रांची: उम्र कैद और एक अन्य विचाराधीन मामले में अधिकतम सजा काट लेने के बावजूद सेना का पूर्व जवान जयनारायण प्रसाद जेल में बंद है. उम्र कैद की सजा में उसे 13 सितंबर 2012 को ही रिहा करने का आदेश हो चुका है. उस पर फरजी दस्तावेज देने का भी एक मामला विचाराधीन है, जिसकी अधिकतम सजा सात साल है.
25 मई 2010 को ही जेल में उसके सात साल बीत चुके थे. सजा से ज्यादा दिनों तक जेल में रहने के बाद सरकार ने महाधिवक्ता से राय ली. उन्होंने जयनारायण प्रसाद को कानूनी प्रावधान के तहत शीघ्र रिहा करने का सुझाव दिया. पर अभी तक वह रिहा नहीं हो सका है. रिहाई का मामला मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत में विचाराधीन है.
1981 में हुई थी हत्याएं
जयनारायण को 1981 में गुमला में हुई तीन लोगों की हत्या के मामले मे दोषी करार दिया गया था. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. जब इस मामले की सुनवाई चल रही थी और जयनारायण जमानत पर था, उसी दौरान उसने सेना के अधिकारियों के पास अदालत का आदेश बताते हुए फरजी दस्तावेज सौंपा था. बाद में यह बात सामने आ गयी कि उसने अदालत का फरजी आदेश बना कर अपने अधिकारियों को सौंपा था.
फरजी दस्तावेज के आधार पर आजीवन कारावास की सजा से बचने की कोशिश के आरोप में जयनारायण के खिलाफ एक अन्य मुकदमा शुरू किया गया. रांची के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) की अदालत में तत्कालीन अपर न्यायायुक्त की शिकायत के आधार पर इस मुकदमे (सी-11-10/99) की कार्यवाही शुरू की गयी. सुनवाई के बाद सीजेएम ने छह दिसंबर 2005 को अपना फैसला सुनाया. उन्होंने जयनारायण को सात साल के सश्रम कारावास की सजा दी. उन्होंने फैसले में कहा कि यह सजा, उसे सत्र न्यायालय द्वारा दी गयी सजा (उम्र कैद की सजा) के समाप्त होने के बाद शुरू होगी. जयनारायण ने इस आदेश को न्यायायुक्त की अदालत में चुनौती दी.
सुनवाई के बाद न्यायायुक्त ने 10 जुलाई 2012 को अपना फैसला सुनाया. उन्होंने सीजेएम द्वारा दी गयी सजा को निरस्त कर दिया. साथ ही सीजेएम को फिर से सुनवाई करने और जल्द फैसला सुनाने का आदेश दिया. सीजेएम ने जिन धाराओं में सजा सुनायी थी, उन धाराओं में वह अधिकतम सात साल तक की ही सजा दे सकते हैं.
सजा काट चुका है
फरजी दस्तावेज के मामले में भी जयनारायण सात साल से अधिक जेल की सजा काट चुका है. इस मामले में सात साल जेल में रहने की अवधि 25 मई 2010 को ही पूरी हो चुकी है.
पर, न्यायायुक्त के फैसले के मद्देनजर वह अब भी विचाराधीन कैदी है. हत्या के मामले में उम्र कैद की पूरी सजा वह काट चुका है. इस मामले में उसे रिहा करने का आदेश भी हो चुका है. विचाराधीन मामले में सजा (सात साल) से ज्यादा समय जेल काटने के बाद जेल प्रशासन परेशान है.
फरजी दस्तावेज का आरोपी
जयनारायण प्रसाद सेना में कार्यरत था. वर्ष 1981 में गुमला में हुए एक साथ तीन लोगों की हत्या के मामले में उसे भी अभियुक्त बनाया गया था. उसने अपने बचाव में यह दलील दी थी कि वह घटना के दिन डय़ूटी पर था. सेना ने भी पत्र लिख कर उसके डय़ूटी पर होने की बात कही थी. सक्षम अदालत ने तकनीकी कारणों से इस साक्ष्य को अमान्य कर दिया. अदालत ने पांच अगस्त 1986 को जयनारायण प्रसाद सहित अन्य अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनायी. हाइकोर्ट ने सजा के खिलाफ अपील (145/86) की सुनवाई के बाद देवकी देवी, कमला देवी, गौरीशंकर को बरी कर दिया.
हालांकि जयनारायण प्रसाद को दी गयी आजीवन कारावास की सजा को बहाल रखा. इस अवधि में जयनारायण जमानत पर था और सेना में नौकरी कर रहा था. हाइकोर्ट द्वारा उसकी सजा बहाल रखे जाने के बाद उसे सजा भुगतने के लिए नोटिस भेजा गया. इसके खिलाफ उसने इसे सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद नौ सितंबर 1994 को एसएलपी खारिज कर दी. इसके बाद अदालत ने सेना के माध्यम से नोटिस भेज कर उसे सजा भुगतने के लिए सक्षम अदालत में सरेंडर करने को निर्देश दिया.
पर, उसने अदालत के फरजी आदेश के सहारे सेना अधिकारियों को यह बताया कि हाइकोर्ट ने उसे बरी कर दिया है. रिमाइंडर भेजे जाने के बाद सेना के कमांडिंग ऑफिसर ने जयनारायण द्वारा उपलब्ध कराये गये अदालती आदेश की प्रति भेजी. अदालत की ओर से फिर रिमाइंडर भेजे जाने के बाद उसने दूसरी बार अदालत के नाम पर फरजी आदेश तैयार कर अपने कमांडिंग ऑफिसर को यह बताया कि हाइकोर्ट ने उसे सरेंडर कराने के लिए की गयी कार्रवाई को रद्द कर दिया है. इसके बाद सक्षम अधिकारी ने हाइकोर्ट के मूल आदेश की प्रति के साथ कमांडिंग ऑफिसर को वास्तविक स्थिति की जानकारी दी.
इस प्रक्रिया में मई 1998 तक का समय समाप्त हो गया. वास्तविकता की जानकारी मिलने के बाद सेना के निर्देश पर उसने 28 जुलाई 1998 को सक्षम अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया और आजीवन कारावास की सजा भुगतने के लिए जेल चला गया. राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले (लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत सरकार) के आलोक में जयनारायण को जेल से रिहा करने का फैसला किया. सरकार ने 13 सितंबर 2012 को उसे रिहा करने का आदेश जारी कर दिया.