रांची. आदिवासी संघर्ष मोर्चा ने बिरसा की विरासत से प्रेरणा लेकर जल, जंगल, जमीन और संस्कृति की लड़ाई के लिए उलगुलान का आह्वान किया है. यह उलगुलान उस दमन के खिलाफ है, जो कॉरपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले आदिवासियों और आदिम जनजातियों पर हो रहा है. उक्त बातें भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कही. वह रविवार को राजधानी के एसडीसी सभागार में आदिवासी संघर्ष मोर्चा के दो दिवसीय राष्ट्रीय कन्वेंशन के पहले दिन सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि आज देश में आदिवासियों की जमीन की लूट एक संगठित प्रक्रिया बन गयी है. इसमें सरकारें भी उनका साथ दे रही हैं. कॉरपोरेट परस्त नीतियों के तहत सीएनटी-एसपीटी जैसे कानूनी संरक्षणों को निष्प्रभावी बनाया जा रहा है. खनिजों की लूट और वन क्षेत्रों पर हो रहे अतिक्रमण को विकास के नाम पर जायज ठहराया जा रहा है. जो भी इस लूट के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें दमन, गिरफ्तारी, और फर्जी मुकदमों का सामना करना पड़ता है. दीपंकर ने कहा कि बिरसा मुंडा ने हमें सिखाया कि जहां दमन होगा, वहां से उलगुलान फूटेगा. हम साझा आंदोलन तैयार कर इसी भावना से आगे बढ़ेंगे.
आदिवासी संघर्ष मोर्चा करेगा लड़ाई का नेतृत्व
चर्चा के दौरान आदिवासी संघर्ष मोर्चा के प्रभारी व भाकपा (माले) केंद्रीय कमेटी सदस्य क्लिफ्टन ने कहा कि संसाधनों की लूट, संस्कृति पर हमला और आदिवासियों की आवाज को कुचलना इनकी एकमात्र नियति बन गयी है. लेकिन, अब यह संघर्ष टुकड़ों में नहीं, बल्कि इस लड़ाई का नेतृत्व आदिवासी संघर्ष मोर्चा करेगा. वही, सिकटा के विधायक वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता, ओडिशा से आये त्रिपति गमांगो, असम की आदिवासी नेत्री प्रतिमा एपीजी ने एक ट्रेंड को सामने रखते हुए कहा कि देशभर से आये प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों के अनुभव साझा कर रहे हैं, जो सभी जगहों पर एक ही पैटर्न को दर्शा रहा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है