रांची: आज विश्व धरोहर दिवस (वर्ल्ड हेरिटेज डे) है. इसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना है. यही विरासत हमें दुनिया के इतिहास से रूबरू कराती हैं. प्रत्येक देश और समुदाय का इतिहास बताती हैं. इन्हें बचाना और संरक्षित करना बेहद जरूरी है. झारखंड में भी ऐसी कई धरोहर हैं, जो हमारा गौरवशाली इतिहास यानी कल की दास्तां बताती हैं. इन धरोहर को देखकर गर्व होता है. इनमें कई धरोहरों को सरकार संरक्षित कर रही है़ कुछ लोग निजी स्तर पर भी इन विरासत को बचाने में जुटे हैं. पढ़िए खास रिपोर्ट़
यूनेस्को ने इस वर्ष विश्व धरोहर दिवस का थीम ‘विरासत और जलवायु’ तय किया है. इसके तहत एएसआइ रांची सर्किल दो दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करेगा. इसके लिए प्राचीन सरोवर और मंदिर के अवशेष स्थल बेनीसागर (पश्चिम सिंहभूम) को चिन्हित किया गया है. पहले दिन फोटो एग्जीबिशन लगेगा. इसमें भारत की ऐतिहासिक धरोहर को दिखाया जायेगा. वहीं 20 अप्रैल को रांची यूनिवर्सिटी के 60 विद्यार्थियों का दल विरासत यात्रा के दौरान आयोजन स्थल पर पहुंचेगा. इसमें प्रो डॉ दीवाकर मिंज और सहायक प्रो संजय तिर्की भी शामिल होंगे.
जगन्नाथपुर मंदिर, धुर्वा
धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर मंदिर राज्य संरक्षित स्मारिका में शामिल है़ अलबर्ट एक्का चौक से 14-15 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में हुआ था. मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने किया था. इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर के तर्ज पर बनाया गया है. मंदिर की ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है. परिसर में कई पेड़ सैकड़ों वर्ष पुराने हैं, जो वातावरण को शुद्ध करने में मददगार साबित हो रहे हैं.
1944 में पहली बार ए. घोष ने इस पुरातात्विक स्थल का भ्रमण किया. उन्होंने पाया की ईंटों की बनी 1.2 मीटर ऊंची दीवारें बारिश के कटाव से उभर आयी थीं. इन ईंटों की माप लेने के बाद उसपर वैज्ञानिक शोध शुरू हुआ. इस स्थल के निकट ही एक बड़ा कब्रगाह मिला, जिसमें सैकड़ों क्षैतिज पाषाण पट्टिकायें व उदग्र स्तंभ मिले. ए. घोष ने इस स्थल की पहचान एक कब्रगाह के रूप में की और प्रारंभिक सदियों में असुरों से जुड़ा पाया.
खूंटी जिला स्थित असुर पुरातात्विक स्थल सारिदकेल तजना नदी के तट पर है. एससी राय ने 1915 में इस पुरातात्विक स्थल का भ्रमण किया. जहां ईंटों और लाल मिट्टी से बने बर्तन के टुकड़े मिले थे. इलाके में सर्वेक्षण के दौरान सोने से बने आभूषण और पाषाण काल के मनके भी मिले. 1944 में ए घोष ने अब तक देखे गये सभी असुर पुरातात्विक स्थल में सबसे बड़ा बताया.
इन विरासतों को संजो कर रखने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रांची और कला संस्कृति विभाग झारखंड काम कर रहा है़ इसका लाभ मिला कि कई जर्जर इमारतों की मरम्मत हुई. साथ ही उजाड़ भवन और मंदिर को पर्यटन स्थल का रूप देकर उनकी चमक दोबारा लौटायी गयी़ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रांची सर्किल भी लगातार लोगों को जागरूक करने में जुटा है़
राज्य के तीन स्मारकों को राज्य संरक्षित स्मारक का दर्जा प्राप्त है. वहीं 13 स्मारक ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका हैं.
राज्य संरक्षित स्मारक
जगन्नाथपुर मंदिर, रांची
पलामू किला, पलामू
मलूटी मंदिर समूह, दुमका
राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक
हाराडीह मंदिर समूह, रांची
जामा मस्जिद, राजमहल
बारादरी, साहेबगंज
प्राचीन शिव मंदिर, लोहरदगा
महल एवं मंदिर समूह, नवरत्नगढ़, गुमला
प्राचीन सरोवर एवं मंदिर के अवशेष, बेनीसागर, पश्चिम सिंहभूम
प्राचीन किले के अवशेष, पूर्वी सिंहभूम
पुरातात्विक स्थल इटागढ़, सरायकेला-खरसावां
पुरातात्विक असुर स्थल सारिदकेल, खूंटी
पुरातात्विक असुर स्थल हंसा, खूंटी
पुरातात्विक असुर स्थल कुंजला, खूंटी
पुरातात्विक असुर स्थल खूंटी टोला, खूंटी
पुरातात्विक असुर स्थल कठर टोली, खूंटी
हाराडीह मंदिर
Posted By: Sameer Oraon