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ranchi news : रांची के डॉ जेडेक की किताब में होलीलैंड की यात्रा का दिलचस्प विवरण

ranchi news : रांची के डॉ वीएम जेडेक एवं उनकी पत्नी रीता जेडेक ने कुछ वर्षों पूर्व होलीलैंड की यात्रा की थी. उसका पूरा विवरण इनकी किताब में है.

रांची. रांची के डॉ वीएम जेडेक एवं उनकी पत्नी रीता जेडेक ने कुछ वर्षों पूर्व होलीलैंड की यात्रा की थी. यात्रा से लौटने के बाद डॉ वीएम जेडेक ने उस यात्रा का विवरण अपनी पुस्तक ””””होलीलैंड की यात्रा”””” में किया है. डॉ जेडेक की पुस्तक में इजराइल, जॉर्डन और मिस्र के उन स्थानों का जीवंत वर्णन है, जो बाइबल में वर्णित है. इनमें यीशु के जन्म स्थान बेतलेहम, जहां उनका जीवन बीता. जहां उन्होंने चमत्कार किये. जहां उन्हें क्रूसित किया गया और दफनाया गया, जहां से उनका स्वर्गारोहण हुआ.

किसी भी यात्री के लिए एक मार्गदर्शिका है यह पुस्तक

डॉ जेडेक ने अपनी पुस्तक में उन स्थानों की कई तस्वीरें भी डाली हैं. यह पुस्तक होलीलैंड की यात्रा पर जानेवाले किसी भी यात्री के लिए एक मार्गदर्शिका के रूप में है. बेतलेहम में जिस स्थान पर प्रभु यीशु का जन्म हुआ था, वहां पर चर्च ऑफ नेटेविटी बना हुआ है. सम्राट कांस्टेंटाइन ने इस बड़े चर्च का निर्माण कराया था, जो क्रूस के आकार का है. इस चर्च को 638 ईसा पूर्व में तोड़ डाला गया था. ईसाई योद्धाओं ने 11वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण कराया. इस चर्च में बेतलेहम का सितारा नाम से एक तारे की आकृति है. यह चांदी से बना है और प्रभु यीशु के जन्म स्थान का सूचक है. इसके अलावा गड़ेरियों का वह मैदान, जहां उन्हें स्वर्गदूतों ने दर्शन दिया था और प्रभु यीशु के जन्म का संदेश सुनाया था. इसके अलावा माउंट ऑफ टेंपटेशन जहां पर प्रभु यीशु 40 दिनों तक निराहार रहे थे और जिस स्थान पर शैतान ने उनकी परीक्षा ली थी.

गूलर का पेड़ आज भी हरा भरा है

येरीहो (जेरिको) शहर में एक गूलर का पेड़ आज भी हरा भरा पाया जाता है. सी-14 पद्धति द्वारा आंका गया है कि वह 3000 वर्ष पुराना है. अर्थात माना जाता है कि वह पेड़ प्रभु यीशु के समय में मौजूद था. इसके अलावा गोलगुथा व कलवरी नामक स्थान जो अब होली सेपहलकर चर्च के भीतर मौजूद है. यह वह स्थान है जो क्रूस यात्रा का 12वां पड़ाव था. यहां प्रभु यीशु को क्रूस मृत्यु दी गयी थी. इन सारे विवरण को इस पुस्तक में काफी जीवंत रूप में दर्शाया गया है. आमतौर पर होलीलैंड की यात्रा को तीर्थयात्रा के रूप में देखा जाता है, लेकिन डॉ जेडेक अपनी पुस्तक में इस यात्रा को तीर्थयात्रा के स्थान पर ऐतिहासिक अभियान बताते हैं. वे लिखते हैं कि इस यात्रा से किसी को पापों का उद्धार नहीं मिल सकता और न ही अनंत जीवन. जो सिर्फ विश्वास से ही किसी को कहीं पर भी प्राप्त हो सकता है.

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