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कोयला कंपनियों से झारखंड को मिलेंगे हजारों करोड़, नीति आयोग रॉयल्टी दिलाने पर हुआ सहमत

झारखंड में कोयला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जमीन के एवज में राज्य सरकार को हजारों करोड़ रुपये मिल सकते हैं. नीति आयोग ने सरकार को ये भरोसा दिलाया है कि उन्हें बकाया राशि दिलाया जाएगा. झारखंड के 53 हजार एकड़ गैरमजरूआ भूमि का हो रहा है उपयोग

Jharkhand News, Ranchi News रांची : झारखंड में कोयला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जमीन के एवज में राज्य सरकार को हजारों करोड़ रुपये मिल सकते हैं. नीति आयोग ने राज्य सरकार और कोल कंपनियों के अधिकारियों की संयुक्त कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद बकाया राशि दिलाने का भरोसा दिलाया है. हालांकि, आयोग ने यह साफ कर दिया है कि कोयला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जमीन के बदले व्यवसायिक कार्य के लिए तय राशि नहीं दी जायेगी.

जमीन के एवज में कृषि कार्य में उपयोग के लिए निर्धारित राशि ही राज्य को दी जायेगी. जून 2020 में केंद्रीय कोयला मंत्री के साथ हुई मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बैठक के बाद कमेटी गठित की गयी थी. कमेटी ने राज्य के 12 जिलों में कोयला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जमीन का सर्वे कर रिपोर्ट 85 प्रतिशत पूरी कर ली है. नीति आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को कमेटी की रिपोर्ट जल्द उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.

53 हजार एकड़ गैरमजरूआ भूमि का हो रहा है उपयोग :

राज्य सरकार ने झारखंड में काम करनेवाली कोयला कंपनियों पर 32,734 करोड़ रुपये बकाया होने का दावा किया है. राज्य सरकार द्वारा यह दावा कॉमन कॉज मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया है. कोर्ट के नोटिस के बाद भी कोयला कंपनियां बकाया नहीं चुका रही हैं. राज्य में कोयला कंपनियों के नियंत्रण में 53064.25 एकड़ गैरमजरूआ भूमि है.

खनन या अन्य कार्य करने के एवज में यह कंपनियां राज्य सरकार को गैरमजरूआ जमीन के विरुद्ध सलामी (भूमि का मूल्य), लगान (रेंट) और सेस का भुगतान नहीं कर रही हैं.खान-खदानों के राष्ट्रीयकरण के समय कोयला कंपनियों को वर्ष 1973 में कोल बियरिंग एक्ट (सीबीए) के तहत जमीन दी गयी थी. कोयला कंपनियों ने अधिग्रहित की गयी रैयती भूमि के अलावा उसके पास की गैरमजरूआ जमीन पर भी खनन किया. कंपनियों द्वारा उस समय संबंधित अंचलों व उपायुक्त कार्यालयों में सामान्य आवेदन देकर केवल औपचारिकता पूरी की गयी.

गैरमजरूआ जमीन की बंदोबस्ती के लिए राज्य सरकार की स्वीकृति तक नहीं ली गयी. जमीन की बंदोबस्ती के एवज में राज्य सरकार भूमि का मूल्य (सलामी) लेती है. सलामी का पांच फीसदी लगान के रूप में देय होता है. इसके अलावा लगान पर 145 फीसदी सेस वसूली का प्रावधान है. संबंधित कंपनी द्वारा जमीन के स्थायी उपयोग की स्थिति में रेंट पांच की जगह 25 फीसदी हो जाता है. फिर उस पर 145 फीसदी सेस लगता है. इसी फार्मूले के तहत कोयला कंपनियों पर करीब 33 हजार करोड़ रुपये का बकाया है. इस राशि का आकलन वर्ष 2009 तक हुई भूमि अधिग्रहण से किया गया है.

विभिन्न कंपनियों पर राज्य सरकार का बकाया

संस्थान राशि

सीसीएल 13,699 करोड़

बीसीसीएल 17,344 करोड़

इसीएल 1,691 करोड़

सेल (कोयला खदान) 330 करोड़

डीवीसी (कोयला खदान) 360 करोड़

सेल (लौह अयस्क) 1,206 करोड़

अन्य कंपनियों पर भी बकाया है 1800 करोड़

राज्य में कोल कंपनियों के अलावा अन्य कार्य कर रही कंपनियों पर भी लगभग 1900 करोड़ रुपये का बकाया है. सेल और डीवीसी जैसी खनन कंपनियां राज्य को कुल 1896 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं कर रही हैं. राज्य सरकार द्वारा नीति आयोग से उक्त राशि दिलाने में भी सहायता करने का आग्रह किया गया है. दोनों ही कंपनियां नोटिस के बाद भी राज्य को बकाया राशि का भुगतान नहीं कर रही हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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