7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड लौट रहे मजदूरों को रोजगार देने की संभावना तलाश रहे हेमंत सोरेन, वैज्ञानिक बोले : लाह को कृषि का दर्जा मिले, तो बढ़ेगा रोजगार

रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोरोना संकट के दौरान झारखंड लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की संभावना तलाश रहे हैं. इसी क्रम में कुछ दिन पहले उन्होंने राजधानी के नामकुम में स्थित भारत सरकार की संस्था भारतीय प्राकृतिक लाह एवं गोंद अनुसंधान केंद्र (आइआइएनआरजी) का जायजा लिया था. श्री सोरेन ने अधिकारियों से जानने की कोशिश की कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाह के माध्यम रोजगार दिया जा सकता है. आइआइएनआरजी के वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि लाह की खेती को कृषि का दर्जा दे दिया जाये, तो बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन हो सकता है.

रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोरोना संकट के दौरान झारखंड लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की संभावना तलाश रहे हैं. इसी क्रम में कुछ दिन पहले उन्होंने राजधानी के नामकुम में स्थित भारत सरकार की संस्था भारतीय प्राकृतिक लाह एवं गोंद अनुसंधान केंद्र (आइआइएनआरजी) का जायजा लिया था.

श्री सोरेन ने अधिकारियों से जानने की कोशिश की कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाह के माध्यम रोजगार दिया जा सकता है. आइआइएनआरजी के वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि लाह की खेती को कृषि का दर्जा दे दिया जाये, तो बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन हो सकता है.

भारत सरकार की यह संस्था 96 साल पुरानी है. 1924 में इसकी स्थापना हुई है. यहां के वैज्ञानिकों का मानना है कि झारखंड में वैसे भी सबसे अधिक लाह का उत्पादन होता है. अगर नीति में कुछ बदलाव हो और सरकारी स्तर पर ध्यान दिया जाये, तो लाह राज्य लोगों को कमाई का बड़ा जरिया हो सकता है. इसके लिए लाह को कृषि का दर्जा मिलना चाहिए.

भारत में पूरे विश्व का करीब 60 फीसदी (18 हजार टन) लाह पैदा होता है. इसमें 10 से 12 हजार टन के आसपास लाह झारखंड में ही तैयार होता है. इसके बावजूद झारखंड अभी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहा है. कई ऐसे पेड़ हैं, जिसका उपयोग झारखंड में लाह की खेती में नहीं हो पा रहा है. लाह को अब भी वन उत्पाद माना जाता है.

झारखंड में इतनी बड़ी मात्रा में लाह का उत्पादन होता है. इसके बावजूद यहां राज्य सरकार के स्तर से विकास के कोई ठोस योजना नहीं है. यहां लाह की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए कोई निदेशालय या बोर्ड भी नहीं है. राज्य में खादी बोर्ड या रेशम बोर्ड की तरह यहां भी लाह के विकास के लिए बोर्ड होनी चाहिए.

झारखंड में मात्र 10 से 12 फीसदी खेतों में ही सिंचाई की व्यवस्था है. बारिश नहीं होने पर किसान धोखा खा जाते हैं. लाह का उत्पादन कम सिंचाई में होता है. अगर किसान इसको अपनी पारंपरिक खेती के साथ जोड़ लें, तो उनको अतिरक्ति कमाई होगी.

वर्तमान सरकार ने प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के उद्देश्य से बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरुआत की है. इसमें फलदार वृक्षों को शामिल किया गया है. इसमें लाह पोषित वृक्षों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

धान की खेत के मेढ़ पर इसे लगा दिये जाने से कुछ वर्षों में किसानों को 20-25 फीसदी की अतिरिक्त आमदनी मिलनी शुरू हो जायेगी. परती भूमि पर भी इसे लगाया जा सकता है. झारखंड में बड़ी मात्रा में खदानों की भूमि है, जो ऐसे ही पड़ी हुई है. इसका उपयोग लाह पोषक पौधों को लगाने के लिए हो सकता है. लाह नकदी फसल की श्रेणी में आता है.

संस्थान ने सैमिया लता नाम का एक पौधा तैयार किया है. यह झाड़ीनुमा है. इसमें लाह तैयार होता है. इसकी खेती भी बंजर भूमि में करायी जा सकती है. एक हेक्टेयर में करीब आठ हजार पौधे लगाये जा सकते हैं. एक पौधा वर्ष में 150 से 200 ग्राम लाह देता है.

एक साल में एक एकड़ में 12 से 16 क्विंटल लाह पैदा हो सकता है. अभी बाजार में करीब 400 रुपये क्विंटल की दर से लाह बिक रहा है. इस हिसाब से करीब चार से पांच लाख रुपये की लाह किसान बेच सकते हैं. इसमें तीन लाख रुपये कमाई हो सकती है. इसके लिए हल्की सिंचाई की जरूरत होती है.

जिन पौधों से लाह निकलता है, उसे मनरेगा से जोड़ना चाहिए. इससे बाहर से आये मजदूरों को अभी रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. लाह पोषक पौधा लगाने, उसे बचाने आदि का काम मनरेगा से होने से लंबे समय तक प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिल पायेगा. 10-12 साल के बाद इन पौधों से उत्पाद भी मिलने लगेंगे. इसके साथ-साथ मनरेगा से पोषक पौधों का बगान भी लगाया जा सकता है. इससे कम खर्च में आनेवाले समय में अधिक कमाई हो सकती है.

झारखंड में लाह के प्रोसेसिंग की दिक्कत नहीं है. यहां जितना प्रोसेसिंग प्लांट है, उससे कम ही लाह का उत्पादन हो रहा है. इस कारण यहां के प्रोसेसिंग प्लाटों को कभी-कभी दूसरे राज्यों से बिना प्रोसेसिंग किया हुआ उत्पाद मंगाना पड़ता है.

संस्थान ने भी एक छोटी प्रोसेसिंग मशीन तैयार की है. इस पर अगर किसान समूहों को सरकार सब्सिडी दे, तो किसान खुद प्रोसेसिंग कर सकते हैं. प्रोसेसिंग होने के बाद उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है. इसको अधिक समय तक रखा भी जा सकता है. इससे किसान बाजार में मांग के हिसाब से कीमत प्राप्त कर सकते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें