रांची. स्वामी ललितानंद गिरि ने कहा है कि परमहंस योगानंद कहा करते थे कि दूसरों के साथ मिल जुलकर रहना एक कला है. जो व्यक्ति दूसरों के साथ मिल-जुलकर सौहार्दपूर्ण तरीके से रहता है, दरअसल वह सुगंधित फूलों की तरह होता है. दूसरों के साथ मिल-जुलकर रहने से व्यक्ति तनावरहित व चिंतामुक्त रहता है. अगर आप खुद से खुश नहीं हैं, तो आपको कोई भी खुश नहीं रख सकता और न आप किसी के साथ खुश रह सकते हैं. इसलिए हर व्यक्ति को खुद को खुश रखने के महत्व को भी समझना चाहिए. आप खुद को खुश रखें. खुद को पसंद करें. आप स्वयं से प्रेम करना सीखिए. स्वामी ललितानंद रविवार को योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में आयोजित सत्संग में संदेश दे रहे थे. उन्होंने कहा कि पिछले चार-पांच वर्षों में आम आदमी की जीवनशैली में काफी बदलाव आया है. खासकर कोरोना के बाद हर व्यक्ति की जीवन शैली प्रभावित हुई है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग जो पशु प्रेमी होते हैं. वे पशुओं के साथ बड़े प्रेम से रहा करते हैं. पशुओं के साथ मेल-जोल बढ़ाना आसान भी हैं, क्योंकि वे शब्दों और अपने कार्यों से रिएक्ट नहीं करते, लेकिन आम आदमी से आप वैसी आशा नहीं रख सकते. आम आदमी आपकी कार्य शैली को देख शब्दों और कार्यों दोनों से रिएक्ट करता है. आप हर व्यक्ति से वैसी आशा नहीं रख सकते, जिसकी आपको चाहत है. वह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसने आपके बारे में क्या सोच बना रखी है. स्वामी ललितानंद ने कहा कि हर व्यक्ति परिवार से जुड़ा होता है. जहां उसका भावनात्मक लगाव होता है. परिवार मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. इसके बाद स्थान आता है, उस कार्यालय का जहां हमारा परिवार के बाद ज्यादा समय बीतता है. कार्यालय के लोगों के साथ भी हमारा आचरण सौहार्दपूर्ण होना चाहिए. अगर हम कार्यालय में अपने सहयोगियों के साथ बेहतर वातावरण बनाकर काम करेंगे, तो हम बेशक तनावमुक्त होंगे. कार्य में तेजी आयेगी.
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