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परिजन बेबस: एक बस पर 20 हजार से अधिक की बचत, हर साल स्कूल के बस भाड़े में 10% से अधिक की वृद्धि

रांची : अभिभावकों से हर साल कभी री-एडमिशन, तो कभी बस फीस में वृद्धि के नाम पर पैसे वसूले जाते हैं. इसके अलावा किताब, कॉपी, स्टेशनरी, ड्रेस के नाम पर भी लागत मूल्य से अधिक पैसे लिये जाते हैं. शिक्षा के नाम पर अभिभावक सब कुछ मजबूरी में सहते हैं. राजधानी में किसी भी स्कूल […]

रांची : अभिभावकों से हर साल कभी री-एडमिशन, तो कभी बस फीस में वृद्धि के नाम पर पैसे वसूले जाते हैं. इसके अलावा किताब, कॉपी, स्टेशनरी, ड्रेस के नाम पर भी लागत मूल्य से अधिक पैसे लिये जाते हैं. शिक्षा के नाम पर अभिभावक सब कुछ मजबूरी में सहते हैं.
राजधानी में किसी भी स्कूल का न्यूनतम बस भाड़ा 500 रुपये से कम नहीं है. हर साल बस भाड़ा में दस फीसदी से अधिक की वृद्धि की जाती है. कई स्कूल तो 10 महीने बस चलाते हैं ले़किन बस भाड़ा 12 महीने का लेते है. शहर के अधिकतर स्कूलों ने ठेके पर बस ले रखा है. इसमें स्कूल को कोई राशि भी खर्च नहीं करनी पड़ती है और बिना लागत की अच्छी कमाई हो जाती है. कुछ स्कूल निबंधित बसों का परिचालन करा रहे है. इन स्कूलों को सरकार टैक्स में छूट देती है. परिवहन विभाग एडिशनल टैक्स में 50 फीसदी छूट देता है. लेकिन इसका लाभ अभिभावकों को नहीं मिलता.
बिना लागत की कमाई : ठेके पर चलनेवाली 55 सीट की बसों के लिए स्कूल प्रतिमाह 55 से 60 हजार रुपये तक का भुगतान करता है. इन बसों में करीब 85 से 90 बच्चे ढोये जाते हैं. स्कूल प्रबंधन बस भाड़ा के नाम पर अभिभावकों से 500 से 1200 रुपये तक हर माह वसूलता है. अगर एक बच्चे का औसत किराया 800 रुपये भी है तो एक बस से स्कूल प्रबंधन को प्रतिमाह 68 हजार रुपये (85 विद्यार्थी) मिलते हैं. इस हिसाब से स्कूल प्रबंधन को बिना लागत 15 से 20 हजार रुपये का लाभ होता है.
जेट का नहीं मानते आदेश
निजी स्कूल जेट के आदेश का भी पालन नहीं करते. आदेश के अनुरूप, गरमी की छुट्टी के दौरान अभिभावकों से बस भाड़ा लेना मना है. इसके अलावा सीटों की क्षमता के अनुसार ही विद्यार्थियों को बैठाना होता है. ओवर लोर्डिंग पर रोक है, बसों में सुरक्षा मानक का होना अनिवार्य है. लेकिन आदेशों को स्कूल प्रबंधन नहीं मानते.
कोर्ट के आदेश की अनदेखी
हाईकोर्ट का सख्त निर्देश है कि स्कूलों में ऐसी बसें नहीं चलनी चाहिए जो बच्चों के लिए खतरनाक हो. इसके बाद भी जर्जर बसों की रंगाई-पुताई कर चलाया जा रहा है. इन बसों में कोर्ट के निर्देशानुसार न तो फर्स्ट एड बॉक्स होता है न ही फायर फायटिंग सिस्टम. इसके अलावा कई बसों की खिड़की में जाली नहीं लगे हुए हैं. कई बसें 20 वर्ष पुरानी है.
इनकी है जिम्मेवारी
जर्जर व बिना परमिट के बसों पर कार्रवाई के लिए हर जिले में जिला परिवहन पदाधिकारी पदस्थापित होते हैं. लेकिन रांची में कार्रवाई सिर्फ खानापूर्ति के लिए होती है. कुछ बसों को कार्रवाई के नाम पर कभी पकड़ा भी जाता है तो मामूली फाइन लगाकर छोड़ दिया जाता है.
एडिशनल टैक्स में छूट से स्कूलों को लाखों की कमाई
स्कूल बसों को एडिशनल टैक्स में छूट इसलिए दी जाती है, ताकि अभिभावकों को कम बस भाड़ा देना पड़े. लेकिन स्कूल प्रबंधन उक्त मद की राशि अपने पास रख लेता है. रांची के स्कूलों को निबंधित एक बस पर सालाना 10608 रुपये की टैक्स छूट मिलती है. सरकार सभी स्कूलों को बस के टैक्स में जो सालाना छूट देती है, उससे 60 लाख रुपये से अधिक की कमाई हो जाती है. शहर में करीब 750 स्कूल बसें चलती है. यह राशि स्कूल प्रबंधन अपने पास रख लेता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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