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लोकसभा की कई सीटों पर निर्णायक होंगे कोयलाकर्मी

मनोज सिंह झारखंड में करीब एक लाख से अधिक कोयलाकर्मी रांची : झारखंड का बड़े इलाके में कोयला खनन का काम होता है. कोयला मजदूरों की समस्या हमेशा राजनीति को प्रभावित करती रही है. कुछ सीट कोयलाकर्मियों के मुद्दे पर तय होता है. कुछ सीटों पर इनका अप्रत्यक्ष तो कुछ पर प्रत्यक्ष असर है. इस […]

मनोज सिंह
झारखंड में करीब एक लाख से अधिक कोयलाकर्मी
रांची : झारखंड का बड़े इलाके में कोयला खनन का काम होता है. कोयला मजदूरों की समस्या हमेशा राजनीति को प्रभावित करती रही है. कुछ सीट कोयलाकर्मियों के मुद्दे पर तय होता है. कुछ सीटों पर इनका अप्रत्यक्ष तो कुछ पर प्रत्यक्ष असर है.
इस कारण कई मजदूर यूनियनों से जुड़े नेता भी सक्रिय राजनीति में शामिल हैं. झारखंड में कोयला मजदूरों व अधिकारियों की भी बड़ी संख्या है. वोटर के रूप में यह चुनावी आंदोलन को प्रभावित करते हैं. झारखंड में करीब एक लाख से अधिक कोयलाकर्मी हैं. इनका असर गिरिडीह, धनबाद, गोड्डा, दुमका, रांची, पलामू, चतरा संसदीय क्षेत्र में पड़ सकता है. कई लोकसभा क्षेत्र में तो यह निर्णायक भूमिका में होंगे.
झारखंड में संचालित हैं चार कंपनियां : झारखंड में चार कोयला कंपनियां संचालित हैं. तीन कंपनियों का मुख्यालय झारखंड में है. एक कंपनी का मुख्यालय तो प बंगाल में है, लेकिन झारखंड के कुछ इलाकों में इनका खनन का काम है.
सीसीएल और सीएमपीडीअाइ का मुख्यालय रांची में है. इसी तरह बीसीसीएल का मुख्यालय धनबाद में है, जबकि इस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड का मुख्यालय प बंगाल में है. इन कर्मियों के मुद्दे राज्य स्तर के नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर लिये जाने वाले निर्णय से कंपनियों के कामकाज प्रभावित होते हैं.
वोट तो ले लेते हैं, लेकिन मुद्दा नहीं उठाते हैं : कोयला क्षेत्र में काम करनेवाले श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों का मानना है कि हमलोगों के वोट से तो प्रतिनिधि चुन लिये जाते हैं, लेकिन हमारी आवाज नहीं उठाते हैं.
ऐसा भारतीय मजदूर संघ, सीटू, एटक, एचएमएस के प्रतिनिधियों का भी कहना है. सीटू के आरपी सिंह कहते हैं कि झारखंड के एक भी लोकसभा सदस्य ने मजदूरों की समस्या नहीं उठायी. एक बार तपन सेन और एक टीडीपी की सांसद ने आवाज उठाया था. एटक नेता लखन लाल महतो कहते हैं कि कोयला क्षेत्र की कई समस्या है.
हाल के दिनों में कई ऐसे मामले थे, जो सीधे कोयलाकर्मियों को प्रभावित करते रहे. इसमें व्यावसायिक खनन, आउट सोर्सिंग, अनुकंपा व मेडिकल अनफिट नौकरी आदि मुद्दों पर भी कोई आवाज नहीं उठाते हैं. चुनाव जीतने के बाद निजी व्यवस्था में लग जाते हैं. भारतीय मजदूर संघ के बिंदेश्वरी प्रसाद का कहना है कोयला क्षेत्र का ट्रेड यूनियन खुद काफी मजबूत होता है. कभी-कभी जरूरत पड़ने पर सांसदों के पास गये हैं, सहयोग नहीं किया. कई नेता कोयला कंपनी चला रहे हैं, लेकिन हाइपावर कमेटी की अनुशंसा खुद लागू नहीं करते हैं.
कहां, कितने कर्मी
कंपनी संख्या
बीसीसीएल 48513
सीसीएल 40681
सीएमपीडीआइ 3384
इसीएल 5000 (करीब)
Prabhat Khabar Digital Desk
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