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झारखंड में 44 साल बाद हो रही उत्पाद सिपाही की भर्ती, 10 वीं पास वाली नौकरी में मास्टर डिग्री वाले भी लगा रहे दौड़

झारखंड में इससे पहले उत्पाद विभाग में नियुक्ति साल 2016 में हुई थी. लेकिन वो नियुक्ति सहायक अवर निरीक्षक और अवर निरीक्षक के पदों पर हुई थी.

रांची : देश में सरकारी नौकरी पाने की चाहत तकरीबन हर युवाओं की होती है. झारखंड इससे अछूता नहीं है. खनिज और वन्य संपदा से भरपूर इस पठारी राज्य में सरकारी नौकरियों की स्थिति यह है कि अपनी मंजिल हासिल करने के लिए कई युवाओं की नौकरी पाने की उम्र ही गुजर जाती है और फिर सारी जिंदगी वे पछताते रहते हैं. फिलहाल सरकार ने तकरीबन 44 साल बाद उत्पाद सिपाही के पद के लिए भर्तियां शुरू की है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्पाद विभाग में सिपाही पद के लिए योग्यता केवल 10वीं पास है, लेकिन यह नौकरी हासिल करने के लिए मास्टर डिग्रीधारी युवा भी दौड़ लगा रहे हैं. बता दें कि सरकार ने उत्पाद सिपाही के लिए 583 पदों पर बहाली कर रही है. 

कब निकली थी उत्पाद सिपाही के पद पर अंतिम बार वैकेंसी

झारखंड में इससे पहले उत्पाद विभाग में नियुक्ति साल 2016 में हुई थी. लेकिन वो नियुक्ति सहायक अवर निरीक्षक और अवर निरीक्षक के पदों पर हुई थी. इसके बाद से इस विभाग में किसी भी प्रकार की कोई वैकेंसी नहीं आयी. उत्पाद सिपाही के लिए आखिरी बार वैकेंसी संयुक्त बिहार में साल 1980 में आयी थी. फिलहाल राज्य में उत्पाद सिपाही के कुल 622 पद सृजित हैं. जिसमें 589 पद रिक्त हैं. वहीं, सहायक अवर निरीक्षक के 105 में से 86 और अवर निरीक्षक के 125 में से 78 पद खाली हैं.

क्या है न्यूनतम योग्यता

उत्पाद सिपाही के लिए न्यूनतम योग्यता 10वीं पास है. लेकिन इस नौकरी के लिए मास्टर डिग्री धारक भी आवेदन किये हुए हैं. सरकारी नौकरी की दिवानगी का आलम ये है कि लोग अपने स्वास्थ्य की चिंता किये बगैर दौड़ में हिस्सा लेते हैं. ताजा मामला पूर्वी सिंहभूम का है जहां एक युवक नौकरी पाने की जिद दम लगाकर दौड़ा. लेकिन इसके बाद उसकी हालत खराब हो गयी और उसकी मौत हो गयी.

किस अत्याधुनिक तकनीक का किया जा रहा इस्तेमाल

झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने इस बार उत्पाद सिपाही की भर्ती में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया है ताकि शारीरिक जांच और दौड़ में किसी भी तरह की गड़बड़ी न हो सके. दौड़ की स्थिति का आकलन बारीकी से करने के लिए इस बार अभ्यर्थियों के पैर में आरएफआईडी यानि रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटिफिकेशन डिवाईस लगाया गया है. जब अभ्यर्थी आरएफआईडी लगाकर जमीन पर बिछे मैट से होकर गुजरते हैं तो दौड़ की स्थिति का आकलन काफी बारीकी से हो पाता है. बताया जाता है कि रेडियो तरंगों के इस्तेमाल से सबसे पहले पहुंचने वाले अभ्यर्थी को ट्रैकिंग करने में चयन समिति को इससे सुविधा हो रही है.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
इंटरनेशनल स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मीडिया से बीबीए मीडिया में ग्रेजुएट होने के बाद साल 2019 में भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया. 5 साल से अधिक समय से प्रभात खबर में डिजिटल पत्रकार के रूप में कार्यरत हूं. इससे पहले डेली हंट में भी बतौर प्रूफ रीडर एसोसिएट के रूप में भी काम किया. झारखंड के सभी समसमायिक मुद्दे खासकर राजनीति, लाइफ स्टाइल, हेल्थ से जुड़े विषय पर लिखने और पढ़ने में गहरी रूचि है. तीन साल से अधिक समय से झारखंड डेस्क पर काम किया. फिर लंबे समय तक लाइफ स्टाइल डेस्क पर भी काम किया. इसके अलावा स्पोर्ट्स में भी गहरी रूचि है.

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