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Special Story : मां की मुस्कान में छिपी है बच्चे की मासूमियत

राजधानी में मंगलवार को हुई एक घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया. एक मां ने अपने महज 15 दिन के नवजात को रोने से परेशान होकर फ्रिज में रख दिया और खुद सोने चली गयी.

पोस्टपार्टम साइकोसिस मेडिकल इमरजेंसी, लक्षण दिखने पर मनोचिकित्सक से करें संपर्क

डिलीवरी के बाद मां के स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना हो सकता है खतरनाक

सही इलाज और परिवार का सहयोग मिलने पर मां की स्थिति में सुधार संभव

राजधानी में मंगलवार को हुई एक घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया. एक मां ने अपने महज 15 दिन के नवजात को रोने से परेशान होकर फ्रिज में रख दिया और खुद सोने चली गयी. बच्चे की लगातार रोने की आवाज सुनकर परिवारवालों ने फ्रिज खोला तो देखा कि बच्चा अंदर रखा हुआ है. तुरंत उसे बाहर निकालकर डॉक्टर के पास ले जाया गया. डॉक्टरों ने बताया कि बच्चा सुरक्षित है. घटना के बाद जब महिला की स्थिति की जांच की गयी तो सामने आया कि वह पोस्टपार्टम साइकोसिस (पीपीपी) नामक मानसिक बीमारी से जूझ रही है. प्रभात खबर की इस रिपोर्ट में जाने की बच्चे के जन्म के बाद मां का भी ख्याल रखना जरूरी होता है. प्रस्तुत है

पूजा सिंह

की रिपोर्ट…

जानिए…क्या है पोस्टपार्टम साइकोसिस

विशेषज्ञों के अनुसार यह बीमारी प्रसवोत्तर मनोविकृति (डिलीवरी) के बाद कुछ महिलाओं को हो सकती है. यह सामान्य पोस्टपार्टम डिप्रेशन से कहीं अधिक गंभीर रूप है. इसमें महिला को अत्यधिक बेचैनी, नींद न आना, गुस्सा, भ्रम और कभी-कभी बच्चे या खुद को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इसका असर इतना गंभीर हो सकता है कि मां अपने कार्यों पर नियंत्रण खो देती है. चिकित्सकों का कहना है कि यह स्थिति दुर्लभ है. लेकिन, बेहद खतरनाक हो सकती है. हर 1000 प्रसूताओं में लगभग एक महिला को यह समस्या होती है.

प्रसव के बाद माताओं का खास ख्याल जरूरी

मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चे के जन्म के बाद माताओं को कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हार्मोनल बदलाव, नींद की कमी और जिम्मेदारियों के दबाव से उनके बर्ताव और सोच पर गहरा असर पड़ सकता है. इस दौरान यदि लक्षणों को नजरअंदाज किया जाये तो स्थिति गंभीर हो सकती है.

पोस्टपार्टम साइकोसिस के प्रमुख लक्षण

भ्रम और मतिभ्रम : ऐसी चीजें देखना या सुनना जो असल में मौजूद न हों.गंभीर मूड स्विंग्स : कभी अत्यधिक उत्साह, कभी गहरी उदासी.

अत्यधिक गुस्सा या बेचैनी : छोटी-सी बात पर चिड़चिड़ापन.असामान्य व्यवहार : अजीब हरकतें करना, बच्चे से दूरी बनाना या उसे नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति.

वास्तविकता से कटाव : अवास्तविक बातें मान लेना, जैसे कोई नुकसान पहुंचाने वाला है.नींद की समस्या : बहुत कम सोना या बिल्कुल न सो पाना.

भ्रमित सोच : बात करते समय विषय बदलना, असंगत बातें करना.आत्मघाती विचार : खुद को नुकसान पहुंचाने या मर जाने की इच्छा.

कब हों सतर्क

यदि डिलीवरी के बाद मां का व्यवहार अचानक बहुत अलग हो जाये.मां को बच्चे की देखभाल में असामान्य उदासीनता या आक्रामकता दिखे.

लगातार अनिद्रा, अत्यधिक बेचैनी और वास्तविकता से कटे हुए विचार सामने आयें.

क्यों होता है पोस्टपार्टम साइकोसिस?

हार्मोनल बदलाव : प्रसव के बाद हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में अचानक गिरावट आती है. दिमाग के रसायन प्रभावित होते हैं और मूड पर असर पड़ता है.

आनुवंशिक कारक : यदि परिवार में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का इतिहास है, तो प्रसव के बाद इस तरह की बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है.तनाव और नींद की कमी : नवजात शिशु की देखभाल के दौरान नींद पूरी न होना और लगातार तनाव मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है.

मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां : यदि महिला पहले से बाइपोलर डिसऑर्डर या अन्य मानसिक बीमारियों से जूझ रही है, तो प्रसव के बाद जोखिम कई गुना बढ़ जाता है.नयी मां का अतिरिक्त तनाव और चिंता : पहली बार मां बनने पर कई महिलाएं बच्चे की हर छोटी-छोटी बात को लेकर अत्यधिक चिंता करने लगती हैं. यह तनाव मानसिक समस्या का रूप ले सकता है.

पहचान के बाद इलाज संभव

मनोचिकित्सकों के अनुसार, पोस्टपार्टम साइकोसिस का इलाज दवाओं और काउंसेलिंग से संभव है. साथ ही ज्यादा होने पर थेरेपी भी दी जा सकती है. शुरुआती स्तर पर पहचान हो जाने पर महिला को सुरक्षित रखा जा सकता है और धीरे-धीरे उसकी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. इलाज के साथ-साथ परिवार का सहयोग और भावनात्मक सहारा भी बेहद जरूरी है. लक्षण देखकर लोग भूत-प्रेत या अंधविश्वास समझ लेते हैं. इसके लिए लोगों को जागरूक होना जरूरी है.

