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सपनों की दीवारें ढहीं, मासूम पढ़ती रही, जैसे कुछ टूटा ही नहीं

बिरसा चौक बाइपास रोड के किनारे एचइसी के आवासीय परिसर में शनिवार को चला अतिक्रमण हटाओ अभियान दर्जनों परिवारों के लिए कयामत बन गया.

प्रवीण कुमार, रांची. बिरसा चौक बाइपास रोड के किनारे एचइसी के आवासीय परिसर में शनिवार को चला अतिक्रमण हटाओ अभियान दर्जनों परिवारों के लिए कयामत बन गया. अचानक पहुंची जेसीबी मशीनों ने देखते-ही-देखते उनके दशकों पुराने आशियानों को मलबे के ढेर में बदल दिया. इस हृदय विदारक मंजर में एक तस्वीर ऐसी भी उभरी, जिसने हर संवेदनशील मन को झकझोर दिया. उजाड़ दिये गये घर के मलबे के पास एक पांच-छह साल की बच्ची, अपने छोटे हाथों में एक किताब थामे, दुनिया से बेखबर कुछ पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उसकी मासूमियत बता रही थी कि उसे इस त्रासदी की भयावहता का तनिक भी आभास नहीं है कि अब उसका घर कहां है और आगे उसका भविष्य क्या होगा. यह केवल एक अतिक्रमण हटाओ अभियान नहीं था, बल्कि उन परिवारों की उम्मीदों और सपनों पर चला बुलडोजर था, जिन्होंने दशकों से यहां अपना छोटा सा संसार बसाया था. बेघर हुए लोगों की आंखों में अचानक सूनापन और गहरी पीड़ा थी. वे नहीं जानते कि अब वे कहां जायेंगे, कैसे अपने बच्चों का पेट भरेंगे और कैसे एक बार फिर सिर छुपाने की जगह ढूंढेंगे. विकास की इस तेज रफ्तार में मानवीय संवेदनाएं कहीं पीछे छूट गयी हैं. यह घटना उन सवालों को जन्म देती है कि क्या ऐसे अभियानों से पहले इन बेसहारा लोगों के पुनर्वास का कोई विकल्प नहीं तलाशा जा सकता? मलबे के पास उस मासूम बच्ची के हाथों में थमी किताब शायद अब एक ऐसे भविष्य की गवाह बनेगी, जिसकी स्याही अभी लिखी जानी बाकी है और जिसमें उम्मीद कम, अनिश्चितता ज्यादा नजर आ रही है.

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