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रांची : भारत के आदिवासी जूझ रहे हैं कई खतरों से : ग्लैडसन
रांची : जर्मनी के बोन शहर में आयोजित ‘ग्लोबल लैंडस्केप फोरम’ में मानवाधिकार कार्यकर्ता व लेखक ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि भारत के विभिन्न जंगलों में रहनेवाले आदिवासी कई खतरों से जूझ रहे है़ं 20 राज्यों की सरकारों ने वन अधिकार कानून 2006 के तहत 15 लाख दावा-पत्र खारिज किया है़ इसका अर्थ है कि […]
रांची : जर्मनी के बोन शहर में आयोजित ‘ग्लोबल लैंडस्केप फोरम’ में मानवाधिकार कार्यकर्ता व लेखक ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि भारत के विभिन्न जंगलों में रहनेवाले आदिवासी कई खतरों से जूझ रहे है़ं 20 राज्यों की सरकारों ने वन अधिकार कानून 2006 के तहत 15 लाख दावा-पत्र खारिज किया है़ इसका अर्थ है कि 75 लाख आदिवासियों पर जंगलों से बेदखल होने का खतरा है़ इसके अलावा केंद्र सरकार भारतीय वन अधिनियम 1925 के संशोधन की प्रक्रिया भी चला रही है़
इस संशोधन के बाद राज्य सरकारें किसी भी जंगल को रिजर्व जंगल घोषित करते हुए आदिवासियों को जंगल से बेदखल कर सकती है़ जब आदिवासी अपनी भूमि और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए आंदोलन करते हैं, तब उन्हें विकास विरोधी और राष्ट्रद्रोही कहा जाता है़ हम न विकास विरोधी हैं और न स्वार्थी़
हम सिर्फ जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का संघर्ष कर रहे है़ं न सिर्फ हमारा, बल्कि दुनिया के सभी लोगों का भविष्य इस संघर्ष पर निर्भर है़ 22 व 23 जून को आयोजित इस फोरम में दुनिया भर से एक हजार लोग हिस्सा ले रहे है़ं
बाहर हो जायेंगे झारखंड के 870 गांव: उन्होंने कहा कि झारखंड में तीन वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें 870 गांवों को जंगलों से बाहर करने का प्रस्ताव है़
इसी तरह सरकार ने लैंड बैंक भी बनाया है, जिसमें 20 लाख एकड़ जमीन को रखा गया है़ इसमें 10 लाख एकड़ वनभूमि है, जिसे वन अधिकार कानून 2006 के तहत आदिवासियों को दिया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार इसे पूंजीपतियों को देना चाहती है़
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