नॉर्थ इस्ट के लोगों की पीड़ा झलकती है सोनी रूमछू की कविताओं में
रांची. अरुणाचल प्रदेश के युवा लेखक सोनी रूमछू को रांची में जयपाल जुलियस हन्ना पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वे अरुणाचल प्रदेश के ओलो (नोक्ते) जनजातीय समुदाय से हैं और लाजू तिरप नामक गांव के निवासी हैं. रांची प्रवास के दौरान सोनी ने अपने लेखन, अरुणाचल प्रदेश और वहां अपने समुदाय की स्थिति और वहां के हालात के बारे में अनुभव साझा किया. सोनी रूमछू हिंदी में कविता लिखते हैं. उनकी शिक्षा दीक्षा इटानगर में हुई है. हिंदी की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें साहित्य के प्रति रुचि हुई. उनकी कविताओं में अरुणाचल प्रदेश के जनजातीय समुदाय की स्थिति, प्रकृति की चिंता, नॉर्थ इस्ट के लोगों के प्रति देश के बाकी प्रदेश के लोगों का भेदभावपूर्ण रवैया आदि झलकता है. उनकी एक कविता अभिव्यक्ति की कुछ पंक्तियों को देखे हमारी अभिव्यक्ति हम नहीं तो और कौन करेगा, कोई करे भी तो हमसे बेहतर कौन करेगा…क्या वह बता पायेंगे कि चिंकी या चाइनीज बोलने पर दिल किस तरह पसीजता है….या यह बता पायेंगे कि कोई एकटक घूरता है तो कितनी असहजता होती है. इस कविता में उन्होंने नॉर्थ इस्ट के लोगों की उस पीड़ा को उकेरा है, जो उन्हें देश के बाकी हिस्सों में जाने पर झेलनी पड़ती है. सोनी बताते हैं कि वे जिस ओलो नोक्तो समुदाय से हैं उसकी जनसंख्या महज दस हजार के करीब है. आज से डेढ़ दो सौ साल पहले अंग्रेजों को अरुणाचल प्रदेश में उनके ही समुदाय ने चाय के पौधे की जानकारी दी थी. जिसके बाद भारत में भी चाय के बागान लगने लगे. सोनी ने कहा कि वे अपनी मातृभाषा में सोचते और विचारते हैं पर अभिव्यक्ति की भाषा तो हिंदी ही है. उन्होंने कहा कि परिवार और उनके मित्रों ने काफी प्रोत्साहित किया. झारखंड आकर वे काफी खुश हुए. कहा कि यहां अन्य लेखकों साहित्यकारों से मुलाकात हुई है. यह अनुभव उनके लेखन में और मददगार होगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