रिनपास में हर सप्ताह मिलते हैं पांच से छह केस

रिनपास में भी पोस्टपार्टम साइकोसिस के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों से इस बीमारी की पहचान और इलाज के लिए आने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है. डॉक्टरों का कहना है कि हर सप्ताह औसतन पांच से छह महिलाएं इस समस्या के लक्षणों के साथ रिनपास पहुंच रही हैं. इनमें से अधिकांश नयी माताएं होती हैं, जिन्हें नींद की कमी, भ्रम, गुस्सा, संदेह और बच्चे को नुकसान पहुंचाने के विचार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

प्रसव के बाद माताओं के खानपान का रखें ख्याल

विशेषज्ञों का कहना है कि डिलीवरी के बाद महिला के शरीर को रिकवरी और मानसिक संतुलन के लिए संतुलित आहार की बेहद जरूरत होती है. सही खानपान न केवल मां की सेहत सुधारता है, बल्कि दूध के जरिये नवजात शिशु को भी पोषण देता है. प्रसवोत्तर एक मां की नींद पूरी नहीं होती है. बच्चे को दूध पीलाना, नैपी बदलना जैसे कई काम करना होता है. अचानक दिनचर्या बिल्कुल बदल जाती है. ऐसे में कई बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है.

आराम करें : महिला के शरीर की रिकवरी होने और अपनी ताकत वापस पाने के लिए नींद और आराम जरूरी है.पर्याप्त पानी पीना : शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए दिन भर में खूब पानी पीये. कम से कम 10-12 गिलास.

ड्राइ फ्रूट का सेवन : काजू, बादाम, मखाने, दूध और उसे बने चीज लेने से मांसपेशियों में ताकत मिलती है.मशरूम : अपने डाइट में मशरूम को शामिल करें, इससे थकान दूर होती है.

फल : रोजाना फल जैसे केला, सेब खाना चाहिए. केला एक ऐसा फल है जो एंटीबैक्टीरियल गुण है. इस से थकान दूर होती है.साबुत अनाज : ओट्स, जौ जैसे साबुत अनाज में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम और ट्रिप्टोफैन होते हैं, जो तंत्रिका तंत्र को शांत करने में मदद करते हैं.

————-केस स्टडी-01मां दीवारों से बातें करती थी, बच्चे को रोने के लिए छोड़ देती थीरांची की 25 वर्षीय महिला ने हाल ही में अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया. प्रसव के पांच दिन बाद बच्चे की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही थी. रात में बच्चा रोता रहा, लेकिन मां ने उसे उठाने की कोशिश तक नहीं की. रात-भर जागती रहती और अकेले-अकेले बातें करती थी. यह असामान्य व्यवहार देखकर परिजनों ने तुरंत रिनपास के मनोचिकित्सकों से संपर्क किया. जांच में पाया गया कि महिला पोस्टपार्टम साइकोसिस से पीड़ित है. लगभग डेढ़ महीने तक उपचार और काउंसेलिंग के बाद उसकी स्थिति में सुधार हुआ.—————

केस स्टडी-02भूत-प्रेत समझ बैठे, जबकि बीमारी थी पोस्टपार्टम साइकोसिसग्रामीण क्षेत्र की 35 वर्षीय महिला ने बच्चे को जन्म दिया, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उसके व्यवहार में अजीब बदलाव दिखने लगे. वह बच्चे को गोद में नहीं उठाती थी और न ही स्तनपान कराती थी. लोगों को लगा कि किसी भूत-प्रेत का मामला है. तांत्रिक के पास ले गये. लेकिन, स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. ग्रामीणों की सलाह पर रिनपास लाया गया. महिला पोस्टपार्टम साइकोसिस से पीड़ित थी. लगातार छह महीने से अधिक समय तक इलाज चला. दवा और काउंसेलिंग के बाद आखिरकार वह पूरी तरह स्वस्थ है………………………..कोट

पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर और कम होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्या है. इसमें बोलने में अंतर, मूड स्विंग्स और वास्तविकता से संपर्क खो देना जैसे लक्षण हो सकते हैं. रिनपास में एक सप्ताह में पांच से छह केस आ रहे है. किसी को पीपीपी के लक्षण हैं, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लेना चाहिए.डॉ सिद्धार्थ, वरीय मनोचिकित्सक, रिनपास

—————कंसीव करने से लेकर बच्चे को जन्म देने तक एक महिला के शरीर में काफी बदलाव आते हैं. इस समय डाइट का विशेष ध्यान रखना चाहिए. प्रसव के बाद बच्चे के साथ मां का भी ध्यान परिवारवालों को रखना चाहिए. महिलाओं में हार्मोनल बदलाव होते हैं. इसमें शरीर के साथ मानसिक बदलाव शामिल है.अर्पिता मिश्रा, डायटिशियन

—————–पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जो प्रसव के बाद किसी भी महिला को हो सकती है. इसमें उदासी, चिंता, चिड़चिड़ापन, थकान के अलावा कभी कभी खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने का विचार आ सकता है. इसे बिल्कुल भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए. इसके दुष्परिणाम नवजात शिशु के लिए गंभीर हो सकते है.डॉ प्रीति साहू, स्त्री रोग विशेषज्ञ

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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