाहर से आए उलेमा-ए-किराम, शायर और मुकर्रिरों ने शिरकत की. पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जीवनी व उनकी शिक्षा पर विस्तार से रोशनी डाली. कार्यक्रम की सदारत मौलाना निजामुद्दीन ने की, जबकि संचालन नकाबत की जिम्मेदारी हाफिज नदीम ने किया. जलसे का आगाज हाफिज अब्दुल कादिर की तिलावत-ए-कलाम पाक से हुआ. इसके बाद शायर-ए-इस्लाम हाफिज इजहार ने नातिया कलाम पेश कर महफिल का माहौल रोशन कर दिया. इस जलसे की खास बात यह रही कि मुल्क के मशहूर मुकर्रिर मौलाना अताउर रहमान ने अपनी तकरीर से लोगों के दिलों को छू लिया. उन्होंने कहा कि हजरत मोहम्मद की आमद किसी एक कौम, बिरादरी या मजहब तक सीमित नहीं थी, बल्कि आप पूरी कायनात और तमाम इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए. उन्होंने बताया कि अल्लाह के रसूल की जिंदगी हर इंसान के लिए रहनुमाई का पैगाम है. उलेमा-ए-किराम ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम की आमद दुनिया के लिए रहमत और मसआले की तरह है. उन्होंने अमन, मोहब्बत और इंसानियत का पैगाम दिया. उलेमा ने यह भी कहा कि नबी-ए-करीम ने अपनी पूरी जिंदगी में जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने 27 जंगें लड़ीं, मगर उनकी तलवार से एक भी बेगुनाह इंसान का कत्ल नहीं हुआ. यह इस बात का सबूत है कि इस्लाम का असली पैगाम इंसानियत, इंसाफ और भाईचारा है. जलसे में बड़ी संख्या में शहर और आसपास के लोगों ने शिरकत की. श्रोताओं ने नातिया कलाम और तकरीरों को ध्यान से सुना. रसूल-ए-अकरम की सीरत को अपनी जिंदगी में अपनाने का संकल्प लिया. कार्यक्रम का समापन दुआ-ए-खैर के साथ हुआ, जिसमें मुल्क में अमन, चैन और भाईचारे की दुआ की गयी. मौके पर मुख्य रूप से मोहम्मद शाहीन आजम, मोहम्मद नोमान, मोहम्मद इकराम, मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद राशिद, मोहम्मद इकबाल, मोहम्मद सनावर सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे.
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