रांची. शिक्षाविद और समाजसेवी स्व डॉ करमा उरांव की जयंती पर शनिवार को जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने स्व डॉ करमा उरांव की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. मौके पर स्व करमा उरांव की पत्नी शांति उरांव ने लोगों का आभार व्यक्त किया और कहा कि हम सभी यहां स्व करमा उरांव की स्मृतियों को साझा करने आये हैं. मौके पर रांची विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू एसके साहू ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से डॉ करमा के परिवार से जुड़ा हूं. डॉ करमा उरांव के सिद्धांत और आदर्श आज भी जिंदा हैं, इसलिए वे आज भी जीवित हैं. अलग राज्य के आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका थी. साहित्यकार महादेव उरांव ने कहा कि डॉ करमा उरांव मानव विज्ञानी थे, इसलिए वे आदिवासियों के जीवन को बेहतर तरीके से जानते थे. वे आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और आर्थिक उन्नति चाहते थे. वे जीवनपर्यंत युवाओं को प्रेरित करते रहे. जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि डॉ करमा उरांव के साथ शुरू से ही काम करने का मौका मिला. वे 40 देशों में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शामिल हो चुके थे. डॉ उमेश नंद तिवारी ने कहा कि वे उरांव जनजाति से थे, पर अपने कामों से वे विश्वमानव बन चुके थे. डॉ प्रकाश उरांव सहित अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया. इस अवसर पर रांची विश्वविद्यालय के सेवानिवृत कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडे, अभय कुमार चौधरी, सरस्वती गगराई, अभय सागर मिंज, वीरेंद्र सोय, किरण कुल्लू, प्रेमशाही मुंडा, रवि तिग्गा सहित अन्य उपस्थित थे.
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