रांची. दिल्ली में साहित्य अकादमी के तत्वावधान में आयोजित साहित्योत्सव के अंतिम दिन बुधवार को रांची के नागपुरी भाषा के सहायक प्रध्यापक व लेखक डॉ बीरेंद्र कुमार महतो शामिल हुए. डॉ बीरेंद्र ने नागपुरी भाषा पर अपना व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि नागपुरी भाषा झारखंड की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है. इस भाषा की मधुरता व सरलता के चलते भाषाविदों ने इसे ””बांसुरी की भाषा””, ””गीतों की रानी”” व ””मांदर की भाषा”” कह कर सुशोभित किया है.
1947 तक नागपुरी झारखंड की राजभाषा बनी रही
डॉ बीरेंद्र ने कहा कि 64वीं इस्वी में छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं ने नागपुरी भाषा को अपनी राजकाज की भाषा बनायी थी. तब से लेकर 1947 तक नागपुरी झारखंड की राजभाषा बनी रही. अंग्रेजों व ईसाई मिशनरियों ने भी अपने धर्म प्रचार के लिए इसे अपनाया. कालांतर में इसे लिखने के लिए कैथी, बांग्ला, उड़िया, मराठी, रोमन व देवनागरी लिपि का प्रयोग किया गया.उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान की दृष्टिकोण से नागपुरी एक स्वतंत्र भाषा है. इसका अपना विपुल साहित्य, शब्दकोश व व्याकरण है. साहित्योत्सव में डॉ महतो ने सात नागपुरी कविताओं का पाठ किया. इस सत्र में नागपुरी भाषा के अलावा असमिया, मलयालम, पंजाबी, संस्कृत, तमिल व उर्दू भाषा के साहित्यकारों ने भी अपनी-अपनी प्रस्तुति दी.
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