तांत्रिक विधि से होती है मां श्मसान काली की पूजा 09 नंवबर फोटो संख्या- 01 पाकुड़ से जा रहा हैकैप्सन- माँ श्मसान काली पूजा स्थल प्रतिनिधि, पाकुड़जिला मुख्यालय के कालीतल्ला स्थित श्मशान काली मंदिर में लगभग 300 वर्षों से मां काली की पूजा तांत्रिक विधि से हो रही है. ग्रामीणों के अनुसार यहां पर सन 1735 से मां काली की पूजा शुरू हुई थी. राजा पृथ्वीचंद्र शाही के कार्यकाल में कालीतल्ला में श्मशान काली पूजा स्थल की स्थापना की गयी थी. मां तारा के परम शिष्य बामा खेपा के वंशज पूजा कराने आ रहे हैं. यहां प्रतिवर्ष काली पूजा के मौके पर हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी है. काली पूजा के दिन पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट निवासी बामा खेपा के वंशज सुशांतो भट्टाचार्य रा तांत्रिक विधि से मां काली की पूजा करते हैं. पौराणिक रीति-रिवाज से होती है पूजा श्मशान काली पूजा स्थल में पूजा-अर्चना को लेकर आधुनिकता को दूर रखा जाता है. पूजा के दिन यहां लाइटिंग की व्यवस्था नहीं की जाती है. माता की पूजा को लेकर साल व ताल के पत्तों से आकर्षक पंडाल बनाया जाता है. साथ ही पूजा स्थल पर मसाल जलाकर मां की पूजा अर्चना की जाती है. भव्य मेले का होता है आयोजनकाली पूजा के मौके पर शिव शक्ति क्लब द्वारा श्मशान काली पूजा स्थल में भव्य मेला का भी आयोजन किया जाता है. दुर्गम पहाड़ों एवं सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के पहाड़िया एवं आदिवासी ग्रामीण प्रतिमा दर्शन व पूजा अर्चना करने आते हैं.
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