15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

मुंडाओं का ऐतिहासिक मारांग बुरू जतरा

झारखंड की प्रमुख जनजातियों में संथाल, मुंडा एवं हो जनजाति द्वारा मारांग-बुरु की पूजा की जाती है. संथाल एवं मुंडा जनजाति में मारांग बुरु का स्थान निर्धारित है, लेकिन हो जनजाति में स्थान निर्धारित नहीं है.

डॉ पार्वती मुंडू

सहायक प्राध्यापक

जेएन कॉलेज, धुर्वा, रांची

झारखंड भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है. गोंडवाना भूमि का भाग होने के कारण झारखंड एक पठारी बहुल इलाका है. यहां सभी तरह के पठार देखने को मिल जाते हैं. रांची पठार में मारांग बुरु भी गुंबदनुमा पर्वत है. आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां प्रकृति की हर चीजों (पहाड़, नदी, नाला, पेड़-पौधे) से जुड़ी काफी मान्यताएं हैं. यहां के आदिवासी प्रकृतिपूजक होने के कारण वे अपने-अपने क्षेत्र के प्रकृति की पूजा एवं रक्षा करते हैं.

झारखंड की प्रमुख जनजातियों में संथाल, मुंडा एवं हो जनजाति द्वारा मारांग-बुरु की पूजा की जाती है. संथाल एवं मुंडा जनजाति में मारांग बुरु का स्थान निर्धारित है, लेकिन हो जनजाति में स्थान निर्धारित नहीं है. संथाल जनजाति का मारांग बुरु पारसनाथ पर्वत है, जो गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ियों की एक शृंखला है. मुंडा जनजाति का मारांग बुरु रांची जिले के सोनाहातु प्रखंड के नीमडीह गांव में स्थित है. हो जनजाति में स्थान निर्धारित नहीं होने के कारण उनकी हर पूजा में मारांग दड़े के बाद मारांग बुरु का नाम लिया जाता है. मारांग बुरू आदिवासियों का ईश्वर है. मारांग बुरु दो शब्दों के मेल से बना है – मारांग बुरु. मारांग का अर्थ– बड़ा, महान, पवित्र आदि होता है, और बुरू का अर्थ पहाड़, पर्वत होता है. इस तरह मारांग बुरू का शाब्दिक अर्थ बड़ा पहाड़, महान पर्वत या पवित्र पर्वत आदि है. मुंडाओं का मारांग बुरू पंचपरगना क्षेत्र में होने के कारण इसे ‘बोड़े पहाड़’ के नाम से जाना जाता है.

यह मुंडा जनजाति की आस्थाओं के अनगिनत पवित्र प्रतीकों में से मुख्य प्रतीक है. सिंगबोंगा के बाद द्वितीय सबसे बड़ा देवता मारांग बुरू ही है. यह मुंडाओं के लिए पवित्र धार्मिक दर्शनीय स्थान है. मारांग बुरू हजारों वर्षों से आज भी अपनी वास्तविक स्थिति में अवस्थित है. इस पहाड़ में आपकों सबसे पहले खूबसूरत और मंत्रमुग्ध करने वाला वातावरण मिलेगा. इसके ऊपर से इसके आसपास की खूबसूरती देखते ही बनती है. मारांग बुरू में एक गुफा भी है, जो अब बंद है. इसके पीछे एक दैविक दंतकथा प्रचलित है. मारांग बुरू की तराई से एक सुतिया (नाला) भी निकलती है जिसका नाम डुमरी है. प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के बाद अगहन महीने के दो दिन के चांद के बाद पूजा की जाती है. सबसे पहले मारांग बुरू की पूजा होने के बाद ही मुंडा जनजाति में अन्य बुरूओं की पूजा की जाती है. इस दिन भव्य मेला का आयोजन भी किया जाता है. इस मेले में सभी क्षेत्रों से मुंडाओं का आगमन होता है. पहले के समय में कुश्ती एवं पहलवानी की प्रतियोगिताएं भी होती थीं, पर अब नहीं होती है. केवल रीझ–रंग का कार्यक्रम होता है. पिछले चार-पांच सालों से यहां मुंडारी साहित्य का स्टॉल भी लगता है.

पिछले दो वर्षों से आदिवासी परिधान का भी स्टॉल लगाया जा रहा है. लोग इसे अपने अंगवस्त्र के रूप में पहनना काफी पसंद करते हैें. मेले के दिन कई नृत्य दल अपनी प्रस्तुति देते हैं. इस वर्ष मारांग बुरू की पूजा एक दिसंबर को किया जा रहा है. इस बार पांच बड़े नृत्य दल भाग ले रहे हैं. इस वर्ष दो नये स्टॉल भी लग रहे हैं. एक आदिवासी व्यंजन का और दूसरा वाद्य यंत्रों का. मारांग बुरू के ऊपर चढ़ते समय अपने-आप में एक एडवेंचर का एहसास होता है. मारांग बुरू सिर्फ एक पहाड़ नहीं है, बल्कि यह मुंडाओं की प्राकृतिक विरासत एवं एक शक्ति स्थान है, जिसमें उनकी अटूट आस्था है.

Prabhat Khabar News Desk
Prabhat Khabar News Desk
यह प्रभात खबर का न्यूज डेस्क है। इसमें बिहार-झारखंड-ओडिशा-दिल्‍ली समेत प्रभात खबर के विशाल ग्राउंड नेटवर्क के रिपोर्ट्स के जरिए भेजी खबरों का प्रकाशन होता है।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel