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संताल, उरांव व मुंडा जनजातीय आबादी की 66%

जनगणना: 2011 के आंकड़े संजय रांची : जनगणना-2011 के ताजा आंकड़ों के अनुसार संताल राज्य की सबसे बड़ी जनजाति है. इनकी कुल जनसंख्या 27.54 लाख है. इनके बाद उरांव (लगभग 17.16 लाख) व मुंडा (करीब 12.29 लाख) हैं. दरअसल संताल, उरांव व मुंडा कुल जनजातीय आबादी के करीब 66 फीसदी हैं. अकेले संतालों की आबादी […]

जनगणना: 2011 के आंकड़े
संजय
रांची : जनगणना-2011 के ताजा आंकड़ों के अनुसार संताल राज्य की सबसे बड़ी जनजाति है. इनकी कुल जनसंख्या 27.54 लाख है. इनके बाद उरांव (लगभग 17.16 लाख) व मुंडा (करीब 12.29 लाख) हैं. दरअसल संताल, उरांव व मुंडा कुल जनजातीय आबादी के करीब 66 फीसदी हैं. अकेले संतालों की आबादी ही कुल जनजाजीय आबादी की लगभग 32 फीसदी है.
राज्य में कुल 32 जनजातियां रहती हैं. इनमें से आठ आदिम जनजाति (पीटीजी) की श्रेणी में शामिल हैं. इनको छोड़ शेष 24 जनजातियों की कुल आबादी करीब 83.52 लाख है. वहीं आठ पीटीजी की कुल आबादी लगभग 2.92 लाख है. जनजातीय (पीटीजी सहित) समुदाय की कुल आबादी वर्ष 2001 की तुलना में 15.5 लाख बढ़ी है. दूसरी ओर राज्य भर में खोंड जनजाति (ट्राइब) के सिर्फ 221 लोग ही बचे हैं. इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है. 1991 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 3869 थी, जो 2001 में घट कर 196 हो गयी.
वहीं, 2011 में इनकी संख्या में मामूली वृद्धि होकर 221 हुई है. खोंड जनजाति में कुल 114 पुरुष तथा 107 महिलाएं बतायी गयी हैं. जनगणना के अनुसार कुल 221 में से खोंड जनजाति के 42 लोग शहरों में रहते हैं. खोंड सामान्यत: हजारीबाग, बोकारो व पू सिंहभूम जिले में रहते हैं. खोंड के बाद आबादी के संदर्भ में बंजारा पर भी खतरा मंडरा रहा है.
साहेबगंज, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, राजमहल, गोड्डा व पलामू जिले में रहने वाले बंजारा की जनसंख्या धीमी गति से बढ़ रही है. वर्ष 1991 में
इनकी कुल संख्या 432 थी. वर्ष 2001 में 374 और 2011 में 487 संख्या दर्ज की गयी है. यानी 10 वर्षो के दौरान बंजारा की संख्या में सिर्फ 55 की वृद्धि हुई है.
शहरों में 7.76 लाख जनजातीय: जनगणना-2011 के आंकड़े के अनुसार झारखंड में जनजातीय लोगों की कुल आबादी करीब 86.45 लाख है. इनमें से करीब 7.76 लाख (4919 पीटीजी सहित) लोग शहरों में रहते हैं. पीटीजी समुदाय में सबसे अधिक 1556 माल पहाड़िया शहरों में हैं. वहीं इसके बाद कुल 1108 असुर भी शहरों में रह रहे हैं.

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