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Ranchi News : बच्चों की सांसें छीन रहा कफ सिरप

मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के बाद खांसी की इस दवा को लेकर चारों तरफ भय का माहौल है.

कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद अभिभावकों में भय का माहौल, डॉक्टरों के सामने चुनौती

मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के बाद खांसी की इस दवा को लेकर चारों तरफ भय का माहौल है. लगभग हर अभिभावक चिंतित हैं, क्योंकि इस बदलते मौसम में अधिकांश घरों के बच्चे सर्दी-खांसी से पीड़ित हैं. ऐसे में छोटे बच्चों को सर्दी-खांसी होने पर अभिभावक डॉक्टर के पास पहुंचते ही सबसे पहले कफ सिरप को लेकर सवाल कर रहे हैं. वे डॉक्टर से साफ कह रहे हैं “कफ सिरप नहीं लिखियेगा. इधर, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप नहीं देने के निर्देश जारी किये हैं. ऐसे में डॉक्टरों के सामने भी चुनौती है, क्योंकि जिस दवा का वे अब तक परामर्श देते थे, वही अब पर्चे पर नहीं लिख सकते हैं. पढ़िये विशेष संवाददाता की खास रिपोर्ट…

कफ दबाने वाली दवा पर लगा प्रतिबंध

वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार ने बताया कि कफ सिरप दो प्रकार का होता है. कफ निकालने वाला (एक्सपेक्टोरेंट) सिरप दूसरा कफ दबाने वाला (डेक्सट्रोमेथॉर्फन युक्त) सिरप. एक्सपेक्टोरेंट सिरप बलगम को पतला और ढीला करता है, जिससे कफ बाहर निकलता है. वहीं, डेक्सट्रोमेथॉर्फन सूखी खांसी से राहत देता है. डॉ कुमार के अनुसार, दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डेक्सट्रोमेथॉर्फन दवा का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है. वहीं, दो से पांच वर्ष तक की आयु के बच्चों में भी इस दवा के प्रयोग को लेकर डॉक्टरों को सावधानी बरतने के निर्देश दिये गये हैं.

निमोनिया में डेक्सट्रोमेथॉर्फन हो सकता है जानलेवा

दो साल के बच्चे में निमोनिया का प्रारंभिक लक्षण है और डेक्सट्रोमेथॉर्फन कफ सिरप को दिया गया तो दवा कफ को दबा देगा. वहीं, निमोनिया में डॉक्टर कफ निकालने वाली दवा देते हैं. ऐसे में डेक्सट्रोमेथॉर्फन युक्त कफ सिरप का उपयोग बच्चे की जान तक ले सकता है.

स्वास्थ्य विभाग ने जारी की एडवाइजरी

स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आदि को एडवाइजरी जारी की है. इसमें निर्देश दिया गया है कि बच्चों के लिए उपयोग होने वाले कफ सिरप की खरीद और वितरण को सुनिश्चित करें.

आयुर्वेदिक भी कारगर

आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ वीके पांडेय ने बताया कि छोटे बच्चों को खांसी होने पर सितोपलादि चूर्ण और श्रृंग भस्म काफी कारगर साबित होता है. सितोपलादि चूर्ण का 30 ग्राम और श्रृंग भस्म का पांच ग्राम मात्रा मिलाकर इसका 30 पुड़िया बना लें. प्रतिदिन एक पुड़िया को मधु के साथ मिलाकर बच्चों को चटाये. सावधानी के साथ बच्चे को दवा देना चाहिए. सिर्फ चुर्ण नहीं दें.

होमियोपैथी में असरदार दवा

होमियोपैथी चिकित्सक डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि इस पद्धति में उम्र को लेकर कोई बाध्यता नहीं है. एक घंटे के बच्चे से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक की दवाएं एक है. लक्षण के आधार पर होमियोपैथी में दवा दी जाती है. खांसी होने पर दवा रस्टक, एकोनाइट, इपिकाक, ब्रायोनिया, मैक्ट्रम सल्फ काफी राहत पहुंचाता है.

घरेलू नुस्खे भी कारगर

– पुराना घी में सेंधा नमक मिलाकर छाती में लगायें

– सरसों तेल को तलवा और हथेली में लगायें

– पान के पत्ता को गर्म कर नुरानी तेल में लगाकर छाती में लगायें.

————खांसी होने पर ऐसे पा सकते हैं आराम

बच्चे को गुनगुना पानी, सूप या हल्दी मिलाकर हल्का गर्म दूध (यदि डॉक्टर ने मना न किया हो) दें.

तरल पदार्थ गले को आराम देते हैं और बलगम को पतला कर बाहर निकालने में मदद करते हैं.

छोटे शिशुओं के लिए स्तनपान पर्याप्त मात्रा में करायें.

कमरे में गर्म पानी की भाप या नेब्युलाइजर के जरिए भाप देना बेहद कारगर है.

यह गले की सूजन कम करता है और सांस की नली को साफ रखता है.

कमरे में धूल, धुआं, परफ्यूम या अगरबत्ती का प्रयोग न करें.

एक वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को दिन में दो बार आधा चम्मच शहद देना खांसी कम करता है.

ऐसे रखें बच्चे का ध्यानबच्चे को ठंडी हवा, ठंडे पेय और आइसक्रीम से बचायें.

गर्म कपड़े पहनाएं और रात में ठंडी हवा से दूर रखें.बिना डॉक्टर की सलाह के कफ सिरप न दें

विशेषकर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कोई भी डेक्सट्रोमेथॉर्फन युक्त सिरप न दें.

यह कफ को दबा देता है और निमोनिया जैसी स्थिति को और बिगाड़ सकता है.

डॉक्टर से कब मिलेंखांसी लगातार पांच दिनों से अधिक रहे

बच्चे को सांस लेने में कठिनाई, सीटी जैसी आवाज या तेज बुखार होबच्चा बहुत सुस्त लगे या दूध/भोजन न ले रहा हो

———-पैनल में हमारे डॉक्टर

कफ सिरप का उपयोग बच्चों में नहीं करना चाहिए. डेक्सट्रोमेथॉर्फन कफ सिरप से बलगम बाहर निकल नहीं पाता है. इससे निमोनिया के प्रारंभिक लक्षण में बच्चे की स्थिति और बिगड़ सकती है. ज्यादा दिक्कत होने पर नेमोलाइजेशन या एंटीबायोटिक दवा का उपयोग करना चाहिए.

डॉ राजेश कुमार, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ——-

डेक्सट्रोमेथॉर्फन मॉलिक्यूल की दवा का उपयोग पांच साल से नीचे के बच्चों में नहीं करना है. सामान्य देखा जाता है कि पानी का उपयोग बढ़ा देने और नेमोलाइजेशन करने से तीन से चार दिन अपने आप ठीक हो जाता है.

डॉ अनिताभ कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ

—–कफ सिरप का उपयोग पांच साल में बिल्कुल नहीं करें. छोटे बच्चों में खांसी धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है. अभिभावकों से आग्रह है कि वह दवा दुकान जाकर कफ सिरप नहीं खरीदें. बच्चे को हाइड्रेट रखें. डॉक्टर से परामर्श लें.

डॉ अमित मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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