रांची. 150 साल पहले हमारे पूर्वजों को अंग्रेजों द्वारा यहां लाकर बसाया गया था. उन्हें शहर की सफाई, कार्यालयों की सफाई और सिर पर मैला ढोने जैसे कार्यों के लिए लाया गया था. समय बदला, देश आजाद हुआ, अंग्रेज चले गये. उसके बाद भी हम यहीं रहे. पिछले 150 सालों से हमलोग यहीं रह रहे हैं. लेकिन सरकार का ध्यान इस बस्ती की ओर नहीं है. उक्त बातें हरमू रोड स्थित वाल्मीकि नगर के निवासियों ने प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान कही. लोगों का कहना था कि सरकार पूरे राज्य में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास का निर्माण करवा रही है. तो फिर इस बस्ती का कायाकल्प क्यों नहीं हो रहा है. आखिर कब तक हम संकरी गलियों में एस्बेस्टस व झोपड़ीनुमा घरों में रहेंगे.
रघुवर दास ने दिया था आश्वासन, डीपीआर बनी लेकिन काम ठप
वर्ष 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास वाल्मीकि नगर आये थे. इस दौरान उन्होंने एक-एक व्यक्ति से बातचीत कर उनकी समस्याओं को जाना था. लोगों ने उन्हें बताया था कि शहर में हर ओर निगम द्वारा प्रधानमंत्री आवास का निर्माण किया जा रहा है. ऐसे में हमारे लिए भी पक्का मकान का निर्माण किया जाये. लोगों की मांग सुनकर उन्होंने निगम अधिकारियों को निर्देश दिया था कि यहां डीपीआर तैयार कर सभी के लिए पक्का मकान व सामुदायिक भवन का निर्माण किया जाये. मुख्यमंत्री के आदेश पर निगम के अधिकारी सक्रिय भी हुए. लेकिन कुछ दिनों के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
हल्की बारिश में ही घरों में घुसने लगता है पानी
संकरी गलियों में यहां नाली का भी निर्माण नहीं हुआ है. नतीजा यह होता है कि हल्की बारिश में ही घरों में पानी प्रवेश करने लगता है. एस्बेस्टस और खपड़े के मकानों से पानी चूने लगता है. दो साल पहले बारिश में भारी जलजमाव व पानी में करंट आने से एक बच्चे की मौत हो गयी थी.
शौचालय जर्जर, कभी भी हो सकता है हादसा
दो हजार से अधिक लोगों के लिए यहां एक ही सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया गया है. लेकिन यह शौचालय जर्जर हो चुका है. रोज सुबह शौचालय जाने के लिए लोगों को लाइन लगानी पड़ती है. जर्जर शौचालय से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.
जो हमारा मुख्य काम, उससे भी रखा जा रहा है वंचित
हमारे समाज का मुख्य काम सफाई करना है. अंग्रेजों के कालखंड से लेकर आज तक हमारे समाज के 90 प्रतिशत लोग सफाई का ही काम करते आये हैं. लेकिन जब से सफाई कार्य निजी कंपनियों को सौंपा गया है, यहां ठेकेदारी प्रथा शुरू हो गयी है. आज हालत यह है कि यहां के अधिकतर लोगों के पास कोई काम नहीं है. सारे बेरोजगार घर में ही बैठे हुए हैं. कुछ लोग मॉल या प्रतिष्ठान में काम कर रहे हैं, जहां उनका शोषण हो रहा है. एक कर्मचारी से तीन लोगों का काम करवाया जा रहा है. ऐसे में अब हम कहां जायें. चूंकि शुरू से ही हम सफाई कार्य से जुड़े थे, तो हमारे बच्चे शिक्षा को लेकर भी उतने जागरूक नहीं हैं. ऐसे में सरकारी नौकरी समाज के बहुत कम लोगों के पास है. सरकार को रोजगार के लिए पहल करनी चाहिए.
विनोबा भावे ने बसाया, लेकिन मोहल्ले का हाल बेहाल
मोहल्ले के लोगों की मानें तो 1918-19 में जब संत विनोबा भावे रांची आये थे, तो उन्होंने ताम्रपत्र देकर हमें यहां बसाया था. 1934 में महात्मा गांधी भी यहां आये थे. लेकिन इस मोहल्ले में रह रहे लोगों की समस्या को लेकर कोई भी अधिकारी गंभीर नहीं है.
सामाजिक कार्यों के लिए एक पंचायत भवन, वह भी टूटने के कगार पर
दो हजार लोगों के इस बस्ती में सामाजिक कार्यों के लिए एक पंचायत भवन का निर्माण किया गया है. लेकिन पिछले दो दशक से उसकी मरम्मत नहीं हुई है. नतीजा यह है कि वह पूरी तरह से टूटने के कगार पर है. भवन की इस जर्जर हालत को लेकर अब समाज के लोग उसमें घुसना तक नहीं चाहते हैं. सरकार से मांग है कि इस भवन को तोड़कर नया भवन बनाया जाये, ताकि हमलोग सामाजिक कार्य बिना व्यवधान के पूरा कर सकें.
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