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प्रभात खबर Exclusive : झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा -कभी राजनीतिक सौदेबाजी नहीं की

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी राज्य की राजनीति के एक कोण हैं. श्री मरांडी ने 13 साल पहले भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का गठन किया था. संभलना, गिरना, उठना उसकी नियति है. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बाबूलाल ने अपनी पार्टी का वजूद बचाये रखा, जो राष्ट्रीय फलक पर […]

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी राज्य की राजनीति के एक कोण हैं. श्री मरांडी ने 13 साल पहले भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का गठन किया था. संभलना, गिरना, उठना उसकी नियति है. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बाबूलाल ने अपनी पार्टी का वजूद बचाये रखा, जो राष्ट्रीय फलक पर शोध व परख का विषय है. उमा भारती और कल्याण सिंह जैसे क्षत्रप भी बहुत दिनों तक भाजपा से अलग नहीं रह सके. इस बार भी बाबूलाल ने 81 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिये हैं.

प्रभात खबर के वरीय स्थानीय संपादक संजय मिश्र व ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने वर्तमान राजनीतिक हालात, चुनावी रणनीति और भावी कार्य योजना पर बाबूलाल मरांडी से बातचीत की.

ठगने-लूटने वाले सामने हैं, मैं खटने वाला हूं
झाविमो पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में है़ झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने सभी 81 सीटों पर एनडीए-यूपीए के खिलाफ मोर्चा संभालने का निर्णय लिया है़ बाबूलाल को भरोसा है कि राज्य की जनता झाविमो के संघर्ष के साथ है़ कार्यकर्ता के जुनून से वह चुनाव जीतेंगे़ वह कहते हैं कि राज्य के लोगों में सरकार के काम से गुस्सा है़ वहीं झामुमो जैसी पार्टियां कुछ खास इलाके में है़ं कांग्रेस का जहां लीडर है, वहीं भर है़ लेकिन झाविमो पूरे राज्य में है़ झाविमो बाबूलाल मरांडी के 28 महीने के मुख्यमंत्री कार्यकाल के कामों को लेकर जनता के बीच जा रहा है.

-झाविमो किन एजेंडों के साथ चुनाव में जा रहा है?

झाविमो के एजेंडे साफ है़ं हम लगातार झारखंड के सवालों पर संघर्ष कर रहे है़ं लोगों की ताकत हमारे पास है़ पिछले 19 सालों में 28 महीने यानी मेरे मुख्यमंत्रित्व काल को छोड़ कर देखें, तो भाजपा ने कभी झारखंड के इश्यू को एड्रेस नहीं किया़ भाजपा की नीतियों और रघुवर दास के काम से लोग नाराज है़ं हमारे 28 महीने के काम को भी देखा है़ ये नाराज लोग कहां जायेंगे.

-मतलब आपको निगेटिव वोट या माहौल का ही भरोसा है या आप कोई एजेंडा लेकर भी जा रहे हैं?

नहीं, ऐसा नहीं है़ मैंने एक राजनीतिक माहौल बताया़ ऐसे हालात है़ं अर्जुन मुंडा से लेकर रघुवर दास की सरकार में झारखंड में केवल एमओयू हुए़ लोगों की दिक्कत क्या है़ किसान क्या चाहता है, नौजवान क्या चाहता है, यहां के आदिवासी-मूलवासी क्या चाहते है़ं इसको समझने की जरूरत किसी ने नहीं समझी़ मेरी सरकार बनी, मैंने जो दु:ख-दर्द महसूस किया था, उससे जनता को निजात दिलाने की कोशिश की़ गांव तक पहुंचने के लिए सड़कें नहीं थीं, पुल-पुलिया नहीं थे.लोगों का गांव से निकलना मुश्किल था़ मैंने गांवों को सड़कों से जोड़ने का काम शुरू किया़ पहले दिन ही अफसर को कह दिया कि प्राथमिकता पर पहले ये काम करे़ं पुल-पुलिया बने़ बाद में मुझे मौका नहीं मिला. मेरी सरकार बनती है, तो खेती फोकस में रहेगा़ पांच वर्ष तक रघुवर दास डोभा बनाते रहे़ अब बच्चे इसमें खेलते है़ं खेतों तक पानी नहीं पहुंचा़ किसान बेहाल है़ं \

पांच हजार रुपये देने से किसानों का दु:ख दूर नहीं होगा़ मेरी सरकार बनी, तो बिजली के काम को तेजी से आगे बढ़ाया जायेगा़ 19 वर्षों में हम एक मेगावाट बिजली का उत्पादन नहीं कर पाये़ बड़े-बड़े पावर प्लांट लगाने की योजना कारगर नहीं है़ यह समय पर पूरा नहीं होता़ छोटे-छोटे पावर प्लांट लगाने की जरूरत है़ इसमें बहुत जमीन की जरूरत भी नहीं है और कमिशनिंग भी जल्द होता है़ 1999 में मैंने अटल जी के साथ चंदवा पावर प्लांट का शिलान्यास किया था़ आज तक पूरा नहीं हुआ़ शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है़ तकनीकी शिक्षा के लिए बच्चे बाहर जाते थे़ मेरी सरकार बनी थी, तो बाहर पढ़ाई करने वालों का शुल्क सरकार देती थी़

इसे रघुवर दास की सरकार ने रोक दिया़ हम झारखंड में ही विभिन्न तकनीकी शिक्षा के संस्थान खोलेंगे़ कम-से-कम हम 10 हजार नर्स तो बना सकते है़ं डिप्लोमा कोर्स के छोटे-छोटे संस्थान तो बना सकते है़ं स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति खराब है़ पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य कर्मी रखे जाने चाहिए़ ये लोग गांवों में जा कर सर्वे करे़ं मेरी कल्पना है कि ब्लॉक स्तर पर स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था हो़ छोटी-छोटी बीमारियों के लिए लोगों को खर्च कर शहर ना आना पड़े़ जिला स्तर पर जांच की व्यवस्था हो़ प्रमंडल स्तर पर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पीटल हो़.

-मतलब लोग आपके 28 महीने के काम पर भरोसा कर फिर आपका साथ दें?

28 महीने के मेरे कार्यकाल का काम लोगों के जेहन में है़ 12-14 साल से अपने रास्ते पर चल रहा हूं़ं खट रहा हूंं, मेरी ईमानदारी पर लोगों को भरोसा है़ संघर्ष कर रहा हू़ं मैं भी चाहता तो राज्यसभा में सीटें बेच सकता था़ मेरे पास भी 11 विधायक थे़ इनको दावं पर लगा देता, तो 20 करोड़ आ जाते. 2009 में मेरे साथ के विधायक भाग गये़ सौदेबाजी कर सकते थे़ आप मुझे जिद्दी कह सकते है़ं मैं अपने रास्ते पर चलता हूं.

-भाजपा, झामुमो, कांग्रेस जैसी पार्टियों के अपने वोट बैंक और समीकरण हैं, आपके पास कौन-सा चुनावी गणित है?

झारखंड नामधारी पार्टियों को देखें, तो जयपाल सिंह मुंडा के समय से लेकर झामुमो तक आदिवासी बाहुल्य सीटों पर इनका दबदबा रहा है़ कभी समय था कि झारखंड पार्टी 30 सीटें तक ले आयी. आज झामुमो 20 में सिमट रहा है़ झारखंड नामधारी पार्टी और झामुमो का क्षरण हुआ है़ महतो, मांझी, मुस्लिम का फॉर्मूला था़ शहरी इलाके में भाजपा है़ कांग्रेस वहीं है, जहां उसके लीडर है़ं बाकी जगहों पर कांग्रेस को लीडर खोजना पड़ रहा है़ हम सब जगह है़ं हमारे कार्यकर्ता हर जगह है़ं कहीं हमारे लीडर हैं, तो कहीं मैं हू़ं लेकिन हमलोगों की उपस्थिति हर जगह है़ हम बढ़िया फाइट देने की स्थिति में है.

-आप भाजपा का विरोध कर रहे हैं, तो जमशेदपुर पूर्वी में आपने सरयू राय का समर्थन नहीं किया, कोई खास वजह?

रघुवर दास को हराना था, तो राय जी को हमें समर्थन कर देना चाहिए था़ उस सीट से हमारे पार्टी के अभय सिंह ने संघर्ष करते हुए विपरित परिस्थितियों में पहचान बनायी है़ राय जी को जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ना चाहिए था़ अभय सिंह वहां वर्षों से तैयारी कर रहे हैं. उनकी तैयारी अच्छी है़ ऐसे भी राय जी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है़ं निर्दलीय को लोग कितना पसंद करते हैं, जानते ही है़ं अच्छी छवि नहीं रही है.

-मतलब सरयू राय निर्दलीय जीते तो पहले की तरह निर्दलीय जमात वालों में शामिल हो जायेंगे, वही छवि रहेगी?

नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रहा़ लेकिन निर्दलियों पर अब लोगों को भरोसा नहीं है़ वहां की परिस्थिति राय जी के चुनाव लड़ने लायक नहीं है़ बैठे-बिठाये आदमी चुनाव नहीं जीत पाता.

-झामुमो-कांग्रेस कह रहे हैं कि आपने यूपीए के साथ वादाखिलाफी की़ गठबंधन में नहीं आये?

मैंने गठबंधन की पहल की थी़ ये लोग टालमटोल करते रहे़ 2009 में क्या हुआ था़ 20 सीटें हमें दी. पांच पर फ्रेंडली हुआ़ हमने इसके बाद भी गठबंधन किया़ 2014 में क्या हुआ़ प्रदीप यादव और प्रवीण सिंह कांग्रेस से बात करने गये थे़ रात में सहमति बनी कि हमें 25 सीटें दे रहे है़ं गठबंधन फाइनल है, केवल घोषणा होनी बाकी है़ अगले दिन सुबह मुझे बताया गया कि गठबंधन नहीं होगा़ हम सड़क पर आ गये़ हमारे कुछ लीडर भाजपा में चले गये़ 2019 में भी हमने गठबंधन की कोशिश की़ मेरा कहना था कि बातचीत कर तय कर लिया जाये़ मई, जून, जुलाई बीत गया़ इधर राहुल गांधी त्यागपत्र दे चुके थे़ कांग्रेस अपने में फंसी हुई थी़ 2014 वाली मेरी स्थिति ना बने, इसलिए मैंने तैयारी शुरू कर दी़ सितंबर में जनादेश समागम किया़ हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ता चुनावी तैयारी में लग गये.

-विरोधियों का आरोप है कि आप भाजपा की मदद कर रहे है़ं गठबंधन नहीं करते, सब भाजपा फंडेड है?

पहली बार अकेले नहीं लड़ रहे है़ं 2014 में भी अकेले चुनाव लड़े थे़ 2009 में कांग्रेस के साथ लड़े़ लोग बहुत कुछ बोलते है़ं लोग कहते हैं ना कि मैं हेलीकॉप्टर घूमा रहा़ हमारे चुनाव लड़ने की अपनी तकनीक है़ विधानसभा क्षेत्रों में झंडा पहुंचा देते है़ं कार्यकर्ताओं के पैसे से यह सब हो जाता है़ झंडा और दूसरी सामग्री में 30-40 लाख रुपये लगते है़ं जहां तक हेलीकॉप्टर का सवाल है, तो 100 घंटे के 50-60 लाख लगते है़ं मेरे शुभचिंतक हैं, मित्र-दोस्त है़ं कार्यकर्ता खुले दिल से सहयोग करते है.

-आप संघर्ष करते हैं, पिछली बार भी आठ सीटें जीतीं, आपके छह विधायक तो भाजपा में चले गये?

भाजपा के लोगों ने संविधान के खिलाफ काम किया, लेकिन तब विपक्ष ने भी तो साथ नहीं दिया़ केवल बाबूलाल मरांडी का मामला नहीं था, केवल विधायकों के जाने का मामला नहीं था़ यह संविधान-कानून की बात थी़ कांग्रेस चाहती तो संसद को जाम कर देती, संसद में सवाल उठते़ लेकिन क्या हुआ़ हम अपनी लड़ाई लड़ते रहे.

-आरोप तो यह भी है कि आप अपना घर संभाल नहीं पाये़ विधायकों को रोक नहीं पाये?

यह भी गजब बात है़ किसी के घर में डकैती हो और थाना में मामला दर्ज कराने के लिए जायें, तो कहा जाये कि आप रात में सोये क्यों थे़ क्यों नहीं जागते रहे़ थाना वाला यह सवाल करे, तो फिर क्या होगा़ संविधान की रक्षा करने की जिम्मेवारी किसकी है़ उसने क्या किया़ रक्षक ही भक्षक बन गये है.

-पार्टी के अंदर-बाहर चर्चा है कि प्रदीप यादव आपको चलाते है़ं एक प्रदीप के लिए आपने कितने प्रदीप छोड़ दिये?

इस प्रकार का प्रश्न चलता रहता है़ ऐसी कोई बात नहीं हैं.

-आपने तो यौन शोषण के आरोपी को टिकट दिया?

यह मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है़ अभी आरोप साबित नहीं हुआ है़ दो लोगों के बीच का मामला है़ सच क्या है, वे लोग ही जानते होंगे.

-आपने क्या कार्रवाई की?

न्यायसंगत जितना होता, उतनी कार्रवाई की़ मैंने एक्शन लिया, उससे ज्यादा न्यायसंगत नहीं होता़ दूसरी पार्टियों में तो इतना भी नहीं होता है़ दूसरे लोगों पर गंभीर से गंभीर आरोप लगे है.

-कुछ लोग कहते हैं कि प्रदीप यादव के पास आपके राजनीतिक राज हैं?

राज क्या होता है़ मेरे पास कोई राज नहीं है़ ये सब गप है, मैं ध्यान नहीं देता हूं.

-सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन को आप लोगों ने मुद्दा बनाया़ इस पर आपकी क्या राय है?

संवेदनशील विषयों पर सरकार को सोच-समझ कर काम करना चाहिए़ मुझे नहीं पता रघुवर दास की सरकार को कौन लोग सलाह दे रहे है़ं गैर मजरुआ जमीन की जमाबंदी रद्द कर दी़ गैर मजरुआ जमीन पर लोगों ने घर बना लिया, उसे बेच कर अपनी जरूरत पूरी कर ली़ सरकार ने कोई सर्वे नहीं कराया़ अब 27 लाख एकड़ भूमि लैंड बैंक में दिखा रहे है़ं इनको हेमंत सोरेन का केवल सोहराय भवन दिख रहा है़ अनावश्यक बखेड़ा खड़ा कर रहे है़ं आज आदिवासी मकान के लिए भी जमीन नहीं खरीद पा रहा़ सीएनटी-एसपीटी में संशोधन करना था, तो न्यूनतम मानक तय कर आदिवासियों के बीच खरीद-बिक्री की सहूलियत दे सकते थे़ लेकिन इन लोगों ने कॉरपोरेट के लिए नियम बनाना शुरू कर दिया था़ सरकार को चाहिए कि आयोग बना कर सीएनटी-एसपीटी में संशोधन पर सहमति बनाये.

-कुछ लोग कह रहे हैं कि आप किंगमेकर की भूमिका में रहेंगे. एनडीए के साथ जायेंगे या फिर यूपीए के साथ रहेंगे?

मैं चुनाव लड़ रहा हू़ं आगे क्या होगा नहीं जानता़ मैं राजनीतिक सौदेबाजी नहीं कर रहा हू़ं 2009 में भी नहीं किया, आगे भी नहीं करूंगा.

-भाजपा ने राजनीति के सिलेबस बदले, मिथक तोड़े़ गैर आदिवासी को सीएम बनाया. सरकार पांच साल चली.

मुख्यमंत्री का पद रिजर्व नहीं है़ मुख्यमंत्री बनना सबका अधिकार है़ इस राज्य में एक साथ दो मिथक टूटे है़ं पहले कहा जाता कि बहुमत की सरकार नहीं बनती है, विकास नहीं होता है़ बहुमत की सरकार भी बन गयी़ क्या हुआ, किसी से छिपा नहीं है़ भाजपा बोलती रही कि राज्य में आदिवासी सीएम बनते रहे है़ं 14 साल ट्राइबल सीएम को परखते रहे़ भाजपा ने सब कसौटी पर कस लिया़ अब कुछ बाकी नहीं है़ मैं तो कहता हूं कि ठगने वाले-लुटने वाले सामने हैं, मैं खटने वाला हू़ं राज्य के तीन मुख्यमंत्री रघुवर दास, हेमंत सोरेन और मैं चुनाव मैदान में है़ं जनता को जज करना है.

आप 28 महीने की अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं, उसमें डोमेसाइल का काला अध्याय भी तो है?

नियुक्ति में स्थानीय को प्राथमिकता मिले, इसका प्रावधान बिहार से ही था़ झारखंड बनने के बाद मेरी सरकार ने उसे अंगीकार किया़ इसे लेकर राजनीतिक हंगामा खड़ा किया गया़ 1982 में बिहार में यह प्रावधान लागू हुआ था कि सर्वे राइट के आधार पर स्थानीय को नौकरी में प्राथमिकता मिलेगी़ मैंने उस सर्कुलर में बिहार की जगह झारखंड, पटना की जगह रांची और पिन कोड बदला था़ जाने-अनजाने उस पर घटना हो गयी़ कई बार अच्छा चालक भी दुर्घटना का शिकार हो जाता है, चाहे गलती उसकी हो या ना हो़ वह एक दुर्घटना थी. मेरी मंशा सही थी़ स्थानीय को प्राथमिकता देना था.

संघ के करीब रहे हैं, ऐसे में भाजपा के साथ भी जा सकते हैं, लोगों की अटकलें हैं. विकल्प खोल के रखना, स्पष्ट नहीं बताना यह भी तो सौदेबाजी है?

मेरे लिए झारखंड फर्स्ट है़ झारखंड की जनता पहले है़ कहां पैदा हुआ, ये तो परमात्मा की मरजी है़ राजनीतिक रूप से मैं कहां पैदा हुआ, यह भी उसकी ही मर्जी थी़ मैं सौदेबाजी नहीं करता हू़ं कयास और अटकलों पर क्या कह सकता हू़ं.

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