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झारखंड स्वास्थ्य सेवा के चिकित्सा पदाधिकारियों को नियुक्ति में प्राथमिकता देने पर लगी रोक, दिए गए ये निर्देश

झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य स्वास्थ्य सेवा के चिकित्सा पदाधिकारियों को नियुक्ति में प्राथमिकता देने पर रोक लगा दी है. असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति मामले में संशोधित नियमावली-2021 को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह फैसला लिया.

झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य के मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति मामले में संशोधित नियमावली-2021 को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दाैरान प्रार्थी व प्रतिवादी का पक्ष सुना. इसके बाद खंडपीठ ने मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति में राज्य के स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत चिकित्सा पदाधिकारियों को प्राथमिकता देने संबंधी झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की प्रेस विज्ञप्ति पर रोक लगा दी. खंडपीठ ने जेपीएससी को निर्देश दिया कि यदि प्रार्थी विज्ञापन के सारी अर्हता को पूरा करता है, तो उसे नियुक्ति के लिए कंसीडर किया जाये. साथ ही खंडपीठ ने राज्य सरकार व जेपीएससी को छह सप्ताह के अंदर शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दायर करने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 9 जनवरी 2024 की तिथि निर्धारित की.

इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि मेडिकल कॉलेजों में नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार ने वर्ष 2018 के झारखंड चिकित्सा शिक्षा सेवा नियुक्ति नियमावली को वर्ष 2021 में संशोधित किया था. संशोधित नियमावली में किया गया प्रावधान संविधान की आर्टिकल-16 के विपरीत है. प्रावधान असंवैधानिक है. प्रार्थी झारखंड के मूल निवासी हैं और उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई भी राज्य में की है तथा प्रैक्टिस भी यही कर रहे हैं.

प्रार्थी विज्ञापन के सारे मापदंड को पूरा करते हैं. साक्षात्कार में भी बुलाया गया, लेकिन नियुक्ति नहीं हो पायेगी, क्योंकि संशोधित नियमावली के तहत सिर्फ स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत चिकित्सा पदाधिकारियों को ही इस नियुक्ति में प्राथमिकता दी जायेगी. अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने बताया कि नियमावली से स्थानीय व सरकारी नौकरी करनेवाले को अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण दिया गया है, जो संविधान के विरुद्ध है तथा असंवैधानिक है. यह पद वर्ग दो का है, जिसमें देश के नागरिक नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं. सरकारी चिकित्सक को अलग से 10 नंबर दिये गये हैं. इसके बाद भी उन्हें प्राथमिकता देना अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण देने के समान है. विज्ञापन में कहीं भी इस प्राथमिकता के बारे में जिक्र नहीं किया गया है. जेपीएससी ने बाद में प्रेस विज्ञप्ति जारी की है, जो पूरी तरह से गलत है. इसमें कहा गया है कि झारखंड स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत चिकित्सा पदाधिकारी से ही इस पद के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगा गया है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मनीष कुमार मुंडा व अन्य की अोर से याचिका दायर कर संशोधित नियमावली को चुनाैती दी गयी है. जेपीएससी ने वर्ष 2022 में 110 असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन (संख्या-06/2022) जारी किया था.

  • मामला मेडिकल कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति का

  • झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य सरकार व जेपीएससी से मांगा जवाब

  • जेपीएससी ने वर्ष 2022 में विज्ञापन प्रकाशन के बाद प्राथमिकता देने को लेकर प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी

  • मामले की अगली सुनवाई नाै जनवरी 2024 को होगी

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