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10 बीघे में गन्ने की खेती कर किसानों ने बढ़ायी आमदनी

गुड़ तैयार करने की आधुनिक प्रक्रिया अपनाने पर हाे सकता है अधिक फायदा

मंडरो. साहिबगंज जिले के सदर प्रखंड अन्तर्गत हाजीपुर भिट्ठा व दियारा में किसान अपने खेतों में गन्ने की खेती करके अपने परिवार का भरण-पोषण काफी अच्छे तरीके से कर रहे हैं. हालांकि किसानों का कहना था कि बाढ़ की मार में इस वर्ष गन्ने की खेती बहुत ही कम हो पायी. इसके कारण गुड़ की चक्की बनाने में काफी परेशानी हुई. वहीं किसान भवेश कुमार यादव कहते हैं कि दियारा में कुल 10 बीघा खेत में गन्ने का बीज बोकर खेती करते हैं. यह फसल साल में एक बार ही उगायी जाती है, जो 10 से 12 महीने में तैयार हो जाती है. जब गन्ने की फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो इसे कोल्हू मशीन के माध्यम से रस निकाला जाता है. तब गुड़ बनाने के लिए एक कढ़ाई में कम से कम 15 टिन रस डाला जाता है और बड़े चूल्हा पर कम से कम डेढ़ घंटे तक गन्ने की रस को आग में पकाया जाता है, तब जाकर रस से गुड़ तैयार होता है. जब रस पूरी तरह से पक जाता है और गाढ़ा हो जाता है, तो इसे एक कढ़ाई से दूसरी कढ़ाई में डालकर गुड़ का चक्की बनाने का कार्य किया जाता है. इसमें एक चक्की में लगभग 15 से 20 किलो गुड़ तैयार हो पाता है. हालांकि किसानों का कहना था कि बाढ़ की मार में इस वर्ष गन्ने की खेती बहुत ही कम हो पायी. इसके कारण गुड़ की चक्की बनाने में काफी परेशानी हुई. हालांकि यह हम लोगों का प्रत्येक वर्ष का दैनिक मजदूरी कार्य है, जिसे अपने खेतों में गन्ने की खेती करके गुड़ बनाते हुए बाजार में बेचा जाता है. वहीं मजदूर जितेन्दर मंडल बताते हैं कि जिस प्रकार पहले गन्ने के रस से गुड़ बना कर बैलगाड़ी के माध्यम से गुड़ की चक्की लोड कर बाजार में बिक्री करते थे तो अच्छी-खासी इनकम हो जाती थी. लेकिन कुछ वर्षों से बाढ़ के चलते गन्ने की खेती में काफी घाटा लग रहा है. इस वजह से अच्छा मुनाफा भी नहीं हो पाता है. यदि हम किसानों को गन्ने की खेती के लिए सरकार की ओर से कोई मुआवजा या राशि देकर मदद की जाती है तो हम लोगों को गन्ने की खेती करने में और भी बढ़ावा मिल पाता. रस निकालने के लिए अब लकड़ी के कोल्हू का नहीं होता इस्तेमाल गन्ने की खेती कर रहे किसानों का कहना है कि पहले के जमाने में बैलों से कोल्हू चलाया जाता था. इससे चलने वाले पत्थर और लकड़ी के कोल्हू से गन्ने का रस निकलता था. लेकिन अब किसान आधुनिक मशीन से चलने वाले क्रशर का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे एक क्विंटल गन्ने से 75 से 80 लीटर तक रस आसानी से निकाला जा सकता है. इससे न केवल रस की मात्रा अधिक होती है, बल्कि मेहनत और समय की काफी बचत होती है. यही नहीं, इससे निकाला गया गुड़ अधिक स्वादिष्ट, स्वच्छ और गुणवत्ता से भरपूर होता है. इस प्रकार से गन्ने से गुड़ बनाने की यह आधुनिक तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. रंग, स्वाद व शुद्धता का भी रखा जा रहा ख्याल पहले उपकरणों के अभाव में गन्ने के रस से तैयार पेस्ट को हाथ से ही भेली यानी गोलाकार गुड़ बना दिया जाता था. पहले के जमाने में गुड़ की गुणवत्ता और सफाई का ध्यान रखना भी कठिन होता था. वहीं अब आधुनिक गुड़ यूनिट की सहायता से किसान गुड़ को न केवल बेहतर रूप दे सकते हैं बल्कि उसका रंग, स्वाद और शुद्धता का भी खास ध्यान रख सकते हैं. इस विधि से तैयार गुड़ बिल्कुल प्राकृतिक हो सकता है. हां, यह जरूर है कि गन्ने की कटाई यदि समय पर न की जाए तो गुड़ की गुणवत्ता खराब हो सकती है. कहा कि काली मिट्टी में गन्ने की खेती शानदार होती है. इससे प्राप्त गन्ना सबसे बेहतर गुणवत्ता वाला होता है. इसमें मिठास अधिक होती है. इससे बना गुड़ भी स्वादिष्ट होता है. यह कहने में संकोच नहीं होगा कि यदि किसान आधुनिक मशीनों की सहायता से सही समय पर गन्ने की कटाई करें और गुड़ तैयार करने की प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से अपनाएं, तो वे पारंपरिक विधियों की तुलना में काफी आमदनी कर सकते हैं.

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