सात वर्ष की उम्र में इनका पहली कक्षा में नामांकन हुआ, लेकिन गरीबी के कारण कुछ ही दिन स्कूल जा पाये और बाद में स्कूल छोड़ दिया. इनके गांव में ज्यादातर जमीन उबड़-खबड़ थी. लिहाजा खेती करना आसान नहीं था. खेती के लिए सिंचाई के साधन भी नहीं था. 14 वर्ष की उम्र में सिमोन उरांव ने अपनी देशी तकनीक के जरिये गांववालों के सहयोग से सिंचाई के लिए पहला बांध गायघाट का निर्माण किया. उन्होंने फिर गिरना बांध का निर्माण किया. 450 फीट लंबी इस नहर का निर्माण उन्होंने जंगल और पहाड़ को काट कर किया. वह यहीं पर नहीं रुके. इसके बाद उन्होंने देशवाली बांध का निर्माण किया. उन्होंने कई बंजर जमीन को खेती के लायक बनाया. साथ ही वर्षा के पानी को संचय करने के लिए तालाब बनाया. इन बांधों और तालाबों से हरिहरपुर जामटोली, खक्सीटोली, हरहंजी, खुरहाटोली, बोदा और भसनंद गांवों की खेत को सिंचाई के लिए पानी मिलता है.
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जंगल-पहाड़ को काट कर बनाये बांध
बेड़ो: 83 वर्षीय सिमोन उरांव का जन्म रांची जिला से लगभग 40 किमी दूर बेड़ो प्रखंड के हरिहरपुर जामटोली गांव के खक्सीटोली में एक गरीब किसान परिवार के घर में वर्ष 1932 में हुआ. इनके पिता का नाम स्व बेरा उरांव व माता का नाम स्व बंधनी उरांव था. सिमाेन बचपन में गाय-बैल चराते थे. […]
बेड़ो: 83 वर्षीय सिमोन उरांव का जन्म रांची जिला से लगभग 40 किमी दूर बेड़ो प्रखंड के हरिहरपुर जामटोली गांव के खक्सीटोली में एक गरीब किसान परिवार के घर में वर्ष 1932 में हुआ. इनके पिता का नाम स्व बेरा उरांव व माता का नाम स्व बंधनी उरांव था. सिमाेन बचपन में गाय-बैल चराते थे.
सात वर्ष की उम्र में इनका पहली कक्षा में नामांकन हुआ, लेकिन गरीबी के कारण कुछ ही दिन स्कूल जा पाये और बाद में स्कूल छोड़ दिया. इनके गांव में ज्यादातर जमीन उबड़-खबड़ थी. लिहाजा खेती करना आसान नहीं था. खेती के लिए सिंचाई के साधन भी नहीं था. 14 वर्ष की उम्र में सिमोन उरांव ने अपनी देशी तकनीक के जरिये गांववालों के सहयोग से सिंचाई के लिए पहला बांध गायघाट का निर्माण किया. उन्होंने फिर गिरना बांध का निर्माण किया. 450 फीट लंबी इस नहर का निर्माण उन्होंने जंगल और पहाड़ को काट कर किया. वह यहीं पर नहीं रुके. इसके बाद उन्होंने देशवाली बांध का निर्माण किया. उन्होंने कई बंजर जमीन को खेती के लायक बनाया. साथ ही वर्षा के पानी को संचय करने के लिए तालाब बनाया. इन बांधों और तालाबों से हरिहरपुर जामटोली, खक्सीटोली, हरहंजी, खुरहाटोली, बोदा और भसनंद गांवों की खेत को सिंचाई के लिए पानी मिलता है.
जंगल सुरक्षा समिति का गठन किया
उन्होंने लोगों को पर्यावरण बचाओ का नारा भी दिया. लकड़ी तस्करों द्वारा जब जंगलों से पेड़ों की कटाई की जाने लगी, तब उन्होंने गांव वालों के साथ बैठक कर जंगली सुरक्षा समिति का गठन किया. इसके तहत गांव के प्रत्येक घर के एक लोग बारी–बारी से जंगल की रखवाली करते हैं. लकड़ी के घरेलू उपयोग के लिए समिति द्वारा नियम बनाये गये. अगर कोई व्यक्ति एक पेड़ काट लेता, तो उसे 10 पेड़ लगाने पड़ते. आज भी हरिहरपुर जामटोली, बेरटोली, खक्सीटोली गांव के लोग जंगल सुरक्षा समिति बना कर जंगल की रखवाली कर रहे हैं.
कौन हैं सिमोन
सिमोन उरांव रांची जिले के बेड़ो में रहते हैं. वह यहां के कुल 51 जनजातीय गांवों के सर्वमान्य पड़हा राजा हैं. अपने इलाके के जंगलों की हिफाजत करनेवाले इस बुजुर्ग ने जल संरक्षण व सिंचाई के लिए कई कच्चे चेक डैम बनाये हैं. एक काम तो इन्होंने बिल्कुल अकेले किया है. एक बिल्कुल बंजर भूमि को हरे-भरे इलाके में बदल दिया. इन्होंने इन गांवों की तसवीर बदल कर यहां खुशहाली व समृद्धि दोनों लायी है. अपनी जमीन स्कूल बनाने के लिए दान दे दी.
प्रभात खबर संवाददाता ने सिमोन उरांव के घर जाकर उन्हें पद्मश्री मिलने की जानकारी दी. तब उन्होंने कहा :
एखन ले, तो कोई सरकारी आदमी आयके नहीं बतालक है. राउरे से पता चइल है कि हम रा सम्मान मिलल है. प्रभात खबर हमरा खूब मदद कईर है. प्रभात खबर तो पहीलहों हमरा सम्मानित कईर रहे. अब सरकार भी सम्मान देलक है, तो ठीके है.
मतलब : अब तक किसी सरकारी आदमी ने एेसी कोई सूचना नहीं दी है. आप से ही पता चल रहा है कि मुझे पद्मश्री सम्मान मिला है. प्रभात खबर ने मेरी काफी मदद की है. प्रभात खबर पहले ही मुझे सम्मानित कर चुका है. अब सरकार ने भी सम्मान दिया है, तो ठीक ही है.
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