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हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं, रांची में बोलीं पद्मश्री छुटनी देवी

Jharkhand News: डायन-बिसाही का दंश झेलने और उसके खिलाफ जंग छेड़ने वाली पद्मी छुटनी देवी ने कहा है कि हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं. उन्होंने झारखंड की महिलाओं से डायन प्रथा की रोकथाम के लिए आगे आने की अपील की है. उधर, डॉ रामदयाल मुंडा शोध संस्थान ने डायन प्रथा को रोकने के लिए शोध शुरू करने की घोषणा की है.

Jharkhand News: अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नयी दिल्ली, झारखंड और रांची विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने मिलकर ‘इतिहास लेखन में महिला विमर्श’ विषय पर दो दिवसीय महिला इतिहासकार संगोष्ठी का आयोजन किया. संगोष्ठी का रविवार को समापन हो गया. इस संगोष्ठी में देश भर से आयी महिला शोधार्थियों ने 145 प्रपत्र प्रस्तुत किये. संगोष्ठी के दूसरे दिन 4 सत्रों में कुल 80 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये. समापन समारोह में मुख्य अतिथि पद्मश्री छुटनी देवी ने कहा कि हम भारत की नारी हैं, फूल नहीं चिंगारी हैं. उन्होंने कहा कि महिला और पुरुष एक समान हैं. दोनों एक-दूसरे से कम नहीं हैं और दोनों का महत्व है. उन्होंने डायन प्रथा की रोकथाम के लिए महिलाओं से आगे आने की अपील की.

डायन प्रथा पर रोक के लिए झारखंड में होगा शोध

इधर, डायन प्रथा जैसी सामाजिक कुरीति को रोकने के लिए डायन प्रथा पर शोध कराने की घोषणा डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान ने की है. संस्थान ने कहा है कि डायन प्रथा झारखंड के लिए अभिशाप है. झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र और खासकर आदिवासी समाज इस अंधविश्वास से प्रभावित हैं.

संपत्ति हड़पने के लिए महिलाओं को डायन बताकर मार डालते हैं

आये दिन डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित कर उनकी हत्या होती रहती है. विधवा, निःसहाय महिला व वृद्धा की संपत्ति हड़पने, साजिश के तहत महिलाओं को प्रताड़ित करने या उसकी हत्या करने में इस कुप्रथा का सहारा लिया जाता है. डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनने और जागरूकता अभियान चलाने के बाद भी न तो प्रताड़ना में कमी आयी है, न ही ऐसी घटनाओं पर अंकुश लग पाया है.

रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान ने की रिसर्च की तैयारी

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान, (मोरहाबादी, रांची) ने डायन प्रथा पर शोध करने की तैयारी कर ली है. शोध का विषय ‘किस तरह डायन प्रथा की वजह से आदिवासी समाज का सामाजिक और आर्थिक तानाबाना बिखर रहा है’ होगा. सरकार से शोध की स्वीकृति मिल गयी है.

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अब तक के अध्ययनों में क्या पता चला?

अभी तक विभिन्न स्तरों पर जो शोध या अध्ययन हुए हैं, उसमें डायन प्रथा को आदिवासी समुदाय में मौजूद अंधविश्वास और अशिक्षा से जोड़कर देखा गया है. हालांकि, संस्थान के प्रारंभिक अध्ययन से पता चला है कि डायन प्रथा की वजह से पीड़ित परिवार या व्यक्ति के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है. डायन करार देने के बाद पीड़ित व्यक्ति या परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है. इस कारण वह समाज और गांव से कट जाते हैं.

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शोध के परिणाम से डायन प्रथा पर अंकुश लगाने में मिलेगी मदद

ताजा शोध के जो परिणामों आयेंगे, उसकी मदद से सरकार को डायन प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए नीतियां बनाने में सहायता मिलेगी. यह भी जाना जा सकेगा कि डायन प्रथा पर अंकुश लगाने में अब तक के प्रयासों को और बेहतर कैसे किया जा सकता है.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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