राज्य में 50 साल बाद भी कई डैमों का निर्माण पूरा नहीं हो सका. वहीं दर्जन भर डैमों का निर्माण कई दशक से अधूरा पड़ा है. जो डैम बन कर तैयार हैं, उनका भी हाल दिन पर दिन बदतर होता जा रहा है. डैमाें की सिंचाई क्षमता में लगातार कमी आ रही है. जीर्णोद्धार के नाम पर करोड़ों खर्च के बाद भी डैमों का कैचमेंट क्षेत्र कम हो रहा है. नहरें सूख रही हैं. इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है. हर साल-दो साल में सुखाड़ की मार झेलनेवाले किसानों की खेतों को आवश्यकतानुसार पानी नहीं मिल रहा है.
डैमों से शहरी क्षेत्रों में पेयजलापूर्ति की सुविधा देने का विरोध शुरू हो गया है. जल संसाधन विभाग राज्य में लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा का दावा करता है. जबकि राज्य में 29.74 लाख हेक्टेयर खेती योग्य जमीन है. राज्य में कुल 31 सिंचाई परियोजनाएं हैं, जिसमे से नौ वृहत सिंचाई परियोजनाएं हैं. इन सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण में हुई देर का खामियाजा राज्य को भुगतना पड़ रहा है.
सिंचाई योजना - शुरू हुई - खर्च (करोड़ रुपये में) - सिंचाई क्षमता (हेक्टेयर में)
स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना - 1978 - 6639.56 - 10465
कोनार सिंचाई परियोजना - 1975 - 498.65 - 54435
पुनासी जलाशय परियोजना - 1982 - 506.02 - 22089
गुमानी बराज परियोजना - 1976 - 180.0 - 16194
अमानत बराज परियोजना - 1974 - 317.60 - 26990
शहीद नीलांबर-पीतांबर उत्तरी - 1970 - 102.97 - 22104
कोयल जलाशय परियोजना - 1970 - 102.97 - 22104
रामरेखा जलाशय योजना - 1987 - 50.48 - 4405
नकटी जलाशय योजना - 1983 - 29.92 ----
बटाने जलाशय योजना 1975 234.08 2360